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द्वापर युग में यहां होते थे बदरी विशाल के दर्शन, ASI ने 16 मंदिरों की इस पौराणिक धरोहर को माना खास - Uttarakhand Adibadri Temple

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 28, 2024, 3:19 PM IST

Updated : Aug 28, 2024, 6:52 PM IST

Ancient Adibadri Temple Group in Chamoli District उत्तराखंड अपने मंदिरों और देवालयों के कारण देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध है. यहां असंख्य पौराणिक मंदिर हैं. इन्हीं में से एक चमोली जिले के कर्णप्रयाग और गैरसैंण के बीच आदिबद्री मंदिर समूह है. ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने कलियुग में बदरीनाथ जाने से पहले सतयुग, त्रेता और द्वापर युग में भी आदिबद्री में निवास किया था. एक अन्य किंवदंती के अनुसार महर्षि वेदव्यास जिन्हें चार वेदों को विभाजित करने के लिए जाना जाता है, उन्होंने आदिबद्री में भागवत गीता लिखी थी. आइए आज हम आपको आदिबद्री के दर्शन कराते हैं. Adibadri Temple

Ancient Adibadri Temple Group
आदिबद्री मंदिर समूह (Photo- ETV Bharat)
आदिबद्री मंदिर की महिमा जानिए (Video- ETV Bharat)

चमोली: उत्तराखंड के पंचबद्री में से एक सबसे प्राचीन आदिबद्री 16 मंदिरों का एक विशाल समूह है. ये मंदिर समूह गुप्त काल का बताया जाता है. इनमें नारायण मंदिर भी शामिल है. यहां पर बदरी विशाल ध्यान मुद्रा में हैं. द्वापर युग के इस पौराणिक मंदिर के दर्शन करने के लिए साल भर श्रद्धालु आदिबद्री पहुंचते हैं.

पांच बद्रियों में सबसे प्राचीन 'आदिबद्री': गढ़वाल और कुमाऊं को जोड़ने वाले कर्णप्रयाग-गैरसैंण राष्ट्रीय राजमार्ग 109 पर गैरसैंण से पहले आदिबद्री नाम की जगह है. यहां पर 16 मंदिरों के समूह को आदिबद्री के नाम से जाना जाता है. यह उत्तराखंड में मौजूद पंचबद्री में से एक है. आदिबद्री, बद्रीनाथ धाम, भविष्य बद्री, वृद्ध बद्री और योग ध्यान बद्री पंच बद्री हैं. वर्तमान में यह मंदिर समूह भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है. भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में इस पौराणिक धरोहर का संरक्षण किया जा रहा है.

Ancient Adibadri Temple
आदिबद्री के 16 में से 2 मंदिर खंडित हो चुके हैं (Photo- ETV Bharat)

आदिबद्री मंदिर के पुजारी ने क्या कहा: मंदिर के पुजारी तरुण थपलियाल बताते हैं कि आदिबद्री पंचबद्रियों में से सबसे प्राचीन बद्रीनारायण का मंदिर है. ऐसा माना जाता है कि बद्रीनारायण ने जिस स्थान पर सबसे पहले तपस्या की थी, ये वही स्थान है जिसे आदिबद्री के नाम से जाना जाता है. उन्होंने बताया कि कलियुग से पहले द्वापर युग में भगवान बद्री का निवास इसी जगह पर था और यहीं पर उन्हें पूजा जाता था.

Ancient Adibadri Temple
आदिबद्री के मंदिरों की देखरेख एएसआई कर रही है (Photo- ETV Bharat)

16 विशेष मंदिरों का समूह है 'आदिबद्री': मंदिर के पुजारी तरुण थपलियाल बताते हैं कि आदिबद्री अपने आप में विशेष है, क्योंकि यहां पर भगवान बद्री तप की मुद्रा में है. वह बताते हैं कि आदिबद्री में 16 प्राचीन मंदिरों का समूह है, जिसमें से दो खंडित हो गए थे और अब 14 शेष हैं. उन्होंने बताया कि आदिबद्री में भगवान विष्णु क्योंकि तपस्या के रूप में हैं, इसलिए वह गर्भगृह में अकेले तपस्या स्वरूप में खड़े हैं. इस दौरान उनके साथ उनका कोई भी गण मौजूद नहीं है. इसलिए मुख्य मंदिर के बाहर 16 अलग-अलग मंदिरों के रूप में भगवान बद्री विशाल का पूरा मंडल मौजूद है.

