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झारखंड भाजपा में हावी हो रही है जयचंदों की टोली, बाबूलाल मरांडी पर कांग्रेस ने ली चुटकी, भाजपा ने ऐसे दिया जवाब - Allegations against Babulal Marandi - ALLEGATIONS AGAINST BABULAL MARANDI

Babulal Marandi. झारखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी पर कांग्रेस की ओर से गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं. लोकसभा के लिए टिकट पाने वालों की सूची में अधिकतकर पूर्व जेवीएम के नेता शामिल हैं. कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी में जयचंदों की टोली बन गई है. बीजेपी की ओर से भी कांग्रेस को जवाब दिया गया है.

Allegations against Babulal Marandi
Allegations against Babulal Marandi
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Mar 30, 2024, 3:01 PM IST

बीजेपी और कांग्रेस नेताओं के बयान

रांची: झारखंड में लोकसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों के नाम घोषित होने के बाद कई सवाल उठने लगे हैं. विपक्षी दल तो यहां तक कहने लगे हैं झारखंड भाजपा में जयचंदों को तरजीह मिल रही है. कैडर की अनदेखी की गई है. इसके लिए सीधे तौर पर प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी पर सवाल उठाए जा रहे हैं. वहीं राजपूत जाति से आने वाले दो सीटिंग सांसदों का टिकट काटे जाने पर अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ने भी अपनी आपत्ति जतायी है.

दरअसल, भाजपा ने लोकसभा की 13 और गांडेय विधानसभा उपचुनाव के लिए अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी है. पार्टी ने पांच सीटिंग सांसदों (लोहरदगा, चतरा, धनबाद, हजारीबाग, दुमका) का टिकट काटकर झामुमो से आई विधायक सीता सोरेन को दुमका, विधायक मनीष जयसवाल को हजारीबाग और विधायक ढुल्लू महतो को धनबाद का प्रत्याशी बनाया है.

भाजपा के इस बदलाव पर प्रदेश कांग्रेस ने ना सिर्फ कटाक्ष किया है बल्कि बाबूलाल मरांडी पर गंभीर आरोप लगाया है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता जगदीश साहू ने कहा है कि कैडर की बात करने वाली भाजपा पर प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी हावी हो गये हैं. उन्होंने जेवीएम के दौर में उनके साथ रहे नेताओं को तरजीह दी है. इससे साफ है कि भाजपा जयचंदों पर भरोसा कर रही है, अब भाजपा को अपने कैडर पर भरोसा नहीं रहा.

कांग्रेस के इस आरोप पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुलनाथ शाहदेव ने कहा कि क्या पटेल साहेब भी जयचंद हैं. भाजपा में हमारी विचारधारा को मानकर जो भी आता है, वह परिवार का सदस्य बन जाता है. भाजपा ऐसे ही 2 सीटों से 303 सीट तक नहीं पहुंची है. भाजपा के कार्यकर्ता अनुशासित होते हैं. जिसको जो जिम्मेदारी मिलती है, उनका निर्वहन किया जाता है. भाजपा के कार्यकर्ता शीर्ष नेतृत्व के फैसले पर कभी सवाल नहीं उठाते.

जेवीएम से जुड़े किन नेताओं को मिला टिकट

झारखंड में इन दिनों इस बात की जोरशोर से चर्चा है कि बाबूलाल मरांडी भाजपा के भीतर अपनी टीम खड़ी कर रहे हैं. इसकी वजह बने हैं मनीष जयसवाल, कालीचरण सिंह, ढुल्लू महतो और दिलीप कुमार वर्मा. दरअसल, ढुल्लू महतो जेवीएम के टिकट पर ही बाघमारा से चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने थे. इसके बाद भाजपा में शामिल हो गये थे.

मनीष जयसवाल भी जेवीएम की टिकट पर मांडू से पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़े थे. लेकिन तीसरे स्थान पर रहे थे. बाद में भाजपा में शामिल होकर हजारीबाग से विधायक बने. इसी तरह चतरा लोकसभा सीट पर भाजपा का टिकट पाने वाले कालीचरण सिंह भी जेवीएम से जुड़े रहे हैं. यही नहीं सरफराज अहमद के इस्तीफे के बाद खाली हुई गांडेय विधानसभा सीट के लिए होने वाले उपचुनाव में भाजपा ने जिस दिलीप कुमार वर्मा को प्रत्याशी बनाया है, वह भी जेवीएम से ही जुड़े रहे हैं.

यह आरोप रांची से भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ पर भी लग रहे हैं. क्योंकि वह भी बाबूलाल मरांडी की पूर्व की पार्टी जेवीएम में प्रवक्ता की भूमिका निभा चुके हैं. हालांकि उन्हें पूर्व सीएम रघुवर दास की पसंद माना जाता है.

