जबलपुर: खादी को आम आदमी के जीवन में फिर से स्थापित करने के लिए जबलपुर की एक संस्था ने खादी से जुड़े आयोजन किए. इसमें खादी से जुड़े हुए कपड़ों का बाजार लगाया गया. खादी से बने कपड़ों के फैशन शो का आयोजन भी किया गया. इसके साथ ही खादी पहनकर डांसर ने डांस प्रस्तुत भी किया. खादी के कपड़ों के साथ ही खादी से बने आभूषण भी पेश किए गए, जो लोगों के लिए काफी नए थे.
सिंधु घाटी की सभ्यता में खादी के अवशेष
बता दें खादी की शुरुआत सिंधु घाटी सभ्यता से मानी जाती है. सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों में कुछ ऐसे यंत्र मिले हैं. जिससे इस बात का अंदाजा लगाया जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग भी खादी बनाते और पहनते थे. सदियों तक भारत में कपास के कपड़े बनाए और पहने जाते रहे हैं. इसका उपयोग तन ढकने के अलावा फैशन के लिए भी किया जाता था. भारत की खादी से बने कपड़े की दुनिया भर में बड़ी मांग थी. बंगाल प्रांत में खादी का मलमल का कपड़ा बनाया जाता था.
इस व्यापार से लाखों लोग रोजगार प्राप्त करते थे, लेकिन अंग्रेजों ने भारतीयों की कमर तोड़ने के लिए हाथ से बनी खादी की जगह मशीन से बने कपड़ों का चलन शुरू किया. इसकी वजह से खादी के परंपरागत व्यापार से जुड़े हुए लाखों लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया.
चरखे को महात्मा गांधी ने बनाया था अस्त्र
इसी दौर में महात्मा गांधी ने चरखे को स्वतंत्रता आंदोलन का अस्त्र बनाया. गांधीजी ने अंग्रेजों का विरोध करने और देश में लोगों में देशप्रेम जाहिर करने, लोगों को एकता के सूत्र में बांधने की अपील करते हुए, चरखा चलाया, लोगों को खुद भी चरखा चलाने की अपील की. खादी के बने कपड़े ही पहनने की भी बात कही. गांधीजी के इस चरखा आंदोलन का भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ा महत्व है. हालांकि स्वतंत्रता मिलने के बाद खादी सरकारी हो गई और इसका इस्तेमाल भी सीमित हो गया. जबकि आज भी कपास से बने हुए कपड़े हमारे इस्तेमाल में आने वाले बाकी सभी सिंथेटिक फाइबर के कपड़ों से ज्यादा सुकून और आराम देने वाला होता है.
जबलपुर में खादी को सहेजने का प्रयास
देशभर में कई सामाजिक संस्थाएं खादी को दोबारा समाज में स्थापित करने की कोशिश कर रही है. जबलपुर की भी एक संस्था ने ऐसा ही प्रयास किया है. जबलपुर में खादी के सामान बेचने के लिए मेला लगाया गया. एक ड्रेस डिजाइनर प्रिया श्रीवास्तव ने खादी से बनी हुई बेहतरीन मालाएं प्रदर्शित की. इन मालाओं का उपयोग फूलों की माला के स्थान पर भी किया जा सकता है. साथ ही यह मालाएं सजने-संवारने के लिए महिलाएं आभूषण के रूप में भी इस्तेमाल कर सकती हैं.
दिव्यांगों और बेरोजगार महिलाओं को दे रहे रोजगार
प्रिया श्रीवास्तव का कहना है कि "उन्होंने सामान्य सूत्र के धागों के साथ लकड़ी के कुछ खूबसूरत मोती बनाए हैं. इसके साथ ही धागों को कुछ ऐसी खूबसूरती से आपस में पिरोए गया है कि वे देखने में आभूषण जैसे लग रहे हैं." संस्था का दावा है कि वे इसे कुछ बेरोजगार महिलाओं और दिव्यांग लोगों से बनवाती हैं. इसके बाद इन्हें मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग और जबलपुर के रक्षा संस्थानों में सप्लाई किया जाता है. संस्था का दावा है कि इससे कई लोगों को रोजगार मिल रहा है.
खादी के कपड़े में हुआ बेली डांस
इसी आयोजन में खादी के साथ बेली डांस का फ्यूजन पेश किया गया. बेली डांसर ने खादी से बने हुए कपड़े पहनकर बेली डांस किया. बता दें बेली डांस के लिए सामान्य तौर पर सिंथेटिक फाइबर से बने हुए कपड़ों का इस्तेमाल किया जाता रहा है. यह पहला मौका होगा, जब बेली डांसर ने खादी पहन कर डांस किया. इसके अलावा जबलपुर में खादी से जुड़ा हुआ एक फैशन शो भी किया गया. इस फैशन शो में सभी मॉडल ने खादी के ही कपड़े पहने थे. इसमें युवाओं के साथ-साथ बच्चों ने भी खादी के कपड़े पहनकर फैशन शो में हिस्सा लिया.
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यह आयोजन स्वयं सेवी संस्था के अलावा भारत सरकार की खादी से जुड़े हुए विभागों के माध्यम से संपन्न करवाया गया. इससे न केवल लोगों में देश प्रेम की भावना बढ़ेगी, बल्कि खादी से जुड़े हुए व्यापार में लगे हुए लोगों को रोजगार भी मिलेगा और आम लोगों को आरामदायक कपड़े का एहसास भी होगा.