Ancient Adibadri Temple
चमोली जिले में आदिबद्री मंदिर समूह है (Photo- ETV Bharat)

आदिबद्री परिसर में भगवान विष्णु के मुख्य मंदिर के समेत 16 मंदिर मौजूद थे. इनमें से दो काफी पहले खंडित हो गए थे. अब 14 बाकी हैं. इन 14 मंदिरों के बारे में बताया जाता है कि भगवान के सभी गण जैसे कि उनकी सवारी के रूप में गरुड़ भगवान, अन्नपूर्णा देवी, कुबेर भगवान, सत्यनारायण, लक्ष्मी नारायण, गणेश भगवान, हनुमान जी, गौरी शंकर, महिषासुर मर्दिनी, शिवालय, जानकी जी, सूर्य भगवान इत्यादि 14 मंदिर अभी भी आदिबद्री परिसर में मौजूद हैं.

बद्रीनाथ में पद्मासन तो आदिबद्री में तप मुद्रा में भगवान विष्णु: उन्होंने बताया कि आदिबद्री में मुख्य मंदिर बद्रीनारायण यानी विष्णु भगवान का ही है जो कि अपनी तपस्या की मुद्रा में यहां मौजूद हैं. उन्होंने बताया कि आदिबद्री में भगवान विष्णु की मूर्ति खड़ी मुद्रा में है. यानी तप की मुद्रा में है, तो वहीं बद्रीनाथ धाम में पद्मासन की मुद्रा यानी विश्राम की मुद्रा में है. उन्होंने बताया कि पांचों बद्रियों में से सबसे बड़ा विग्रह आदिबद्री में ही भगवान विष्णु का है.

Ancient Adibadri Temple
आदिबद्री में भगवान विष्णु तप मुद्रा में हैं (Photo- ETV Bharat)

उन्होंने यह भी बताया कि बद्रीनाथ धाम में 6 महीने के लिए मंदिर के कपाट बंद होते हैं, लेकिन आदिबद्री में केवल एक माह पौष माह में जो कि 15 दिसंबर से 15 जनवरी के बीच होता है तब मंदिर के कपाट बंद होते हैं. मकर संक्रांति को यहां पर कपाट खोल दिए जाते हैं. इस दौरान मंदिर परिसर में श्रीमद्भागवत कथा का भी आयोजन किया जाता है. जिस तरह से बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है, ठीक उसी पद्धति से ही आदिबद्री में भगवान विष्णु का विशेष अभिषेक किया जाता है.

Ancient Adibadri Temple
आदिबद्री में 16 पौराणिक मंदिर हैं (Photo- ETV Bharat)

ASI के अनुसार कत्यूरी शैली में बनाया गया है 'आदिबद्री' मंदिर: आदिबद्री मंदिर को लेकर भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की गई रिसर्च के अनुसार यह पौराणिक मंदिर है और यह कत्यूरी शैली में बनाया गया है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा इन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया गया था. साथ ही 8 से 12वीं शताब्दी के बीच में इन मंदिरों का निर्माण बताया जाता है. इन मंदिरों की बनावट का कत्यूरी शैली से मिलान किया जाता है.

मंदिर के पुजारी बताते हैं कि जब तक यह पौराणिक धरोहर आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के अधीन नहीं थी, तब तक यहां पर मंदिर को काफी नुकसान पहुंचाया जा चुका था. बहुत पहले आपदा या फिर अन्य कारणों की वजह से मंदिर परिसर में मौजूद 16 निर्माण में से दो निर्माण को खंडित हो गए. अब यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत आता है और यहां पर किसी भी तरह की अनैतिक गतिविधि पर सख्त दंड का प्रावधान है.