भाजपा कैसे करती है प्रत्याशियों का चयन

कांग्रेस के नेता चाहे जो आरोप लगाएं लेकिन सच यह है कि प्रत्याशियों के चयन के लिए भाजपा में एक लंबी चौड़ी प्रक्रिया पूरी की जाती है. चुनाव के वक्त राज्य की चुनाव समिति ग्रास रुट स्तर पर संभावित प्रत्याशियों के नाम कलेक्ट करती है. इसके बाद राज्य स्तर पर रायशुमारी होती है. इसके बाद प्रस्तावित नामों से तीन नामों को प्राथमिकता के आधार पर प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी में बांटकर केंद्रीय चुनाव समिति को भेजती है.

इस लिस्ट पर केंद्रीय चुनाव समिति मंथन करती है. इस दौरान इंटरनल फीडबैक पर भी चर्चा होती. तब जाकर तीन में से किसी एक प्रत्याशी के नाम की घोषणा होती है. लेकिन कभी कभार कुछ सीटों पर केंद्रीय चुनाव समिति अपने स्तर से फैसला लेती है. दुमका सीट पर यही देखने को मिला. पूर्व में सीटिंग सांसद सुनील सोरेन का नाम घोषित हो चुका था लेकिन बाद में सीता सोरेन के भाजपा में आने पर सुनील सोरेन का नाम काट दिया गया.

झारखंड की राजनीति से रघुवर दास आउट हो चुके हैं. पार्टी ने उन्हें ओडिशा का राज्यपाल बना दिया है. अर्जुन मुंडा केंद्र की राजनीति में मशरुफ हैं. अब झारखंड में भाजपा के सबसे बड़े नेता हैं बाबूलाल मरांडी. सोरेन परिवार से सीधा अदावत लेकर उन्होंने शीर्ष नेतृत्व के सामने अपनी अलग पहचान कायम की है. वैसे 2006 में भाजपा छोड़कर जब उन्होंने जेवीएम बनायी थी, तब भी अपना लोहा मनवाया था. अलग बात है कि उनके कंधे पर सवार होकर कई नेता विधायक बनकर भाजपा में आ गये.

अब बाबूलाल मरांडी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं. वह संगठन को चलाना जानते हैं. लेकिन इसबार प्रत्याशियों के चयन में अपनी भूमिका की वजह से चर्चा में आ गये हैं. यह विवाद इसलिए उठा क्योंकि दर्जनों आपराधिक कांड में शामिल बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो को धनबाद जैसी सीट से प्रत्याशी बना दिया है. चतरा और धनबाद में राजपूत जाति से आने वाले सुनील कुमार सिंह और पीएन सिंह चुनाव जीतते रहे हैं. इन दोनों का टिकट कटने पर अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की झारखंड इकाई भी नाराजगी जताते हुए कहा कि भाजपा ने सामाजिक समीकरण की अनदेखी की है.

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दरअसल, भाजपा ने लोकसभा की 13 और गांडेय विधानसभा उपचुनाव के लिए अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी है. पार्टी ने पांच सीटिंग सांसदों (लोहरदगा, चतरा, धनबाद, हजारीबाग, दुमका) का टिकट काटकर झामुमो से आई विधायक सीता सोरेन को दुमका, विधायक मनीष जयसवाल को हजारीबाग और विधायक ढुल्लू महतो को धनबाद का प्रत्याशी बनाया है.

भाजपा के इस बदलाव पर प्रदेश कांग्रेस ने ना सिर्फ कटाक्ष किया है बल्कि बाबूलाल मरांडी पर गंभीर आरोप लगाया है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता जगदीश साहू ने कहा है कि कैडर की बात करने वाली भाजपा पर प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी हावी हो गये हैं. उन्होंने जेवीएम के दौर में उनके साथ रहे नेताओं को तरजीह दी है. इससे साफ है कि भाजपा जयचंदों पर भरोसा कर रही है, अब भाजपा को अपने कैडर पर भरोसा नहीं रहा.

कांग्रेस के इस आरोप पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुलनाथ शाहदेव ने कहा कि क्या पटेल साहेब भी जयचंद हैं. भाजपा में हमारी विचारधारा को मानकर जो भी आता है, वह परिवार का सदस्य बन जाता है. भाजपा ऐसे ही 2 सीटों से 303 सीट तक नहीं पहुंची है. भाजपा के कार्यकर्ता अनुशासित होते हैं. जिसको जो जिम्मेदारी मिलती है, उनका निर्वहन किया जाता है. भाजपा के कार्यकर्ता शीर्ष नेतृत्व के फैसले पर कभी सवाल नहीं उठाते.

