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'कम्बश्चन पर्यावरण के लिए घातक, प्रदूषण को रोकने के लिए शोध की आवश्यकता' बोले डॉक्टर सोमनाथ

इसरो अध्यक्ष डॉ. सोमनाथ ने देहरादून में निजी कार्यक्रम में बढ़ते प्रदूषण विषय पर छात्रों को संबोधित किया. उन्होंने कम्बश्चन पर शोध की आवश्यकता जताई.

RESEARCH ON COMBUSTION
कम्बश्चन पर्यावरण के लिए घातक-डॉक्टर सोमनाथ (PHOTO-ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 9, 2024, 10:22 PM IST

देहरादूनः दुनिया भर में बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर कई देश गंभीर हैं. कई शोध भी इसके लिए किए जा रहे है. इस दिशा में देश की सबसे बड़ी अंतरिक्ष संस्था भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भी शोध की तरफ बढ़ रहा है. शनिवार को देहरादून में एक कार्यक्रम में पहुंचे केंद्र सरकार के अंतरिक्ष विभाग के सचिव व इसरो के अध्यक्ष डॉ. एस सोमनाथ ने प्रदूषण पर छात्रों की संबोधित करते हुए कई महत्वपूर्ण बातें बताई. डॉ सोमनाथ ने कम्बश्चन (दहन) की प्रक्रिया से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए व्यापक स्तर पर शोध करने का आह्वान किया है.

किए ये बदलाव: डॉ. एस सोमनाथ ने कहा कि कम्बश्चन की प्रक्रिया भी ईंधन जलने की प्रक्रिया की तरह होती है. लेकिन कम्बश्चन में ऑक्सीजन के साथ रिएक्शन होता है और अधिक मात्रा में एनर्जी रिलीज होती है. इससे यहां भी और अंतरिक्ष में भी प्रदूषण होता है. रॉकेट में 80 प्रतिशत ईंधन होता है और केवल 10 से 20 प्रतिशत स्थान पर इंजन होता है. इसमें इस्तेमाल किए जाने वाला ईंधन एल्यूमीनियम पाउडर से ऑक्साइड के रूप में होता है. ऐसे ही बहुत सारे खतरनाक पदार्थ जिन्हें ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, उनमें हाइड्रो क्लोराइड भी शामिल है. यह बहुत ज्यादा प्रदूषण करता है. रॉकेट इंजन के डिजाइन में ऑटोमाइजेशन होना चाहिए.

इसरो अध्यक्ष डॉ. सोमनाथ ने कहा कि पहले रॉकेट के वापस आने के बाद उसके इंजन दोबारा इस्तेमाल नहीं हो पाते थे. लेकिन अब इंजीनियरिंग ने इसे संभव बना दिया है. अब रॉकेट के इंजन दोबारा उपयोग किए जाने लगे हैं और इनकी डिटेलिंग में भी सकारात्मक बदलाव आए हैं.

शोध की है आवश्यकता: डॉ. सोमनाथ ने कहा कि एनर्जी और कम्बश्चन आज शोध के महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं. इनकी क्षमता बढ़ाने के साथ ही प्रदूषण कम करना शोध के विषय हैं. हमारे पास उपलब्ध ग्रीन फ्यूल- हाइड्रोजन, मेथेनॉल, अमोनिया आदि का बेहतर उपयोग और इनसे जुड़ी चुनौतियों पर भी कार्य किया जाना है. कोयला, लकड़ियां आदि ऊर्जा के अच्छे स्रोत हैं, लेकिन इनसे कॉर्बन का उत्सर्जन अधिक होता है. इनको गैस के रूप में बदलकर इनका कैसे उपयोग किया जाए कि प्रदूषण न हो, यह भी रिसर्च का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है. कम्बश्चन में जीरो उत्सर्जन पर जाने का उद्देश्य लेकर कार्य किए जा रहे हैं.

