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अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस ! सामाजिक तानाबाना सुधरे और सुरक्षित माहौल मिले तब ही तो आगे बढ़ेंगी बेटियां - INTERNATIONAL GIRL CHILD DAY

आज अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस है. हर साल बालिका हिंसा के बढ़ते आंकड़े और सामाजिक ताने बाने के भीच भेदभाव का शिकार हो रही है.

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस (फाइल फोटो)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 11, 2024, 8:57 AM IST

जयपुर. कहा जाता है कि जब लड़कियां शिक्षित होती हैं तो देश ज्यादा मज़बूत और सशक्त होता है. दुनियाभर में हर साल 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. इस दिन के मनाने की शुरुआत यूनाइटेड नेशन ने सन 2011 में की थी. इंटरनेशनल डे ऑफ़ गर्ल चाइल्ड को मनाने के पीछे का उद्देश्य लड़कियों को विकास के अवसर प्रदान कर समाज में लड़कियों को सम्मान और अधिकार दिलाना है. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के ख़ास मौके पर हम आपको बताते हैं कि राजस्थान में हमारी बेटियों को कितना शिक्षित और सुरक्षित माहौल मिल रहा है. आंकड़े बताते हैं कि बच्चियों के साथ दरिंदगी की घटना साल दर साल बढ़ती जा रही है. स्कूल ड्रॉप आउट और बाल विवाह के मामले में सरकार और सामाजिक संगठनों के प्रयास के बावजूद सुधार नही हो रहा है.

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का इतिहास और उद्देश्य : अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बालिका दिवस मनाने की पहल एक ग़ैर सरकारी संगठन "प्लान इंटरनेशनल" नाम के प्रोजेक्ट के रूप में की गई थी. इस संगठन ने "क्योंकि मैं एक लड़की हूँ" नाम से कैंपेन शुरू किया था. इसके बाद इस अभियान को इंटरनेशनल लेवल पर ले जाने के लिए कनाडा सरकार से बातचीत की गई और उसके बाद कनाडा सरकार ने इसके प्रस्ताव को 55वीं आम सभा में रखा. फिर संयुक्त राष्ट्र द्वारा यह प्रस्ताव 19 दिसंबर 2011 को पारित किया गया और तब से विश्व में 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाना शुरू हो गया. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने के पीछे का मक़सद लड़कियों के जीवन में आने वाली चुनौतियों और उनके अधिकारों के संरक्षण के बारे में जागरुकता फैलाने और लड़कियों के अधिकारों से रू-ब-रू कराना है. देश में लड़कियों की ओर से सामना की जाने वाली सभी प्रकार की आसमानताओं को दूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. बालिकाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना उनकी स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण के महत्व को समझना है.

सुरक्षित माहौल मिले तब ही तो आगे बढ़ेंगी बेटियां (वीडियो ईटीवी भारत जयपुर)

पढ़ें: हर कोई रह गया दंग, जब गरबा महोत्सव में 'नारी शक्ति' ने भांजी तलवारें

हर दिन 12 ज्यादा मासूम दरिंदगी की शिकार : जिस देश और प्रदेश में कन्याओं को देवी समान पूजा जाता हो उस प्रदेश में हर दिन 12 से ज्यादा मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी हो रही है. जिस राजस्थान की कभी महिलाओं के सम्मान और बलिदान के लिए पहचान हुआ करती थी, आज उस प्रदेश में नाबालिग बच्चियां और महिलाएं सुरक्षित नहीं है. राजस्थान पुलिस अपराध रिकॉर्ड के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में हर दिन 12 से ज्यादा नाबालिग बच्चियां के साथ दरिंदगी की घटना हो रही है. जनवरी 2024 से अप्रैल तक के आंकड़े देखें तो 982 से ज्यादा पोक्सो की धारा में मामले दर्ज किये गए. इससे पूर्व 2022 में 4145 और 2023 में 4217 मामले बच्चियों के साथ दरिंदगी के दर्ज किए. जबकि नाबालिग बच्चियों की हिंसा की बात करें तो 2022 में 7983, 2023 में 8414 और 2024 में मई तक 3879 मामले थानों में दर्ज हुए. सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल कहते हैं कि आज अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मना रहे हैं, लेकिन जिस प्रदेश में मासूम बच्चियों को सुरक्षित माहौल नहीं मिल रहा हो वहां उनके विकास और प्रोत्साहन की बात करना भी बेमानी है. पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में हर साल मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी की घटनाएं बढ़ रही है. सरकार आती है जाती है, राज बदलता रहता है , लेकिन बच्चियों की सुरक्षा की बात उनके लिए सिर्फ चुनावी जुमला होता है. बच्चियों को सुरक्षित और सामाजिक समानता के साथ हो रहे भेदभाव के बीच उनके विकास की बात करना बेमानी सा है.