जेवीएम से जुड़े किन नेताओं को मिला टिकट

झारखंड में इन दिनों इस बात की जोरशोर से चर्चा है कि बाबूलाल मरांडी भाजपा के भीतर अपनी टीम खड़ी कर रहे हैं. इसकी वजह बने हैं मनीष जयसवाल, कालीचरण सिंह, ढुल्लू महतो और दिलीप कुमार वर्मा. दरअसल, ढुल्लू महतो जेवीएम के टिकट पर ही बाघमारा से चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने थे. इसके बाद भाजपा में शामिल हो गये थे.

मनीष जयसवाल भी जेवीएम की टिकट पर मांडू से पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़े थे. लेकिन तीसरे स्थान पर रहे थे. बाद में भाजपा में शामिल होकर हजारीबाग से विधायक बने. इसी तरह चतरा लोकसभा सीट पर भाजपा का टिकट पाने वाले कालीचरण सिंह भी जेवीएम से जुड़े रहे हैं. यही नहीं सरफराज अहमद के इस्तीफे के बाद खाली हुई गांडेय विधानसभा सीट के लिए होने वाले उपचुनाव में भाजपा ने जिस दिलीप कुमार वर्मा को प्रत्याशी बनाया है, वह भी जेवीएम से ही जुड़े रहे हैं.

यह आरोप रांची से भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ पर भी लग रहे हैं. क्योंकि वह भी बाबूलाल मरांडी की पूर्व की पार्टी जेवीएम में प्रवक्ता की भूमिका निभा चुके हैं. हालांकि उन्हें पूर्व सीएम रघुवर दास की पसंद माना जाता है.

भाजपा कैसे करती है प्रत्याशियों का चयन

कांग्रेस के नेता चाहे जो आरोप लगाएं लेकिन सच यह है कि प्रत्याशियों के चयन के लिए भाजपा में एक लंबी चौड़ी प्रक्रिया पूरी की जाती है. चुनाव के वक्त राज्य की चुनाव समिति ग्रास रुट स्तर पर संभावित प्रत्याशियों के नाम कलेक्ट करती है. इसके बाद राज्य स्तर पर रायशुमारी होती है. इसके बाद प्रस्तावित नामों से तीन नामों को प्राथमिकता के आधार पर प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी में बांटकर केंद्रीय चुनाव समिति को भेजती है.

इस लिस्ट पर केंद्रीय चुनाव समिति मंथन करती है. इस दौरान इंटरनल फीडबैक पर भी चर्चा होती. तब जाकर तीन में से किसी एक प्रत्याशी के नाम की घोषणा होती है. लेकिन कभी कभार कुछ सीटों पर केंद्रीय चुनाव समिति अपने स्तर से फैसला लेती है. दुमका सीट पर यही देखने को मिला. पूर्व में सीटिंग सांसद सुनील सोरेन का नाम घोषित हो चुका था लेकिन बाद में सीता सोरेन के भाजपा में आने पर सुनील सोरेन का नाम काट दिया गया.

झारखंड की राजनीति से रघुवर दास आउट हो चुके हैं. पार्टी ने उन्हें ओडिशा का राज्यपाल बना दिया है. अर्जुन मुंडा केंद्र की राजनीति में मशरुफ हैं. अब झारखंड में भाजपा के सबसे बड़े नेता हैं बाबूलाल मरांडी. सोरेन परिवार से सीधा अदावत लेकर उन्होंने शीर्ष नेतृत्व के सामने अपनी अलग पहचान कायम की है. वैसे 2006 में भाजपा छोड़कर जब उन्होंने जेवीएम बनायी थी, तब भी अपना लोहा मनवाया था. अलग बात है कि उनके कंधे पर सवार होकर कई नेता विधायक बनकर भाजपा में आ गये.

अब बाबूलाल मरांडी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं. वह संगठन को चलाना जानते हैं. लेकिन इसबार प्रत्याशियों के चयन में अपनी भूमिका की वजह से चर्चा में आ गये हैं. यह विवाद इसलिए उठा क्योंकि दर्जनों आपराधिक कांड में शामिल बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो को धनबाद जैसी सीट से प्रत्याशी बना दिया है. चतरा और धनबाद में राजपूत जाति से आने वाले सुनील कुमार सिंह और पीएन सिंह चुनाव जीतते रहे हैं. इन दोनों का टिकट कटने पर अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की झारखंड इकाई भी नाराजगी जताते हुए कहा कि भाजपा ने सामाजिक समीकरण की अनदेखी की है.

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