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लोक आस्था का महापर्व छठ, भगवान भास्कर के साक्षात रूप की होती है पूजा, जानिए इस पर्व का महत्व - CHHATH FESTIVAL OF FOLK FAITH

छठ लोक आस्था के महापर्व के रूप में पूरे भारत में मनाया जाता है. इस पर्व में व्रती चार दिनों का व्रत करती हैं.

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सूर्य भगवान ने की थी छठ पूजा (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Nov 5, 2024, 5:30 PM IST

रायपुर: लोकआस्था में सूर्योपासना का महापर्व छठ हिंदू धर्म में कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है. यह पर्व साक्षात सूर्यदेव के पूजन का सबसे बड़ा त्यौहार है. 4 दिनों तक चलने वाला छठ महापर्व इस साल 5 नवम्बर को खरना के साथ शुरू हो चुका है. लोकआस्था का महापर्व छठ भगवान भास्कर के साक्षात रूप की पूजा है जिसे प्रकृति के प्रेम की भी साक्षात पूजा कही जा सकती है. छठ पूजा के मान्यताओं की बात करें तो इसकी कई किंवदंतियों और कहानियां प्रचलित है.

कहां कहां मनाया जाता है छठ पर्व ?: भगवान भास्कर की पूजा सृष्टि को सजीव स्वरूप में दीप्तिमान रखने के सबसे प्रबल उदाहरण के रूप में भी देखा जाता है. छठ लोक आस्था के महापर्व के रूप में पूरे भारत में मनाया जाता है. पूर्वी भारत खासतौर से बिहार,झारखंड उत्तर प्रदेश और नेपाल की तराई के क्षेत्रों में इस त्यौहार को खास रूप से मनाया जाता है. सूर्य उपासना का यह महापर्व कार्तिक महीने की षष्ठी को आता है,जो दीपावली के खत्म होने के बाद शुरू होता है. छठ पूजा की मान्यताओं की बात करें तो छठी मैया की कई कहानियां सुनाई जाती है और कही जाती हैं.

सूर्य भगवान ने की थी छठ पूजा: छठ पूजा के लेकर पंडित शिवदत्त मणि त्रिपाठी ने कहा कि जो बातें छठ पूजा को लेकर वेदों और अन्य धर्म ग्रंथों में मिलती है. उसके अनुसार सूर्य भगवान ने भी कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्टी को इस व्रत को किया था. लोक परंपरा के अनुसार भगवान सूर्य और छठी मैया में भाई बहन का संबंध है. लोकमाता छठ की पहली पूजा भी भगवान सूर्य ने अपनी बहन के लिए किया था. मान्यताओं में यह कहा जाता है कि भगवान भास्कर धरती पर सब कुछ ठीक-ठाक ढंग से चलता रहे इसके लिए उन्होंने अपनी बहन की निष्ठापूर्वक पूजा की थी.

छठ पूजा की महत्ता जानिए: मान्यता के अनुसार कहा यह भी जाता है कि पृथ्वी पर जीवन बहाल करने को लेकर भगवान भास्कर और उनकी पत्नी उषा की पूजा छठ पर्व की महत्ता में शामिल है. छठ पर्व को लेकर जो कहानियां प्रचलित है उसमें सूर्य उपासना सबसे बड़ा पूजा पर्व मनाया जाता है. आइए जानते हैं कि सूर्य की उपासना के लिए 4 दिनों तक चलने वाला यह अनुष्ठान किस रूप में मनाया जाता है. जिससे इस पर्व की पवित्रता और बढ़ जाती है.

इस पर्व का नाम क्यों पड़ा छठ, क्या है मान्यता? : छठ पर्व को लेकर माना यह भी जाता है कि भगवान भास्कर के साक्षात रूप की पूजा इस सृष्टि में सभी देवताओं से अलग तौर पर मानी जाती है. हिंदू धर्मावलंबियों के अनुसार किसी भी साक्षात देवता की पूजा छठ पर्व में भगवान भास्कर की ही की जाती है. जिसमें पूरी पृथ्वी पर यश कायम हो और लोगों का विकास हो, यही मन्नत छठ पर्व में भगवान भास्कर से मांगी जाती है. छठ पर्व के नामकरण को लेकर जो बातें चलती हैं उसमें चूंकि यह व्रत कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की छठी तारीख को पड़ता है और खष्टि का अपभ्रंश छठ है इसी नाते उसका नाम छठ पड़ा है.