पूरी दुनिया विपदा से परेशान: डॉ. सोमनाथ ने कहा कि उत्तराखंड ही नहीं पूरी दुनिया में ऐसी आपदाएं इसी कारण आ रही हैं. कार्बन डाई ऑक्साइड और ग्रीन हाउस गैसों की वजह से ये सब हो रहा है. इसके लिए हम जिम्मेदार हैं. डॉ. सोमनाथ ने कहा कि हमने विज्ञान और तकनीकों को विकसित कर लिया है. इनसे होने वाले प्रदूषण के लिए हम जिम्मेदार हैं. रॉकेट, एयरक्राफ्ट आदि में इस्तेमाल होने वाले आईसी इंजन की कम्बश्चन की प्रक्रिया को कंट्रोल करने पर हमें ध्यान देना चाहिए. मोबिलिटी, इंडस्ट्री, थर्मल पावर प्लांट, केमिकल प्रोसेस और कम्बश्चन प्रोसेस से कैसे कम से कम प्रदूषण हो, इसके लिए सॉल्यूशन कम है. इन क्षेत्रों में रिसर्च की बहुत आवश्यकता है.

वाहन प्रदूषण रोकने के उपाय: उन्होंने कहा कि रिन्यूएबल एनर्जी, इलेक्ट्रिक वाहन, हाइब्रिड वाहन और वैकल्पिक ईंधन वातावरण में सबसे कम प्रदूषण करते हैं. मौजूदा ईंधनों की जगह इनके इस्तेमाल के लिए रणनीति बनाने की आवश्यकता है. मोबिलिटी की मुख्य शक्ति आईसी इंजन होती है. आईसी इंजन की क्षमता बढ़ाने और प्रदूषण में कमी लाने के लिए कार्य करने की आवश्यकता है. दो तरह के ईंधनों को मिलाकर बनने वाले ईंधनों की क्षमता अधिक हो सकती है. इस पर और रिसर्च करने की आवश्यकता है. जैसे डीजल और हाइड्रोजन, सीएनजी और हाइड्रोजन को मिलाकर एक मिश्रित ईंधन बनाए जा सकते हैं. इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी उसके पूरे कार्यकाल में होने वाले प्रदूषण की हाईब्रिड वाहनों से होने वाले प्रदूषण से तुलना की जाए, तो दोनों एक जैसे ही होते हैं. समय के साथ इलेक्ट्रिक वाहन की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है.

नीति आयोग के सदस्य डॉ सारस्वत ने वैकल्पिक ईंधनों का उल्लेख करते हुए कहा कि मिथेनॉल प्रदूषण को 50 प्रतिशत तक कम करता है, इसमें सल्फर गैस कम उत्सर्जित होती है और कॉर्बन डाई ऑक्साइड भी कम पैदा होती है. हाइड्रोजन सबसे स्वच्छ ईंधन है.

सौर ऊर्जा पर जोर: आईसी इंजन में कम्बश्चन की प्रक्रिया में हाइड्रोजन का ईंधन के रूप में उपयोग कर सकते हैं. हाइड्रोजन से स्टोरेज, ट्रांसपोर्टेशन जैसी कई चुनौतियां जुड़ी होती हैं. हाइड्रोजन उत्पादन के तरीकों की लागत कम से कम करने और स्टोरेज आदि की चुनौतियां कम करने पर कार्य करने की आवश्यकता है. द कम्बश्चन इंस्टीट्यूट-इंडियन सेक्शन के सचिव पीके पांडे ने इंस्टीट्यूट की उपलब्धियों और गतिविधियों पर प्रकाश डाला.

