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Rajasthan: ऋण प्रार्थना पत्र निरस्त करने पर बैंक को लौटानी होगी प्रोसेसिंग फीस, बैंक को माना अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस का जिम्मेदार - PROCESSING FEES CASE

ऋण प्रार्थना पत्र निरस्त होने पर बैंक को प्रोसेसिंग फीस वापस लौटानी होगी. यह फैसला अजमेर की सर्किट बैंच ने एक मामले पर दिया.

Processing Fees Case
अजमेर की सर्किट बैंच का फैसला (ETV Bharat Ajmer)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 19, 2024, 4:31 PM IST

Updated : Oct 19, 2024, 11:25 PM IST

अजमेर: ऋण प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया, तो बैंक को प्रोसेसिंग फीस लौटानी होगी. राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग की सर्किट बेंच अजमेर ने अपने इस मत के साथ एचडीएफसी बैंक को सेवा में कमी और अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस का जिम्मेदार माना है. सर्किट बैंच अजमेर ने बैंक की अपील खारिज कर जिला आयोग नागौर के निर्णय को बरकरार रखा है.

ऐसी स्थिति में बैंक को लौटानी होगी प्रो​सेसिंग फीस (ETV Bharat Ajmer)

वकील सूर्य प्रकाश गांधी ने बताया कि मामले के अनुसार हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी, नागौर निवासी श्यामलाल जाट ने 2012 में एचडीएफसी बैंक में होम लोन टेक ओवर के लिए आवेदन किया था. आवेदन के साथ समस्त दस्तावेज तथा 8260 रुपए प्रोसेस फीस के भी अदा किए थे. बैंक ने आवेदन के बाद श्यामलाल के मकान का सर्वे कराया और बताया कि श्यामलाल और उसके भाई के मकान के बीच में एक दरवाजा निकालना होगा. तब ही लोन दिया जाना संभव है.

पढ़ें: उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग का फैसला: बीमा कंपनी को बैंक को देनी होगी दावे की राशि

श्यामलाल ने बैंक को एक मेल भेज कर दरवाजा निकालने के लिए अपनी सहमति भी दे दी. इसके बावजूद बैंक ने प्रार्थी का ऋण आवेदन तकनीकी कारणों से खारिज कर दिया. उन्होंने बताया कि प्रार्थना पत्र खारिज करने के बाद श्यामलाल जाट ने बैंक को पत्र लिखकर उसकी प्रक्रिया फीस वापस लौटने की मांग की. बैंक ने यह कहकर फीस अदा करने से इनकार कर दिया की फीस नॉन रिफंडेबल है. जिसे प्रार्थी प्राप्त करने का अधिकार ही नहीं है.

पढ़ें: नवजात की आंख खराब होने के मामले में निजी अस्पताल को देना होगा 19 लाख जुर्माना - Newborn Health Controversy

बैंक को फीस और हर्जाना देना होगा: वकील सूर्य प्रकाश गांधी ने बताया कि नागौर उपभोक्ता आयोग ने श्यामलाल का परिवाद स्वीकार कर बैंक को आदेश दिया कि वह प्रार्थी को उसकी जमा फीस तथा हर्जाने के तौर पर 10 हजार रुपए अदा करे. बैंक ने राशि अदा करने की बजाय नागौर जिला आयोग के निर्णय को सर्किट बैंच अजमेर में चुनौती दी थी. बैंक का तर्क था कि फीस रिफंडेबल नहीं है. जबकि श्यामलाल के वकील सूर्य प्रकाश गांधी का तर्क था कि ऋण आवेदन पर प्रार्थी के हस्ताक्षर नहीं हैं. इसलिए वह किसी भी शर्त से बाध्य नहीं है.

पढ़ें: पूर्व सैनिक की पत्नी के इलाज में कोताही, मिलिट्री अस्पताल पर 10 लाख रुपए का जुर्माना - Death Due to negligence

उनका तर्क था कि आवेदन करने वाले श्यामलाल ने बैंक को दोनों मकानों के बीच गेट निकालने की भी सहमति दे दी थी. उनका कहना था कि प्रार्थी का नया लोन नहीं था. बल्कि पहले से चल रहे लोन को दूसरे बैंक में टेक ओवर करने का आवेदन था. इसके बावजूद अवैध रुप से आवेदन निरस्त करना और प्रक्रिया फीस नहीं लौटाना बैंक की सेवा में कमी और अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस है. राज्य आयोग की सर्किट बैंच अजमेर के पीठासीन अधिकारी निर्मल सिंह मेडतवाल, सदस्य संजय टाक ने वकील के तर्कों से सहमत होकर नागौर जिला आयोग के निर्णय को उचित ठहराया और एचडीएफसी बैंक लिमिटेड की अपील खारिज कर दी.

