ETV Bharat / state

जयपुर की विरासत से जुड़ा 'तमाशा', जहां नजर आती है मूछों वाली हीर और राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर तंज कसता रांझा - Holi 2024 - HOLI 2024

Tamasha on Holi, पूरे देश में होली पर कई तरह के आयोजन होते हैं. कहीं रम्मत का मंचन होता है तो कहीं पुरुषों पर लट्ठ बरसाए जाते हैं. ऐसा ही एक आयोजन है जयपुर का तमाशा, जिसे शहर का ही भट्ट परिवार कई पीढ़ियों से हर साल मंचन करता आया है. आज भी इस तमाशा को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. यहां पढ़िए मूंछों वाली हीर और राजनीति की बातें करने वाले रांझा के बारे में....

Tamasha on Holi
Tamasha on Holi
author img

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Mar 23, 2024, 10:04 AM IST

Updated : Mar 23, 2024, 2:05 PM IST

जयपुर की विरासत से जुड़ा 'तमाशा'

जयपुर. स्टेट पीरियड के समय मनोरंजन का प्रमुख साधन रहा तमाशा जयपुर के परकोटा क्षेत्र में आज भी हर साल जीवंत हो उठता है. सवाई जयसिंह द्वितीय की बसाई नगरी में लोकनाट्य की ये पारंपरिक विधा जितनी पुरानी है, उसमें करंट अफेयर्स का तड़का लगाकर हर साल इसे नया कर दिया जाता है. ब्रह्मपुरी के छोटे अखाड़े में शास्त्रीय संगीत के साथ इस बार भी रांझा-हीर तमाशा का मंच सजेगा. खास बात ये है कि जिस तरह इस तमाशा का भट्ट परिवार की सात पीढ़ियां मंचन करती आई हैं, उसी तरह दर्शकों की भी सात पीढ़ियां देखने के लिए हर साल होली पर यहां जुटती है.

रांझा का राजनीति पर कटाक्ष : भगवा वस्त्र, सिर पर कलंगी वाला मुकुट, हाथ में मोर पंख, पैरों में घुंघरू बांध रांझा एक बार फिर राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर कटाक्ष करते हुए लोगों को तमाशा की इस पुरानी विधा में नया आभास कराएंगे. हीर के प्यार में फिरते हुए हारमोनियम और तबले की धुन पर एक साल को बारहमासी के रूप में पेश करेंगे. जयपुर की विरासत के साथ जुड़े हुए इस रंग की होली पर छटा बिखरेगी. तमाशा के निर्देशक वासुदेव भट्ट ने बताया कि एक जमाना था जब उनके पूर्वज तमाशा का मंचन किया करते थे. तब एक चौराहे से दूसरे चौराहे तक दर्शकों की भीड़ रहती थी. उस दौर में माइक नहीं होता था और शास्त्रीय संगीत के साथ उनकी आवाज दूर तक जाया करती थी, जिसका हर दर्शक मजा लेता था.

पढे़ं. ये है बीकानेर की डोलची वाली होली, दुश्मनी को भुलाकर खेल के जरिए सौहार्द किया कायम

तमाशा में सामाजिक समरसता: उन्होंने बताया कि राजा-महाराजा, बड़े-बड़े जागीरदार और राजपुरोहित जयपुर की बसावट से ही इस तमाशा को देखने आया करते थे. आम जनता इससे विशेष रूप से जुड़ी हुई थी. खास बात ये है कि तमाशा में सामाजिक समरसता देखने को मिलती थी. अमीर-गरीब, ऊंच-नीच के भेद के पार सब एक जाजम पर बैठकर इस तमाशा का लुत्फ उठाया करते थे. इस तमाशा की ऑडियंस भी निश्चित है. इसका दर्शक वर्ग पीढ़ी दर पीढ़ी जुड़ा हुआ है. दर्शकों से पूछते हैं तो उनका भी यही कहना होता है कि उनके पिताजी-दादाजी इसे देखने आया करते थे और आज वो भी इसका आनंद लेने के लिए पहुंचते हैं.

