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मां का भरण-पोषण करना बेटे का नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी : दिल्ली हाईकोर्ट - सीनियर सिटीजन एक्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सीनियर सिटीजन एक्ट वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है और इसका उपयोग संपत्ति विवादों को निपटाने के लिए नहीं किया जा सकता. एक केस में कोर्ट ने बेटे को मां के भरण-पोषण के लिए हर महीने 10 हजार रुपये देने का निर्देश दिया है.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Feb 23, 2024, 1:31 PM IST

Updated : Feb 23, 2024, 7:04 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सीनियर सिटीजन एक्ट वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा के लिए है. मां का भरण-पोषण करना हर बेटे की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है. अधिनियम की धारा 4 (2) बच्चों पर अपने मां-पिता के भरण-पोषण का दायित्व डालती है ताकि वे सामान्य जीवन जी सकें. जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की बेंच ने बेटे को मां के भरण-पोषण के लिए हर महीने 10 हजार रुपये देने का निर्देश देते हुए यह टिप्पणी की है.

महिला ने पहले अपने गुजारे के लिए दिल्ली मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सिनियर सिटिजंस रुल्स की धारा 22(3) के तहत डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के यहां याचिका दायर किया था. डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के यहां दायर याचिका में महिला ने कहा था कि, "उसके बेटे और बहु ने उसका सामान घर से निकाल दिया है." डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में महिला की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि, "महिला जिस संपत्ति पर मालिकाना हक की बात कर रही है उसका आधार पावर ऑफ अटार्नी है."

डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने कहा कि, "संपत्ति को लेकर कई मामले साकेत कोर्ट में चल रहे हैं, इसलिए महिला के पक्ष में आदेश नहीं दिया जा सकता है. डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ महिला ने डिविजनल कमिश्नर के यहां चुनौती दी. डिविजनल कमिश्नर ने भी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के आदेश पर मुहर लगा दिया. डिविजनल कमिश्नर के आदेश के खिलाफ महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर किया था. हाईकोर्ट ने 9 अगस्त 2023 को दोनों पक्षों में मध्यस्थता के लिए भेजा था, जो असफल रहा."

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सीनियर सिटीजन एक्ट वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा के लिए है. मां का भरण-पोषण करना हर बेटे की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है. अधिनियम की धारा 4 (2) बच्चों पर अपने मां-पिता के भरण-पोषण का दायित्व डालती है ताकि वे सामान्य जीवन जी सकें. जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की बेंच ने बेटे को मां के भरण-पोषण के लिए हर महीने 10 हजार रुपये देने का निर्देश देते हुए यह टिप्पणी की है.

महिला ने पहले अपने गुजारे के लिए दिल्ली मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सिनियर सिटिजंस रुल्स की धारा 22(3) के तहत डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के यहां याचिका दायर किया था. डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के यहां दायर याचिका में महिला ने कहा था कि, "उसके बेटे और बहु ने उसका सामान घर से निकाल दिया है." डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में महिला की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि, "महिला जिस संपत्ति पर मालिकाना हक की बात कर रही है उसका आधार पावर ऑफ अटार्नी है."

डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने कहा कि, "संपत्ति को लेकर कई मामले साकेत कोर्ट में चल रहे हैं, इसलिए महिला के पक्ष में आदेश नहीं दिया जा सकता है. डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ महिला ने डिविजनल कमिश्नर के यहां चुनौती दी. डिविजनल कमिश्नर ने भी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के आदेश पर मुहर लगा दिया. डिविजनल कमिश्नर के आदेश के खिलाफ महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर किया था. हाईकोर्ट ने 9 अगस्त 2023 को दोनों पक्षों में मध्यस्थता के लिए भेजा था, जो असफल रहा."

Last Updated : Feb 23, 2024, 7:04 PM IST
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