साल में दो बार होती है छठी मैया की पूजा: सृष्टि में भगवान सूर्य की उपासना का महापर्व छठ की धार्मिक मान्यताएं इस पर्व की महत्ता को और ज्यादा बढ़ता हैं. छठ पर्व साल में दो बार मनाया जाता है. इसमें सूर्य की उपासना ही होती है. पहली छठ पूजा चैत में होती है और दूसरी छठ पूजा कार्तिक मास में मनाई जाती है. चैत माह के शुक्ल पक्ष कि षष्ठी को चैती छठ पूजा मनाई जाती है. चैत में यह छठ आता है इसलिए इसे चैती छठ कहते हैं. दूसरी बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह साल में दूसरी बार मनाया जाता है इसलिए इसे कार्तिकी छठ कहते हैं.

महाभारत के समय द्रौपदी ने की थी छठ पूजा: छठ पूजा को लेकर महाभारत काल में यह लिखा गया है कि पांडव जब अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे और उसके बाद उन्हें वनवास के लिए जाना पड़ा था. तब भगवान श्री कृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था. छठ व्रत के लगातार अनुष्ठान और भगवान भास्कर की पूजा करने के कारण पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट मिल गया.

दूसरी मान्यता के अनुसार महाभारत काल में ही सूर्य उपासना की एक अन्य कथा प्रचलित है. महावीर कर्ण भगवान भास्कर की नियमित पूजा करते थे और कमर भर पानी में खड़े होकर भगवान को अर्घ्य देते थे. छठ पर्व में भी कमर तक पानी में खड़े होकर भगवान भास्कर को अर्घ्य देने की परंपरा है. माना यह भी जाता है कि कर्ण सूर्य के परम भक्त थे. कर्ण ने पानी में खड़े होकर अर्घ्य देने की इस प्रथा की शुरुआत की थी. छठ पर्व में अस्ताचलगामी और उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने की प्रथा में कमर भर पानी में जाकर अर्घ्य देने की पद्धति प्रचलन में है.

त्रेतायुग में भी होती थी छठ पूजाः रामायणकाल में भी सूर्य उपासना के इस महापर्व का प्रमाण मिलता है. यह माना जाता है कि लंका विजय के बाद जब भगवान श्रीराम अयोध्या का राजपाट संभालने लिए राम राज्य की स्थापना की थी. वह दिन भी अहम है जिस दिन इसकी स्थापना हुई थी वह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की छठी ही थी. मान्यता है कि इस दिन भगवान राम और माता सीता ने उपवास करते हुए भगवान सूर्य की आराधना की थी. भगवान राम और माता सीता का उपवास सप्तमी के दिन पूर्ण सूर्योदय के बाद ही खत्म हुआ था. इस अनुष्ठान के बाद भगवान राम ने सूर्य से प्रार्थना की थी कि उनके राज्य में सभी लोग खुशी से रहें न कोई दुखी हो न दरिद्र हो न तो किसी को कोई पीड़ा हो इन तमाम चीजों को लेकर श्री राम और सीता ने भगवान भास्कर से याचना की थी. उसके बाद उन्हें आशीर्वाद भी मिला था.

पुराणों में क्या है मान्यता ?: पुराणों के अनुसार राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी. उन्होंने महर्षि कश्यप से पुत्र को लेकर के अपनी पत्नी मालिनी के साथ यज्ञ किया था और खीर के प्रसाद बांटे थे. भगवान विष्णु उनकी इस पूजा से खुश हुए थे और उन्होंने एक मानस कन्या देवसेना को छठी के दिन उत्पन्न किया था.माना यह भी जाता है कि छठे अंश से उत्पन्न देवसेना को सृष्टि के रूप में पूजा जाता है. पुत्र इच्छा की प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत रखने का भी प्रावधान भगवान की तरफ से दिया गया था.