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस (फाइल फोटो)

राजस्थान में हर चौथी लाडो का होता है बाल विवाह : एनएफएचएस - 5 सर्वे में 20 से 24 वर्ष की महिलाओं से उनकी शादी के बारे में पूछा गया तो 25 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उनकी शादी 18 से कम उम्र में हुई है. हालांकि पिछले डेटा के हिसाब से इस बार 8 फीसदी का सुधार है, लेकिन यह काफी नहीं है . पिछले कई सालों से बाल विवाह रोकने को लेकर सरकार और सामाजिक संगठन काम कर रहे हैं . तमाम प्रयास और कानून का इस्तेमाल करने के बाद भी अगर राजस्थान में हर चौथी लड़की का बाल विवाह होता है तो यह बड़ा शर्मनाक आंकड़ा है . 5 साल में आने वाले इस सर्वे में अगर हम 10 फीसदी सुधार कर पाए हैं . यह हमारी व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है .

पढ़ें: नवो बाड़मेर अभियान: दुकान के सामने बैठी कलेक्टर टीना डाबी, कहा- लगाओ झाड़ू

अभी और काम करने की जरूरत : इसी तरह से बच्चियों के स्कूल ड्रॉप आउट को देखें तो बड़ी चिंता की बात है कि सरकार और सामाजिक संगठनों के प्रयास के बावजूद भी अगर 25 फीसदी बच्चियां दसवीं से आगे पढाई नहीं कर पा रही है. कॉलेज शिक्षा का आंकड़ा तो इससे भी ज्यादा खराब है. बेटी बचाओ पढाओ की पूर्व राज्य ब्रांड एंबेसडर डॉ. अनुपमा सोनी कहती है कि आज अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस इस दिन प्रदेश की तमाम बच्चियों को शुभकामनाएं , लेकिन इस बात पर चिंतन करने की जरूरत है कि क्या वाकई मौजूदा माहौल में इस दिन को मनाने की सार्थकता है. जिस तरह का माहौल प्रदेश में बेटियों को लेकर बना है, उसमे जो कुछ किया जा रहा है वो काफी नही है. बालिकाओं को लेकर अभी और काम करने की जरूरत हैं . सरकार को शिक्षा के मूलभूत ढांचे को मजबूत करने की जरूरत हैं. जरूरत है बेटियों को शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ सुरक्षित माहौल में मिले. आज बेटियां कहीं भी बेटो से पीछे नही है लेकिन सामाजिक मानसिकता आज भी आजादी के इतने साल बाद नही बदल पा रही है, पुरुष प्रधान सोच आज भी बनी हुई है. अनुपमा ने कहा कि सामाजिक संगठनों और सरकार के साथ समाज मे भी सोच बदलने की जरूरत है. घर परिवार में आज भी बेटी और बेटों में भेदभाव किया जाता है, जब तक हम घर से बदलाव की शुरुआत नहीं करेंगे तब तक बालिका दिवस मनाना कोई सार्थक नही होगा.

जयपुर. कहा जाता है कि जब लड़कियां शिक्षित होती हैं तो देश ज्यादा मज़बूत और सशक्त होता है. दुनियाभर में हर साल 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. इस दिन के मनाने की शुरुआत यूनाइटेड नेशन ने सन 2011 में की थी. इंटरनेशनल डे ऑफ़ गर्ल चाइल्ड को मनाने के पीछे का उद्देश्य लड़कियों को विकास के अवसर प्रदान कर समाज में लड़कियों को सम्मान और अधिकार दिलाना है. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के ख़ास मौके पर हम आपको बताते हैं कि राजस्थान में हमारी बेटियों को कितना शिक्षित और सुरक्षित माहौल मिल रहा है. आंकड़े बताते हैं कि बच्चियों के साथ दरिंदगी की घटना साल दर साल बढ़ती जा रही है. स्कूल ड्रॉप आउट और बाल विवाह के मामले में सरकार और सामाजिक संगठनों के प्रयास के बावजूद सुधार नही हो रहा है.

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का इतिहास और उद्देश्य : अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बालिका दिवस मनाने की पहल एक ग़ैर सरकारी संगठन "प्लान इंटरनेशनल" नाम के प्रोजेक्ट के रूप में की गई थी. इस संगठन ने "क्योंकि मैं एक लड़की हूँ" नाम से कैंपेन शुरू किया था. इसके बाद इस अभियान को इंटरनेशनल लेवल पर ले जाने के लिए कनाडा सरकार से बातचीत की गई और उसके बाद कनाडा सरकार ने इसके प्रस्ताव को 55वीं आम सभा में रखा. फिर संयुक्त राष्ट्र द्वारा यह प्रस्ताव 19 दिसंबर 2011 को पारित किया गया और तब से विश्व में 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाना शुरू हो गया. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने के पीछे का मक़सद लड़कियों के जीवन में आने वाली चुनौतियों और उनके अधिकारों के संरक्षण के बारे में जागरुकता फैलाने और लड़कियों के अधिकारों से रू-ब-रू कराना है. देश में लड़कियों की ओर से सामना की जाने वाली सभी प्रकार की आसमानताओं को दूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. बालिकाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना उनकी स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण के महत्व को समझना है.

