भोपाल: क्या आप भी फैक्ट की पैरवी करते हुए व्हाट्सअप ग्रुप से निकाले गए हैं, तो ये खबर आपके लिए हैं. आपका आखिरी बार फेक न्यूज पर आस्था जमाए किसी शख्स से मुकाबला कब हुआ था. फेक न्यूज को लेकर उसके विश्वास को अपने फैक्ट्स के दम पर आपने उन्हें समझाने की कितनी बार कोशिश की? इस कवायद का नतीजा क्या हुआ? आखिर वो कौन सा तरीका हो सकता है बातचीत का जिससे फेक न्यूज वालों पर भरोसा जमाए लोगों की भी आप आंखे खोल पाएं. आईआईटी कानपुर के छात्र रहे उत्तर प्रदेश के रहने वाले हिमांशु पांडे के जहन में भी यही सवाल आए थे.
आईआईटी कानपुर के छात्र का कमाल
जवाब में उन्होंने एक एआई मॉडल ही बना डाला. जो फेक न्यूज फैलाने वालों की फौज से आपके संवाद को उस स्तर का बनाएगा कि वो फैक्ट पर यकीन करने लग जाएं. महीने भर पहले हिमांशु ने ये एआई मॉडल लॉन्च किया है. इस मॉडल की खासियत ये है कि इसमें कनेक्शन, कॉन्टेक्स्ट और कम्युनिकेशन इन तीन पैमानों पर फेक पर भरोसा करने वाले शख्स से आपकी बातचीत को उस हद तक सुधारा जाता है, जब तक वो कन्विंस के मुकाम तक ना पहुंच जाए. भोपाल पहुंचे हिमांशु ने ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में ये हैरान करने वाली जानकारी दी कि फैक्ट्स का इस तरह के संवाद में सबसे कम असर होता है.
फेक न्यूज पर भरोसा जमाए लोगों से बातचीत कैसे करें, सिखाएगा ये एआई
फेक न्यूज जितनी बड़ी मुश्किल है, उससे बड़ी मुश्किल है उस पर 100 फीसदी विश्वास जमाए लोग, जो इसी भरोसे के साथ इस फेक न्यूज को फारवर्ड करते जाते हैं. जब इन्हें फैक्ट न्यूज का हवाला दिया जाए तो बहस पर उतर आते हैं. लेकिन मानते किसी सूरत में नहीं. यूपी के रहने वाले हिमांशु पाण्डे ऐसे ही लोगों से तंग आ चुके थे. लिहाजा उन्होंने 'बंक विद काइन्डनेस' तैयार किया. ये एक ऐसा एआई गाइडेंस टूल है. जो बताएगा कि फर्जी खबरों पर भरोसा जमाए बैठे लोगों के दिमाग को कैसे बदला जाए.
ईटीवी भारत से बातचीत में हिमांशु ने बताया कि, ''इस एआई टूल में अलग बिंदुओं के साथ इस बातचीत को सुधारने का प्रयास होता है. क्योंकि केवल फैक्ट के साथ किसी व्यक्ति को कन्विन्स करना उतना असर नहीं करता. वो बहुत ही लाइटली लिया जाता है. तो ये टूल बताता है कि जो शेयर किया जा रहा है किसी शख्स के सामने उसके दिमाग को परिवर्तित करने के लिए और क्या क्या नई बातें किसी भाव के साथ जोड़ी जाना जरुरी हैं.''
भारत में सबसे ज्यादा फेक खबरें हेल्थ पर फैलाई जाती हैं
हिमांशु कहते हैं, ''अगर आप करके देखेंगे तो हमारे आईडी फैक्ट से किसी का दिमाग नहीं बदलता. हमारा ये ट्रेनिंग प्लेटफार्म है, जो ये आपको बताता है कि आपको नैरेटिव बनाना पड़ता है जिससे लोग कनेक्ट हो पाए. हमारा ट्रेनिंग मॉडल इसमें आपकी मदद करता है.'' फेक न्यूज पर इस टूल को बनाते समय हिमांशु ने जो स्टडी की, उनके मुताबिक भारत में हेल्थ का सेक्टर पहले नंबर पर है, जिसमें फैक खबरें सबसे ज्यादा फैलाई जाती हैं. वे बताते हैं, ''बल्कि मेरे इस टूल को बनाने के पीछे का मकसद भी इसी से जुड़ा हुआ है. हाइपर टेंशन, कैंसर, डायबिटीज देखिए बाढ़ आई हुई है फेक मटेरियल की.''
वे कहते हैं, ''हमारे फैमिली ग्रुप में ये फेक व्हाट्सअप आ जाता था कि सारी बीमारियों का इलाज फलां पत्ती फलां जड़ है. हमारे माता पिता को डायबिटीज है. वो दवाई छोड़कर रोज एक नया नुस्खा आजमा लेते थे. जब हम उन्हें कहते थे कि ये जो आप फॉलो कर रहे हैं ये फेक न्यूज है. इसे आईसीएमआर (Indian Council of Medical Research) ने इसे चेक किया है, तो कोई सुनता नहीं था. तब हमें लगा कि जिस तरीके से हम बता रहे हैं शायद उस तरीके में कोई गलती है, तब हमने इस टूल को डिजाइन किया. इस टूल के जरिए ज्यादा इफेक्टिव हो सकता है आपके समझाने का तरीका.''
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फेक न्यूज से निपटने कैसे काम करता है ये एआई
हिमांशु के साथ ही काम करने वाली दिल्ली की निवासी हमीदा सैयद बताती हैं कि, ये एआई टूल काम कैसे करता है. वे कहती हैं, ''ये किसी भी फेक न्यूज पर भरोसा किए बैठे व्यक्ति से बातचीत के पहले आपको एक मौका देता है. जैसे कोई भी प्रॉब्लम आप ले लो, मिसाल के तौर पर हम हेल्थ लिखते हैं. इसमें दिखेगा कि हेल्थ से जु़ड़े हुए सारे न्यूज फैक्ट चेक हुए हैं. जैसे इसमें नवजोत सिंह सिद्धू का वायरल वीडियो आया है कि 'कैन स्पेशल डाइट क्योर कैंसर.''
''अब आप ये मान लीजिए कि आपके व्हाट्सअप ग्रुप पर नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर ये फेक न्यूज आई है और आपने ये पता कर लिया कि इसका फैक्ट चेक हुआ है. अब अपने परिवार से बात करनी है इस बारे में, उन्हें असलियत बतानी है.
उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव में रहते हैं हिमांशु
हिमांशु ने उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के करहल गांव में रहकर ये टूल तैयार किया है. ईटीवी भारत का उनसे सवाल था कि क्या वहां गांव में भी फैक्ट की समस्या है. तो उन्होंने कहा कि, ''वहां ज्यादा है, वहां तो फैक्ट से भी लोग वाकिफ नहीं हो पाते.''