सृष्टि के पालनकर्ता और शक्ति के सबसे बड़े स्रोत भगवान सूर्य की पूजा का प्रावधान सभ्यता के विकास काल के साथ ही माना जाता है. भगवान सूर्य की वंदना का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है. इसके अलावा उपनिषदों, वैदिक ग्रंथों, द्वापर,त्रेता,सतयुग और कलयुग में भगवान भास्कर के साक्षात रूप की पूजा का बड़ा ही महत्व है. जिसमें पूजा विधान में आरोग्य को सबसे प्राथमिकता दी गई है.

खगोलीय परिवर्तन है वैज्ञानिक आधार: छठ पर्व को लेकर वैज्ञानिक कारण भी माने गए हैं. माना जाता है कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की छठी तारीख को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है. इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर ज्यादा मात्रा में एकत्र होती हैं. सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैंगनी किरणें भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती है. सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुंचता है तो सबसे पहले वह वायुमंडल में मिलता है. वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयनमंडल मिलता है.

पैराबैंगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्व को संश्लेषित कर उसे एलोट्रोप में बदल देता है. इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैंगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है. पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंचता है. सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाली पराबैंगनी किरणें मनुष्य के सहन सीमा के अंदर ही रहती है. इससे उसका मनुष्य पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है.

छठ पूजा का अनुष्ठान: छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी से शुरू होती है और नहाए खाए से छठव्रती इस व्रत की शुरुआत करती हैं. नहाए खाए में घर की साफ सफाई के पश्चात छठ व्रती गंगा में स्नान करती हैं. उसके बाद शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर वे इस व्रत की शुरुआत करती हैं. भोजन में कद्दू ,दाल, चावल ग्रहण किया जाता है. दाल में सिर्फ चने की दाल को ही खाया जाता है.

नहाय खाय के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी को छठ व्रती दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम में भोजन करते हैं. इसे खरना कहा जाता है. खरना के प्रसाद के लिए सभी लोगों को निमंत्रण भी दिया जाता है. खरना के प्रसाद में गन्ने के रस से बना हुए गुड़ और चावल की खीर बनाई जाती है. पीठा,घी की रोटी का उपयोग किया जाता है. इस त्यौहार में नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता. खीर में गुड़ मिलाया जाता है.

छठ पूजा के अर्घ्य में क्या किया जाता है शामिल? : भगवान भास्कर को अर्घ्य में ठेकुआ, फल, डाभ नींबू, गन्ना, कच्ची हल्दी और अन्य चीजें रखीं जाती है. इन सभी चीजों को साथ में रखा जाता है. पूरे दिन छठ व्रती सूर्य उपासना की गीत गाती हैं. शाम में गंगा के किनारे,तालाब या घर में बने कुएं के पास खड़े होकर वे अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देती हैं. अर्घ्य के समय सूपा में छठी मैया के लिए प्रसाद होता है. जिस में नारियल, केला, गन्ना, गुड़ चावल गेहूं से भरा सूप लेकर भगवान भास्कर को अर्घ्य देते हैं.

चौथे दिन की पूजा के बारे में जानिए: छठ पूजा के चौथे दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने का प्रावधान है. जिस तरीके से अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है उसी तरीके से उदयाचलगामी सूर्य को भी अध्य देने की प्रक्रिया होती है. उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ करने वाले लोग अपने घर आते हैं. इसके बाद प्रसाद खाकर दूध के शरबत के साथ अपने व्रत को तोड़ते हैं. 36 घंटे चलने वाला यह व्रत लोक आस्था का महापर्व सूर्य उपासना का कठिन व्रत है जिसमें छठ व्रती लगातार 36 घंटे तक जल ग्रहण भी नहीं करती हैं. लोकआस्था का यह महापर्व पहले अपने देश में ही मनाया जाता था लेकिन अब इसका प्रचलन विदेशों तक हो गया है.कई देशों में भी छठ पर्व को मनाया जाता है. ईटीवी भारत परिवार के तरफ से आप सभी लोगों को छठ पर्व की शुभकामनाएं.