सुरक्षित माहौल मिले तब ही तो आगे बढ़ेंगी बेटियां (वीडियो ईटीवी भारत जयपुर)

पढ़ें: हर कोई रह गया दंग, जब गरबा महोत्सव में 'नारी शक्ति' ने भांजी तलवारें

हर दिन 12 ज्यादा मासूम दरिंदगी की शिकार : जिस देश और प्रदेश में कन्याओं को देवी समान पूजा जाता हो उस प्रदेश में हर दिन 12 से ज्यादा मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी हो रही है. जिस राजस्थान की कभी महिलाओं के सम्मान और बलिदान के लिए पहचान हुआ करती थी, आज उस प्रदेश में नाबालिग बच्चियां और महिलाएं सुरक्षित नहीं है. राजस्थान पुलिस अपराध रिकॉर्ड के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में हर दिन 12 से ज्यादा नाबालिग बच्चियां के साथ दरिंदगी की घटना हो रही है. जनवरी 2024 से अप्रैल तक के आंकड़े देखें तो 982 से ज्यादा पोक्सो की धारा में मामले दर्ज किये गए. इससे पूर्व 2022 में 4145 और 2023 में 4217 मामले बच्चियों के साथ दरिंदगी के दर्ज किए. जबकि नाबालिग बच्चियों की हिंसा की बात करें तो 2022 में 7983, 2023 में 8414 और 2024 में मई तक 3879 मामले थानों में दर्ज हुए. सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल कहते हैं कि आज अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मना रहे हैं, लेकिन जिस प्रदेश में मासूम बच्चियों को सुरक्षित माहौल नहीं मिल रहा हो वहां उनके विकास और प्रोत्साहन की बात करना भी बेमानी है. पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में हर साल मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी की घटनाएं बढ़ रही है. सरकार आती है जाती है, राज बदलता रहता है , लेकिन बच्चियों की सुरक्षा की बात उनके लिए सिर्फ चुनावी जुमला होता है. बच्चियों को सुरक्षित और सामाजिक समानता के साथ हो रहे भेदभाव के बीच उनके विकास की बात करना बेमानी सा है.

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस (फाइल फोटो)

राजस्थान में हर चौथी लाडो का होता है बाल विवाह : एनएफएचएस - 5 सर्वे में 20 से 24 वर्ष की महिलाओं से उनकी शादी के बारे में पूछा गया तो 25 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उनकी शादी 18 से कम उम्र में हुई है. हालांकि पिछले डेटा के हिसाब से इस बार 8 फीसदी का सुधार है, लेकिन यह काफी नहीं है . पिछले कई सालों से बाल विवाह रोकने को लेकर सरकार और सामाजिक संगठन काम कर रहे हैं . तमाम प्रयास और कानून का इस्तेमाल करने के बाद भी अगर राजस्थान में हर चौथी लड़की का बाल विवाह होता है तो यह बड़ा शर्मनाक आंकड़ा है . 5 साल में आने वाले इस सर्वे में अगर हम 10 फीसदी सुधार कर पाए हैं . यह हमारी व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है .

पढ़ें: नवो बाड़मेर अभियान: दुकान के सामने बैठी कलेक्टर टीना डाबी, कहा- लगाओ झाड़ू

अभी और काम करने की जरूरत : इसी तरह से बच्चियों के स्कूल ड्रॉप आउट को देखें तो बड़ी चिंता की बात है कि सरकार और सामाजिक संगठनों के प्रयास के बावजूद भी अगर 25 फीसदी बच्चियां दसवीं से आगे पढाई नहीं कर पा रही है. कॉलेज शिक्षा का आंकड़ा तो इससे भी ज्यादा खराब है. बेटी बचाओ पढाओ की पूर्व राज्य ब्रांड एंबेसडर डॉ. अनुपमा सोनी कहती है कि आज अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस इस दिन प्रदेश की तमाम बच्चियों को शुभकामनाएं , लेकिन इस बात पर चिंतन करने की जरूरत है कि क्या वाकई मौजूदा माहौल में इस दिन को मनाने की सार्थकता है. जिस तरह का माहौल प्रदेश में बेटियों को लेकर बना है, उसमे जो कुछ किया जा रहा है वो काफी नही है. बालिकाओं को लेकर अभी और काम करने की जरूरत हैं . सरकार को शिक्षा के मूलभूत ढांचे को मजबूत करने की जरूरत हैं. जरूरत है बेटियों को शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ सुरक्षित माहौल में मिले. आज बेटियां कहीं भी बेटो से पीछे नही है लेकिन सामाजिक मानसिकता आज भी आजादी के इतने साल बाद नही बदल पा रही है, पुरुष प्रधान सोच आज भी बनी हुई है. अनुपमा ने कहा कि सामाजिक संगठनों और सरकार के साथ समाज मे भी सोच बदलने की जरूरत है. घर परिवार में आज भी बेटी और बेटों में भेदभाव किया जाता है, जब तक हम घर से बदलाव की शुरुआत नहीं करेंगे तब तक बालिका दिवस मनाना कोई सार्थक नही होगा.

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