सम्मेलन में दास्तूर एनर्जी के सीईओ व मैनेजिंग डायरेक्टर अटानू मुखर्जी ने एनर्जी के स्तर, आर्थिक और सुरक्षा पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि के जितने लाभ हैं, उतनी ही उनकी सीमाएं भी हैं. इसलिए सही तरह के ईंधन का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है. प्रख्यात मिसाइल वैज्ञानिक, नीति आयोग के सदस्य व ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ. वी के सारस्वत ने कहा कि बाढ़, भूस्खलन और मौसम में बदलाव का कारण ग्लोबल वार्मिंग है.

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देहरादूनः दुनिया भर में बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर कई देश गंभीर हैं. कई शोध भी इसके लिए किए जा रहे है. इस दिशा में देश की सबसे बड़ी अंतरिक्ष संस्था भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भी शोध की तरफ बढ़ रहा है. शनिवार को देहरादून में एक कार्यक्रम में पहुंचे केंद्र सरकार के अंतरिक्ष विभाग के सचिव व इसरो के अध्यक्ष डॉ. एस सोमनाथ ने प्रदूषण पर छात्रों की संबोधित करते हुए कई महत्वपूर्ण बातें बताई. डॉ सोमनाथ ने कम्बश्चन (दहन) की प्रक्रिया से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए व्यापक स्तर पर शोध करने का आह्वान किया है.

किए ये बदलाव: डॉ. एस सोमनाथ ने कहा कि कम्बश्चन की प्रक्रिया भी ईंधन जलने की प्रक्रिया की तरह होती है. लेकिन कम्बश्चन में ऑक्सीजन के साथ रिएक्शन होता है और अधिक मात्रा में एनर्जी रिलीज होती है. इससे यहां भी और अंतरिक्ष में भी प्रदूषण होता है. रॉकेट में 80 प्रतिशत ईंधन होता है और केवल 10 से 20 प्रतिशत स्थान पर इंजन होता है. इसमें इस्तेमाल किए जाने वाला ईंधन एल्यूमीनियम पाउडर से ऑक्साइड के रूप में होता है. ऐसे ही बहुत सारे खतरनाक पदार्थ जिन्हें ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, उनमें हाइड्रो क्लोराइड भी शामिल है. यह बहुत ज्यादा प्रदूषण करता है. रॉकेट इंजन के डिजाइन में ऑटोमाइजेशन होना चाहिए.

इसरो अध्यक्ष डॉ. सोमनाथ ने कहा कि पहले रॉकेट के वापस आने के बाद उसके इंजन दोबारा इस्तेमाल नहीं हो पाते थे. लेकिन अब इंजीनियरिंग ने इसे संभव बना दिया है. अब रॉकेट के इंजन दोबारा उपयोग किए जाने लगे हैं और इनकी डिटेलिंग में भी सकारात्मक बदलाव आए हैं.

शोध की है आवश्यकता: डॉ. सोमनाथ ने कहा कि एनर्जी और कम्बश्चन आज शोध के महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं. इनकी क्षमता बढ़ाने के साथ ही प्रदूषण कम करना शोध के विषय हैं. हमारे पास उपलब्ध ग्रीन फ्यूल- हाइड्रोजन, मेथेनॉल, अमोनिया आदि का बेहतर उपयोग और इनसे जुड़ी चुनौतियों पर भी कार्य किया जाना है. कोयला, लकड़ियां आदि ऊर्जा के अच्छे स्रोत हैं, लेकिन इनसे कॉर्बन का उत्सर्जन अधिक होता है. इनको गैस के रूप में बदलकर इनका कैसे उपयोग किया जाए कि प्रदूषण न हो, यह भी रिसर्च का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है. कम्बश्चन में जीरो उत्सर्जन पर जाने का उद्देश्य लेकर कार्य किए जा रहे हैं.