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रायपुर: लोकआस्था में सूर्योपासना का महापर्व छठ हिंदू धर्म में कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है. यह पर्व साक्षात सूर्यदेव के पूजन का सबसे बड़ा त्यौहार है. 4 दिनों तक चलने वाला छठ महापर्व इस साल 5 नवम्बर को खरना के साथ शुरू हो चुका है. लोकआस्था का महापर्व छठ भगवान भास्कर के साक्षात रूप की पूजा है जिसे प्रकृति के प्रेम की भी साक्षात पूजा कही जा सकती है. छठ पूजा के मान्यताओं की बात करें तो इसकी कई किंवदंतियों और कहानियां प्रचलित है.

कहां कहां मनाया जाता है छठ पर्व ?: भगवान भास्कर की पूजा सृष्टि को सजीव स्वरूप में दीप्तिमान रखने के सबसे प्रबल उदाहरण के रूप में भी देखा जाता है. छठ लोक आस्था के महापर्व के रूप में पूरे भारत में मनाया जाता है. पूर्वी भारत खासतौर से बिहार,झारखंड उत्तर प्रदेश और नेपाल की तराई के क्षेत्रों में इस त्यौहार को खास रूप से मनाया जाता है. सूर्य उपासना का यह महापर्व कार्तिक महीने की षष्ठी को आता है,जो दीपावली के खत्म होने के बाद शुरू होता है. छठ पूजा की मान्यताओं की बात करें तो छठी मैया की कई कहानियां सुनाई जाती है और कही जाती हैं.

सूर्य भगवान ने की थी छठ पूजा: छठ पूजा के लेकर पंडित शिवदत्त मणि त्रिपाठी ने कहा कि जो बातें छठ पूजा को लेकर वेदों और अन्य धर्म ग्रंथों में मिलती है. उसके अनुसार सूर्य भगवान ने भी कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्टी को इस व्रत को किया था. लोक परंपरा के अनुसार भगवान सूर्य और छठी मैया में भाई बहन का संबंध है. लोकमाता छठ की पहली पूजा भी भगवान सूर्य ने अपनी बहन के लिए किया था. मान्यताओं में यह कहा जाता है कि भगवान भास्कर धरती पर सब कुछ ठीक-ठाक ढंग से चलता रहे इसके लिए उन्होंने अपनी बहन की निष्ठापूर्वक पूजा की थी.

छठ पूजा की महत्ता जानिए: मान्यता के अनुसार कहा यह भी जाता है कि पृथ्वी पर जीवन बहाल करने को लेकर भगवान भास्कर और उनकी पत्नी उषा की पूजा छठ पर्व की महत्ता में शामिल है. छठ पर्व को लेकर जो कहानियां प्रचलित है उसमें सूर्य उपासना सबसे बड़ा पूजा पर्व मनाया जाता है. आइए जानते हैं कि सूर्य की उपासना के लिए 4 दिनों तक चलने वाला यह अनुष्ठान किस रूप में मनाया जाता है. जिससे इस पर्व की पवित्रता और बढ़ जाती है.

इस पर्व का नाम क्यों पड़ा छठ, क्या है मान्यता? : छठ पर्व को लेकर माना यह भी जाता है कि भगवान भास्कर के साक्षात रूप की पूजा इस सृष्टि में सभी देवताओं से अलग तौर पर मानी जाती है. हिंदू धर्मावलंबियों के अनुसार किसी भी साक्षात देवता की पूजा छठ पर्व में भगवान भास्कर की ही की जाती है. जिसमें पूरी पृथ्वी पर यश कायम हो और लोगों का विकास हो, यही मन्नत छठ पर्व में भगवान भास्कर से मांगी जाती है. छठ पर्व के नामकरण को लेकर जो बातें चलती हैं उसमें चूंकि यह व्रत कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की छठी तारीख को पड़ता है और खष्टि का अपभ्रंश छठ है इसी नाते उसका नाम छठ पड़ा है.

