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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने वकीलों के इस आचरण पर जताई नाराजगी, पीड़ित को दी राहत - MP HIGH COURT

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि वकीलों द्वारा पीड़ित को बार-बार बयान लेने के लिए बाध्य करना आपत्तिजनक है.

MP High Court
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने वकीलों के इस आचरण पर जताई नाराजगी (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 6, 2024, 12:07 PM IST

जबलपुर। सत्र न्यायालय द्वारा प्रतिपरीक्षण (पीड़ित की विश्वसनीयता की जांच करना) का अधिकार समाप्त किये जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी. हाईकोर्ट जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि पीड़ित के मुख्य बयान दर्ज होने के बाद प्रतिपरीक्षण के लिए समय लेकर उसे प्रताड़ित किया जा रहा है. एकलपीठ ने अपने आदेश में जिला न्यायालय के आदेश सही ठहराते हुए कहा "अधिवक्ताओं द्वारा बाधा डालने की नीति पेशेवर कदाचार है."

रायसेन में दुष्कर्म के आरोपी ने लगाई याचिका

रायसेन के तुलसीराम लोधी ने याचिका में कहा गया था कि उसकी रिश्तेदार ने बेगमगंज में उसके खिलाफ दुष्कर्म का झूठा प्रकरण दर्ज करवाया है. वह 80 प्रतिशत विकलांग है और बैसाखी के सहारा लेकर चलता है. जिला न्यायालय में सुनवाई के दौरान उसने अधिवक्ता बदले का आवेदन देते हुए प्रतिपरीक्षण के लिए समय देने का आग्रह किया. न्यायालय ने उसके आवेदन को खारिज करते हुए प्रतिपरीक्षण का अधिकार समाप्त कर दिया. एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि फरवरी माह में पीड़ित प्रतिपरीक्षण के लिए फरवरी 2024 में न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुई थी. मुख्य बयान दर्ज होने के बाद याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने प्रतिपरीक्षण के लिए समय लिया था.

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पीड़ित को परेशान करने से हाईकोर्ट नाराज

इसके बाद फरवरी माह में दूसरी बार पीड़ित प्रतिपरीक्षण के लिए उपस्थित हुई. पीड़ित तीसरी बार भी प्रतिपरीक्षण के लिए न्यायालय में उपस्थित हुई. वहीं, याचिकाकर्ता ने अधिवक्ता बदलने की दलील देते हुए प्रतिपरीक्षण के लिए न्यायालय से समय मांगा. याचिकाकर्ता की तरफ से उपस्थित अधिवक्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि उसने प्रकरण को अच्छे से तैयार नहीं किया.

जबलपुर। सत्र न्यायालय द्वारा प्रतिपरीक्षण (पीड़ित की विश्वसनीयता की जांच करना) का अधिकार समाप्त किये जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी. हाईकोर्ट जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि पीड़ित के मुख्य बयान दर्ज होने के बाद प्रतिपरीक्षण के लिए समय लेकर उसे प्रताड़ित किया जा रहा है. एकलपीठ ने अपने आदेश में जिला न्यायालय के आदेश सही ठहराते हुए कहा "अधिवक्ताओं द्वारा बाधा डालने की नीति पेशेवर कदाचार है."

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रायसेन के तुलसीराम लोधी ने याचिका में कहा गया था कि उसकी रिश्तेदार ने बेगमगंज में उसके खिलाफ दुष्कर्म का झूठा प्रकरण दर्ज करवाया है. वह 80 प्रतिशत विकलांग है और बैसाखी के सहारा लेकर चलता है. जिला न्यायालय में सुनवाई के दौरान उसने अधिवक्ता बदले का आवेदन देते हुए प्रतिपरीक्षण के लिए समय देने का आग्रह किया. न्यायालय ने उसके आवेदन को खारिज करते हुए प्रतिपरीक्षण का अधिकार समाप्त कर दिया. एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि फरवरी माह में पीड़ित प्रतिपरीक्षण के लिए फरवरी 2024 में न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुई थी. मुख्य बयान दर्ज होने के बाद याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने प्रतिपरीक्षण के लिए समय लिया था.

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इसके बाद फरवरी माह में दूसरी बार पीड़ित प्रतिपरीक्षण के लिए उपस्थित हुई. पीड़ित तीसरी बार भी प्रतिपरीक्षण के लिए न्यायालय में उपस्थित हुई. वहीं, याचिकाकर्ता ने अधिवक्ता बदलने की दलील देते हुए प्रतिपरीक्षण के लिए न्यायालय से समय मांगा. याचिकाकर्ता की तरफ से उपस्थित अधिवक्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि उसने प्रकरण को अच्छे से तैयार नहीं किया.

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