मूंछों वाली हीर : इस बार भी तमाशे का मंचन होली पर होगा, जिसमें भट्ट परिवार की तीन पीढ़ियां एक साथ परफॉर्म करती हुई नजर आएंगी. इसमें कोई चितरंगा, कोई रांझा तो कोई हीर का किरदार निभाएगा. कोई हारमोनियम पर साज छेड़ेगा, तो कोई तबला वादन करेगा. चितरंगा का किरदार निभाने वाले विशाल ने बताया कि चितरंगा और उनका कैरेक्टर मिलता-जुलता ही है. आज लोग उनके नाम से ज्यादा चितरंगा के नाम से उन्हें जानते हैं. इस तमाशा में मूंछों वाली हीर नजर आती है. हीर का किरदार निभाने वाले विनत भट्ट ने बताया कि इसकी यही खासियत है. यही पूर्वजों की देन है कि यहां एक पुरुष को भी महिला के किरदार में दर्शक स्वीकार करते हैं.

पढे़ं. होली विशेषः बीकानेर की पहचान है 400 साल पुरानी 'रम्मत', पीढ़ी दर पीढ़ी सहेज रहे इस खास कला को

अंग्रेजी भी बोलता है रांझा : रांझा का किरदार निभाने वाले तपन भट्ट ने बताया कि बीते 22 सालों से वो हर साल समाज और राजनीतिक क्षेत्र से जुड़े हुए नए मुद्दों को भी इस तमाशे में प्रस्तुत करते हैं. रांझा वैसे तो पौराणिक कैरेक्टर है, लेकिन वो आज की आधुनिक बात भी करता है. अंग्रेजी भी बोलता है, युवाओं से जुड़ता है, सामाजिक बुराइयों, कुरीतियों और विभिन्न मुद्दों को अपने शब्दों में पिरोकर बोलता है. हर बार बोलता है, इस बार भी बोलेगा.

अब तक तमाशा में केवल पुरुष वर्ग ही किरदार निभाते थे, लेकिन समय के साथ-साथ भट्ट परिवार की नई पीढ़ी में उनकी बेटियां भी इस तमाशे से जुड़ रही हैं. भट्ट परिवार की बेटी झिलमिल ने बताया कि उनके परिवार के साथ जब तमाशे का नाम जुड़ता है, तो उन्हें बहुत गर्व महसूस होता है. अब तक इसमें लड़कियों को कोई किरदार नहीं दिया जाता था। लेकिन उनके दादाजी-पिताजी ने उन्हें आगे बढ़ाया है. उन्हें इसमें प्रतिभागी बनने का मौका दिया है. बहरहाल, नई पीढ़ी और नई सोच के साथ तमाशा शैली को आगे बढ़ाया जा रहा है. शास्त्रीय संगीत की ये पुरानी विधा है, जिसमें नए कलेवर को प्रस्तुत करते हुए इस बार भी तमाशा होली पर लोगों का मनोरंजन करता हुआ नजर आएगा.

जयपुर की विरासत से जुड़ा 'तमाशा'

जयपुर. स्टेट पीरियड के समय मनोरंजन का प्रमुख साधन रहा तमाशा जयपुर के परकोटा क्षेत्र में आज भी हर साल जीवंत हो उठता है. सवाई जयसिंह द्वितीय की बसाई नगरी में लोकनाट्य की ये पारंपरिक विधा जितनी पुरानी है, उसमें करंट अफेयर्स का तड़का लगाकर हर साल इसे नया कर दिया जाता है. ब्रह्मपुरी के छोटे अखाड़े में शास्त्रीय संगीत के साथ इस बार भी रांझा-हीर तमाशा का मंच सजेगा. खास बात ये है कि जिस तरह इस तमाशा का भट्ट परिवार की सात पीढ़ियां मंचन करती आई हैं, उसी तरह दर्शकों की भी सात पीढ़ियां देखने के लिए हर साल होली पर यहां जुटती है.

रांझा का राजनीति पर कटाक्ष : भगवा वस्त्र, सिर पर कलंगी वाला मुकुट, हाथ में मोर पंख, पैरों में घुंघरू बांध रांझा एक बार फिर राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर कटाक्ष करते हुए लोगों को तमाशा की इस पुरानी विधा में नया आभास कराएंगे. हीर के प्यार में फिरते हुए हारमोनियम और तबले की धुन पर एक साल को बारहमासी के रूप में पेश करेंगे. जयपुर की विरासत के साथ जुड़े हुए इस रंग की होली पर छटा बिखरेगी. तमाशा के निर्देशक वासुदेव भट्ट ने बताया कि एक जमाना था जब उनके पूर्वज तमाशा का मंचन किया करते थे. तब एक चौराहे से दूसरे चौराहे तक दर्शकों की भीड़ रहती थी. उस दौर में माइक नहीं होता था और शास्त्रीय संगीत के साथ उनकी आवाज दूर तक जाया करती थी, जिसका हर दर्शक मजा लेता था.