साल में दो बार होती है छठी मैया की पूजा: सृष्टि में भगवान सूर्य की उपासना का महापर्व छठ की धार्मिक मान्यताएं इस पर्व की महत्ता को और ज्यादा बढ़ता हैं. छठ पर्व साल में दो बार मनाया जाता है. इसमें सूर्य की उपासना ही होती है. पहली छठ पूजा चैत में होती है और दूसरी छठ पूजा कार्तिक मास में मनाई जाती है. चैत माह के शुक्ल पक्ष कि षष्ठी को चैती छठ पूजा मनाई जाती है. चैत में यह छठ आता है इसलिए इसे चैती छठ कहते हैं. दूसरी बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह साल में दूसरी बार मनाया जाता है इसलिए इसे कार्तिकी छठ कहते हैं.

महाभारत के समय द्रौपदी ने की थी छठ पूजा: छठ पूजा को लेकर महाभारत काल में यह लिखा गया है कि पांडव जब अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे और उसके बाद उन्हें वनवास के लिए जाना पड़ा था. तब भगवान श्री कृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था. छठ व्रत के लगातार अनुष्ठान और भगवान भास्कर की पूजा करने के कारण पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट मिल गया.

दूसरी मान्यता के अनुसार महाभारत काल में ही सूर्य उपासना की एक अन्य कथा प्रचलित है. महावीर कर्ण भगवान भास्कर की नियमित पूजा करते थे और कमर भर पानी में खड़े होकर भगवान को अर्घ्य देते थे. छठ पर्व में भी कमर तक पानी में खड़े होकर भगवान भास्कर को अर्घ्य देने की परंपरा है. माना यह भी जाता है कि कर्ण सूर्य के परम भक्त थे. कर्ण ने पानी में खड़े होकर अर्घ्य देने की इस प्रथा की शुरुआत की थी. छठ पर्व में अस्ताचलगामी और उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने की प्रथा में कमर भर पानी में जाकर अर्घ्य देने की पद्धति प्रचलन में है.

त्रेतायुग में भी होती थी छठ पूजाः रामायणकाल में भी सूर्य उपासना के इस महापर्व का प्रमाण मिलता है. यह माना जाता है कि लंका विजय के बाद जब भगवान श्रीराम अयोध्या का राजपाट संभालने लिए राम राज्य की स्थापना की थी. वह दिन भी अहम है जिस दिन इसकी स्थापना हुई थी वह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की छठी ही थी. मान्यता है कि इस दिन भगवान राम और माता सीता ने उपवास करते हुए भगवान सूर्य की आराधना की थी. भगवान राम और माता सीता का उपवास सप्तमी के दिन पूर्ण सूर्योदय के बाद ही खत्म हुआ था. इस अनुष्ठान के बाद भगवान राम ने सूर्य से प्रार्थना की थी कि उनके राज्य में सभी लोग खुशी से रहें न कोई दुखी हो न दरिद्र हो न तो किसी को कोई पीड़ा हो इन तमाम चीजों को लेकर श्री राम और सीता ने भगवान भास्कर से याचना की थी. उसके बाद उन्हें आशीर्वाद भी मिला था.

पुराणों में क्या है मान्यता ?: पुराणों के अनुसार राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी. उन्होंने महर्षि कश्यप से पुत्र को लेकर के अपनी पत्नी मालिनी के साथ यज्ञ किया था और खीर के प्रसाद बांटे थे. भगवान विष्णु उनकी इस पूजा से खुश हुए थे और उन्होंने एक मानस कन्या देवसेना को छठी के दिन उत्पन्न किया था.माना यह भी जाता है कि छठे अंश से उत्पन्न देवसेना को सृष्टि के रूप में पूजा जाता है. पुत्र इच्छा की प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत रखने का भी प्रावधान भगवान की तरफ से दिया गया था.