Ancient Adibadri Temple
आदिबद्री मंदिर रामनगर-कर्णप्रयाग मार्ग पर पडता है. (Photo- ETV Bharat)

कर्णप्रयाग से तकरीबन 20 किलोमीटर की दूरी पर कर्णप्रयाग द्वाराहाट मार्ग पर पड़ने वाला आदिबद्री मंदिर गढ़वाल की तरफ से चारधाम यात्रा पर आने वाले यात्रियों के लिए अनजान ही रह जाता है. कुमाऊं से गढ़वाल की ओर द्वाराहाट कर्णप्रयाग मार्ग पर यात्रा करने वाले यात्रियों के मार्ग में आदिबद्री एक पड़ाव जरूर बनता है, लेकिन चारधाम यात्रा पर हरिद्वार के रास्ते श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, गोपेश्वर और जोशीमठ होते हुए ज्यादातर यात्री आगे बढ़ते हैं. ऐसे में आदिबद्री मंदिर बिल्कुल अलग रूट पर जाता है. हालांकि मंदिर के पुजारी बताते हैं कि जिन लोगों को इस मंदिर के महत्व के बारे में जानकारी है वो यहां आते हैं.
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आदिबद्री मंदिर की महिमा जानिए (Video- ETV Bharat)

चमोली: उत्तराखंड के पंचबद्री में से एक सबसे प्राचीन आदिबद्री 16 मंदिरों का एक विशाल समूह है. ये मंदिर समूह गुप्त काल का बताया जाता है. इनमें नारायण मंदिर भी शामिल है. यहां पर बदरी विशाल ध्यान मुद्रा में हैं. द्वापर युग के इस पौराणिक मंदिर के दर्शन करने के लिए साल भर श्रद्धालु आदिबद्री पहुंचते हैं.

पांच बद्रियों में सबसे प्राचीन 'आदिबद्री': गढ़वाल और कुमाऊं को जोड़ने वाले कर्णप्रयाग-गैरसैंण राष्ट्रीय राजमार्ग 109 पर गैरसैंण से पहले आदिबद्री नाम की जगह है. यहां पर 16 मंदिरों के समूह को आदिबद्री के नाम से जाना जाता है. यह उत्तराखंड में मौजूद पंचबद्री में से एक है. आदिबद्री, बद्रीनाथ धाम, भविष्य बद्री, वृद्ध बद्री और योग ध्यान बद्री पंच बद्री हैं. वर्तमान में यह मंदिर समूह भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है. भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में इस पौराणिक धरोहर का संरक्षण किया जा रहा है.

Ancient Adibadri Temple
आदिबद्री के 16 में से 2 मंदिर खंडित हो चुके हैं (Photo- ETV Bharat)

आदिबद्री मंदिर के पुजारी ने क्या कहा: मंदिर के पुजारी तरुण थपलियाल बताते हैं कि आदिबद्री पंचबद्रियों में से सबसे प्राचीन बद्रीनारायण का मंदिर है. ऐसा माना जाता है कि बद्रीनारायण ने जिस स्थान पर सबसे पहले तपस्या की थी, ये वही स्थान है जिसे आदिबद्री के नाम से जाना जाता है. उन्होंने बताया कि कलियुग से पहले द्वापर युग में भगवान बद्री का निवास इसी जगह पर था और यहीं पर उन्हें पूजा जाता था.

Ancient Adibadri Temple
आदिबद्री के मंदिरों की देखरेख एएसआई कर रही है (Photo- ETV Bharat)

16 विशेष मंदिरों का समूह है 'आदिबद्री': मंदिर के पुजारी तरुण थपलियाल बताते हैं कि आदिबद्री अपने आप में विशेष है, क्योंकि यहां पर भगवान बद्री तप की मुद्रा में है. वह बताते हैं कि आदिबद्री में 16 प्राचीन मंदिरों का समूह है, जिसमें से दो खंडित हो गए थे और अब 14 शेष हैं. उन्होंने बताया कि आदिबद्री में भगवान विष्णु क्योंकि तपस्या के रूप में हैं, इसलिए वह गर्भगृह में अकेले तपस्या स्वरूप में खड़े हैं. इस दौरान उनके साथ उनका कोई भी गण मौजूद नहीं है. इसलिए मुख्य मंदिर के बाहर 16 अलग-अलग मंदिरों के रूप में भगवान बद्री विशाल का पूरा मंडल मौजूद है.

Ancient Adibadri Temple
चमोली जिले में आदिबद्री मंदिर समूह है (Photo- ETV Bharat)

आदिबद्री परिसर में भगवान विष्णु के मुख्य मंदिर के समेत 16 मंदिर मौजूद थे. इनमें से दो काफी पहले खंडित हो गए थे. अब 14 बाकी हैं. इन 14 मंदिरों के बारे में बताया जाता है कि भगवान के सभी गण जैसे कि उनकी सवारी के रूप में गरुड़ भगवान, अन्नपूर्णा देवी, कुबेर भगवान, सत्यनारायण, लक्ष्मी नारायण, गणेश भगवान, हनुमान जी, गौरी शंकर, महिषासुर मर्दिनी, शिवालय, जानकी जी, सूर्य भगवान इत्यादि 14 मंदिर अभी भी आदिबद्री परिसर में मौजूद हैं.