पढे़ं. ये है बीकानेर की डोलची वाली होली, दुश्मनी को भुलाकर खेल के जरिए सौहार्द किया कायम

तमाशा में सामाजिक समरसता: उन्होंने बताया कि राजा-महाराजा, बड़े-बड़े जागीरदार और राजपुरोहित जयपुर की बसावट से ही इस तमाशा को देखने आया करते थे. आम जनता इससे विशेष रूप से जुड़ी हुई थी. खास बात ये है कि तमाशा में सामाजिक समरसता देखने को मिलती थी. अमीर-गरीब, ऊंच-नीच के भेद के पार सब एक जाजम पर बैठकर इस तमाशा का लुत्फ उठाया करते थे. इस तमाशा की ऑडियंस भी निश्चित है. इसका दर्शक वर्ग पीढ़ी दर पीढ़ी जुड़ा हुआ है. दर्शकों से पूछते हैं तो उनका भी यही कहना होता है कि उनके पिताजी-दादाजी इसे देखने आया करते थे और आज वो भी इसका आनंद लेने के लिए पहुंचते हैं.

मूंछों वाली हीर : इस बार भी तमाशे का मंचन होली पर होगा, जिसमें भट्ट परिवार की तीन पीढ़ियां एक साथ परफॉर्म करती हुई नजर आएंगी. इसमें कोई चितरंगा, कोई रांझा तो कोई हीर का किरदार निभाएगा. कोई हारमोनियम पर साज छेड़ेगा, तो कोई तबला वादन करेगा. चितरंगा का किरदार निभाने वाले विशाल ने बताया कि चितरंगा और उनका कैरेक्टर मिलता-जुलता ही है. आज लोग उनके नाम से ज्यादा चितरंगा के नाम से उन्हें जानते हैं. इस तमाशा में मूंछों वाली हीर नजर आती है. हीर का किरदार निभाने वाले विनत भट्ट ने बताया कि इसकी यही खासियत है. यही पूर्वजों की देन है कि यहां एक पुरुष को भी महिला के किरदार में दर्शक स्वीकार करते हैं.

पढे़ं. होली विशेषः बीकानेर की पहचान है 400 साल पुरानी 'रम्मत', पीढ़ी दर पीढ़ी सहेज रहे इस खास कला को

अंग्रेजी भी बोलता है रांझा : रांझा का किरदार निभाने वाले तपन भट्ट ने बताया कि बीते 22 सालों से वो हर साल समाज और राजनीतिक क्षेत्र से जुड़े हुए नए मुद्दों को भी इस तमाशे में प्रस्तुत करते हैं. रांझा वैसे तो पौराणिक कैरेक्टर है, लेकिन वो आज की आधुनिक बात भी करता है. अंग्रेजी भी बोलता है, युवाओं से जुड़ता है, सामाजिक बुराइयों, कुरीतियों और विभिन्न मुद्दों को अपने शब्दों में पिरोकर बोलता है. हर बार बोलता है, इस बार भी बोलेगा.

अब तक तमाशा में केवल पुरुष वर्ग ही किरदार निभाते थे, लेकिन समय के साथ-साथ भट्ट परिवार की नई पीढ़ी में उनकी बेटियां भी इस तमाशे से जुड़ रही हैं. भट्ट परिवार की बेटी झिलमिल ने बताया कि उनके परिवार के साथ जब तमाशे का नाम जुड़ता है, तो उन्हें बहुत गर्व महसूस होता है. अब तक इसमें लड़कियों को कोई किरदार नहीं दिया जाता था। लेकिन उनके दादाजी-पिताजी ने उन्हें आगे बढ़ाया है. उन्हें इसमें प्रतिभागी बनने का मौका दिया है. बहरहाल, नई पीढ़ी और नई सोच के साथ तमाशा शैली को आगे बढ़ाया जा रहा है. शास्त्रीय संगीत की ये पुरानी विधा है, जिसमें नए कलेवर को प्रस्तुत करते हुए इस बार भी तमाशा होली पर लोगों का मनोरंजन करता हुआ नजर आएगा.

Last Updated : Mar 23, 2024, 2:05 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.