अजमेर: ऋण प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया, तो बैंक को प्रोसेसिंग फीस लौटानी होगी. राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग की सर्किट बेंच अजमेर ने अपने इस मत के साथ एचडीएफसी बैंक को सेवा में कमी और अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस का जिम्मेदार माना है. सर्किट बैंच अजमेर ने बैंक की अपील खारिज कर जिला आयोग नागौर के निर्णय को बरकरार रखा है.

ऐसी स्थिति में बैंक को लौटानी होगी प्रो​सेसिंग फीस (ETV Bharat Ajmer)

वकील सूर्य प्रकाश गांधी ने बताया कि मामले के अनुसार हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी, नागौर निवासी श्यामलाल जाट ने 2012 में एचडीएफसी बैंक में होम लोन टेक ओवर के लिए आवेदन किया था. आवेदन के साथ समस्त दस्तावेज तथा 8260 रुपए प्रोसेस फीस के भी अदा किए थे. बैंक ने आवेदन के बाद श्यामलाल के मकान का सर्वे कराया और बताया कि श्यामलाल और उसके भाई के मकान के बीच में एक दरवाजा निकालना होगा. तब ही लोन दिया जाना संभव है.

पढ़ें: उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग का फैसला: बीमा कंपनी को बैंक को देनी होगी दावे की राशि

श्यामलाल ने बैंक को एक मेल भेज कर दरवाजा निकालने के लिए अपनी सहमति भी दे दी. इसके बावजूद बैंक ने प्रार्थी का ऋण आवेदन तकनीकी कारणों से खारिज कर दिया. उन्होंने बताया कि प्रार्थना पत्र खारिज करने के बाद श्यामलाल जाट ने बैंक को पत्र लिखकर उसकी प्रक्रिया फीस वापस लौटने की मांग की. बैंक ने यह कहकर फीस अदा करने से इनकार कर दिया की फीस नॉन रिफंडेबल है. जिसे प्रार्थी प्राप्त करने का अधिकार ही नहीं है.

पढ़ें: नवजात की आंख खराब होने के मामले में निजी अस्पताल को देना होगा 19 लाख जुर्माना - Newborn Health Controversy

बैंक को फीस और हर्जाना देना होगा: वकील सूर्य प्रकाश गांधी ने बताया कि नागौर उपभोक्ता आयोग ने श्यामलाल का परिवाद स्वीकार कर बैंक को आदेश दिया कि वह प्रार्थी को उसकी जमा फीस तथा हर्जाने के तौर पर 10 हजार रुपए अदा करे. बैंक ने राशि अदा करने की बजाय नागौर जिला आयोग के निर्णय को सर्किट बैंच अजमेर में चुनौती दी थी. बैंक का तर्क था कि फीस रिफंडेबल नहीं है. जबकि श्यामलाल के वकील सूर्य प्रकाश गांधी का तर्क था कि ऋण आवेदन पर प्रार्थी के हस्ताक्षर नहीं हैं. इसलिए वह किसी भी शर्त से बाध्य नहीं है.

पढ़ें: पूर्व सैनिक की पत्नी के इलाज में कोताही, मिलिट्री अस्पताल पर 10 लाख रुपए का जुर्माना - Death Due to negligence

उनका तर्क था कि आवेदन करने वाले श्यामलाल ने बैंक को दोनों मकानों के बीच गेट निकालने की भी सहमति दे दी थी. उनका कहना था कि प्रार्थी का नया लोन नहीं था. बल्कि पहले से चल रहे लोन को दूसरे बैंक में टेक ओवर करने का आवेदन था. इसके बावजूद अवैध रुप से आवेदन निरस्त करना और प्रक्रिया फीस नहीं लौटाना बैंक की सेवा में कमी और अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस है. राज्य आयोग की सर्किट बैंच अजमेर के पीठासीन अधिकारी निर्मल सिंह मेडतवाल, सदस्य संजय टाक ने वकील के तर्कों से सहमत होकर नागौर जिला आयोग के निर्णय को उचित ठहराया और एचडीएफसी बैंक लिमिटेड की अपील खारिज कर दी.

Last Updated : Oct 19, 2024, 11:25 PM IST
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