बद्रीनाथ में पद्मासन तो आदिबद्री में तप मुद्रा में भगवान विष्णु: उन्होंने बताया कि आदिबद्री में मुख्य मंदिर बद्रीनारायण यानी विष्णु भगवान का ही है जो कि अपनी तपस्या की मुद्रा में यहां मौजूद हैं. उन्होंने बताया कि आदिबद्री में भगवान विष्णु की मूर्ति खड़ी मुद्रा में है. यानी तप की मुद्रा में है, तो वहीं बद्रीनाथ धाम में पद्मासन की मुद्रा यानी विश्राम की मुद्रा में है. उन्होंने बताया कि पांचों बद्रियों में से सबसे बड़ा विग्रह आदिबद्री में ही भगवान विष्णु का है.

Ancient Adibadri Temple
आदिबद्री में भगवान विष्णु तप मुद्रा में हैं (Photo- ETV Bharat)

उन्होंने यह भी बताया कि बद्रीनाथ धाम में 6 महीने के लिए मंदिर के कपाट बंद होते हैं, लेकिन आदिबद्री में केवल एक माह पौष माह में जो कि 15 दिसंबर से 15 जनवरी के बीच होता है तब मंदिर के कपाट बंद होते हैं. मकर संक्रांति को यहां पर कपाट खोल दिए जाते हैं. इस दौरान मंदिर परिसर में श्रीमद्भागवत कथा का भी आयोजन किया जाता है. जिस तरह से बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है, ठीक उसी पद्धति से ही आदिबद्री में भगवान विष्णु का विशेष अभिषेक किया जाता है.

Ancient Adibadri Temple
आदिबद्री में 16 पौराणिक मंदिर हैं (Photo- ETV Bharat)

ASI के अनुसार कत्यूरी शैली में बनाया गया है 'आदिबद्री' मंदिर: आदिबद्री मंदिर को लेकर भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की गई रिसर्च के अनुसार यह पौराणिक मंदिर है और यह कत्यूरी शैली में बनाया गया है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा इन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया गया था. साथ ही 8 से 12वीं शताब्दी के बीच में इन मंदिरों का निर्माण बताया जाता है. इन मंदिरों की बनावट का कत्यूरी शैली से मिलान किया जाता है.

मंदिर के पुजारी बताते हैं कि जब तक यह पौराणिक धरोहर आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के अधीन नहीं थी, तब तक यहां पर मंदिर को काफी नुकसान पहुंचाया जा चुका था. बहुत पहले आपदा या फिर अन्य कारणों की वजह से मंदिर परिसर में मौजूद 16 निर्माण में से दो निर्माण को खंडित हो गए. अब यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत आता है और यहां पर किसी भी तरह की अनैतिक गतिविधि पर सख्त दंड का प्रावधान है.

Ancient Adibadri Temple
आदिबद्री मंदिर रामनगर-कर्णप्रयाग मार्ग पर पडता है. (Photo- ETV Bharat)

कर्णप्रयाग से तकरीबन 20 किलोमीटर की दूरी पर कर्णप्रयाग द्वाराहाट मार्ग पर पड़ने वाला आदिबद्री मंदिर गढ़वाल की तरफ से चारधाम यात्रा पर आने वाले यात्रियों के लिए अनजान ही रह जाता है. कुमाऊं से गढ़वाल की ओर द्वाराहाट कर्णप्रयाग मार्ग पर यात्रा करने वाले यात्रियों के मार्ग में आदिबद्री एक पड़ाव जरूर बनता है, लेकिन चारधाम यात्रा पर हरिद्वार के रास्ते श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, गोपेश्वर और जोशीमठ होते हुए ज्यादातर यात्री आगे बढ़ते हैं. ऐसे में आदिबद्री मंदिर बिल्कुल अलग रूट पर जाता है. हालांकि मंदिर के पुजारी बताते हैं कि जिन लोगों को इस मंदिर के महत्व के बारे में जानकारी है वो यहां आते हैं.
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Last Updated : Aug 28, 2024, 6:52 PM IST
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