पूरी दुनिया विपदा से परेशान: डॉ. सोमनाथ ने कहा कि उत्तराखंड ही नहीं पूरी दुनिया में ऐसी आपदाएं इसी कारण आ रही हैं. कार्बन डाई ऑक्साइड और ग्रीन हाउस गैसों की वजह से ये सब हो रहा है. इसके लिए हम जिम्मेदार हैं. डॉ. सोमनाथ ने कहा कि हमने विज्ञान और तकनीकों को विकसित कर लिया है. इनसे होने वाले प्रदूषण के लिए हम जिम्मेदार हैं. रॉकेट, एयरक्राफ्ट आदि में इस्तेमाल होने वाले आईसी इंजन की कम्बश्चन की प्रक्रिया को कंट्रोल करने पर हमें ध्यान देना चाहिए. मोबिलिटी, इंडस्ट्री, थर्मल पावर प्लांट, केमिकल प्रोसेस और कम्बश्चन प्रोसेस से कैसे कम से कम प्रदूषण हो, इसके लिए सॉल्यूशन कम है. इन क्षेत्रों में रिसर्च की बहुत आवश्यकता है.

वाहन प्रदूषण रोकने के उपाय: उन्होंने कहा कि रिन्यूएबल एनर्जी, इलेक्ट्रिक वाहन, हाइब्रिड वाहन और वैकल्पिक ईंधन वातावरण में सबसे कम प्रदूषण करते हैं. मौजूदा ईंधनों की जगह इनके इस्तेमाल के लिए रणनीति बनाने की आवश्यकता है. मोबिलिटी की मुख्य शक्ति आईसी इंजन होती है. आईसी इंजन की क्षमता बढ़ाने और प्रदूषण में कमी लाने के लिए कार्य करने की आवश्यकता है. दो तरह के ईंधनों को मिलाकर बनने वाले ईंधनों की क्षमता अधिक हो सकती है. इस पर और रिसर्च करने की आवश्यकता है. जैसे डीजल और हाइड्रोजन, सीएनजी और हाइड्रोजन को मिलाकर एक मिश्रित ईंधन बनाए जा सकते हैं. इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी उसके पूरे कार्यकाल में होने वाले प्रदूषण की हाईब्रिड वाहनों से होने वाले प्रदूषण से तुलना की जाए, तो दोनों एक जैसे ही होते हैं. समय के साथ इलेक्ट्रिक वाहन की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है.

नीति आयोग के सदस्य डॉ सारस्वत ने वैकल्पिक ईंधनों का उल्लेख करते हुए कहा कि मिथेनॉल प्रदूषण को 50 प्रतिशत तक कम करता है, इसमें सल्फर गैस कम उत्सर्जित होती है और कॉर्बन डाई ऑक्साइड भी कम पैदा होती है. हाइड्रोजन सबसे स्वच्छ ईंधन है.

सौर ऊर्जा पर जोर: आईसी इंजन में कम्बश्चन की प्रक्रिया में हाइड्रोजन का ईंधन के रूप में उपयोग कर सकते हैं. हाइड्रोजन से स्टोरेज, ट्रांसपोर्टेशन जैसी कई चुनौतियां जुड़ी होती हैं. हाइड्रोजन उत्पादन के तरीकों की लागत कम से कम करने और स्टोरेज आदि की चुनौतियां कम करने पर कार्य करने की आवश्यकता है. द कम्बश्चन इंस्टीट्यूट-इंडियन सेक्शन के सचिव पीके पांडे ने इंस्टीट्यूट की उपलब्धियों और गतिविधियों पर प्रकाश डाला.

सम्मेलन में दास्तूर एनर्जी के सीईओ व मैनेजिंग डायरेक्टर अटानू मुखर्जी ने एनर्जी के स्तर, आर्थिक और सुरक्षा पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि के जितने लाभ हैं, उतनी ही उनकी सीमाएं भी हैं. इसलिए सही तरह के ईंधन का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है. प्रख्यात मिसाइल वैज्ञानिक, नीति आयोग के सदस्य व ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ. वी के सारस्वत ने कहा कि बाढ़, भूस्खलन और मौसम में बदलाव का कारण ग्लोबल वार्मिंग है.

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