सृष्टि के पालनकर्ता और शक्ति के सबसे बड़े स्रोत भगवान सूर्य की पूजा का प्रावधान सभ्यता के विकास काल के साथ ही माना जाता है. भगवान सूर्य की वंदना का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है. इसके अलावा उपनिषदों, वैदिक ग्रंथों, द्वापर,त्रेता,सतयुग और कलयुग में भगवान भास्कर के साक्षात रूप की पूजा का बड़ा ही महत्व है. जिसमें पूजा विधान में आरोग्य को सबसे प्राथमिकता दी गई है.

खगोलीय परिवर्तन है वैज्ञानिक आधार: छठ पर्व को लेकर वैज्ञानिक कारण भी माने गए हैं. माना जाता है कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की छठी तारीख को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है. इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर ज्यादा मात्रा में एकत्र होती हैं. सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैंगनी किरणें भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती है. सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुंचता है तो सबसे पहले वह वायुमंडल में मिलता है. वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयनमंडल मिलता है.

पैराबैंगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्व को संश्लेषित कर उसे एलोट्रोप में बदल देता है. इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैंगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है. पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंचता है. सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाली पराबैंगनी किरणें मनुष्य के सहन सीमा के अंदर ही रहती है. इससे उसका मनुष्य पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है.

छठ पूजा का अनुष्ठान: छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी से शुरू होती है और नहाए खाए से छठव्रती इस व्रत की शुरुआत करती हैं. नहाए खाए में घर की साफ सफाई के पश्चात छठ व्रती गंगा में स्नान करती हैं. उसके बाद शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर वे इस व्रत की शुरुआत करती हैं. भोजन में कद्दू ,दाल, चावल ग्रहण किया जाता है. दाल में सिर्फ चने की दाल को ही खाया जाता है.

नहाय खाय के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी को छठ व्रती दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम में भोजन करते हैं. इसे खरना कहा जाता है. खरना के प्रसाद के लिए सभी लोगों को निमंत्रण भी दिया जाता है. खरना के प्रसाद में गन्ने के रस से बना हुए गुड़ और चावल की खीर बनाई जाती है. पीठा,घी की रोटी का उपयोग किया जाता है. इस त्यौहार में नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता. खीर में गुड़ मिलाया जाता है.

छठ पूजा के अर्घ्य में क्या किया जाता है शामिल? : भगवान भास्कर को अर्घ्य में ठेकुआ, फल, डाभ नींबू, गन्ना, कच्ची हल्दी और अन्य चीजें रखीं जाती है. इन सभी चीजों को साथ में रखा जाता है. पूरे दिन छठ व्रती सूर्य उपासना की गीत गाती हैं. शाम में गंगा के किनारे,तालाब या घर में बने कुएं के पास खड़े होकर वे अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देती हैं. अर्घ्य के समय सूपा में छठी मैया के लिए प्रसाद होता है. जिस में नारियल, केला, गन्ना, गुड़ चावल गेहूं से भरा सूप लेकर भगवान भास्कर को अर्घ्य देते हैं.

चौथे दिन की पूजा के बारे में जानिए: छठ पूजा के चौथे दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने का प्रावधान है. जिस तरीके से अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है उसी तरीके से उदयाचलगामी सूर्य को भी अध्य देने की प्रक्रिया होती है. उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ करने वाले लोग अपने घर आते हैं. इसके बाद प्रसाद खाकर दूध के शरबत के साथ अपने व्रत को तोड़ते हैं. 36 घंटे चलने वाला यह व्रत लोक आस्था का महापर्व सूर्य उपासना का कठिन व्रत है जिसमें छठ व्रती लगातार 36 घंटे तक जल ग्रहण भी नहीं करती हैं. लोकआस्था का यह महापर्व पहले अपने देश में ही मनाया जाता था लेकिन अब इसका प्रचलन विदेशों तक हो गया है.कई देशों में भी छठ पर्व को मनाया जाता है. ईटीवी भारत परिवार के तरफ से आप सभी लोगों को छठ पर्व की शुभकामनाएं.

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