लखनऊ: उत्तर प्रदेश शासन का 'लोगो' तो आप सबने देखा होगा. सत्ता की मुहर के तौर पर लोगो में दो मछलियां सभी के जेहन में होंगी, लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर आजादी के बाद इसे सरकार ने क्यों अपनाया? इसके पीछे बड़ी दिलचस्प कहानी है. इतिहासकार इसे ईरान से भी जोड़कर देखते हैं. नवाबों के शहर में तमाम ऐतिहासिक इमारतों पर प्रतीक के रूप में ये दो मछलियां नजर आ जाएंगी. चाहे वह छोटा इमामबाड़ा हो या बड़ा इमामबाड़ा. इसके साथ ही लखनऊ विधानसभा, यूपी सरकार, पुलिस विभाग के आधिकारिक लोगो में भी यह मछलियां नजर आएंगी. आइए जानते हैं, इसके पीछे की क्या है कहानी.
ईरान और आर्यों से जुड़ी है कहानी: लखनऊ के प्रसिद्ध इतिहासकार रोशन तक़ी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. साथ ही इन मछलियों की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर रोशनी डाली. बताया-अवध के नवाब ईरानी संस्कृति से गहराई से प्रभावित थे. आर्य समाज में मछलियों को महत्वपूर्ण दर्जा दिया जाता था. यही वजह है कि ईरानी कलचर में मछलियों को महत्वपूर्ण जगह दी गई है. ईरान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान "माही मरातिब" कहलाता है, जिसका अर्थ है "मछली का प्रतीक" इसी से प्रेरित होकर नवाबों ने लखनऊ के ऐतिहासिक इमारतों और द्वारों पर मछलियों की नक्काशी का आदेश दिया.
मछली का शगुन और नवाबी परंपरा : एक दिलचस्प कहानी यह भी जुड़ी है कि जब नवाब सआदत अली खान ने अपनी राजधानी फैजाबाद से लखनऊ बनाई तो गोमती नदी पार करते समय उनकी कश्ती पर एक बड़ी मछली उछलकर आ गई. नवाब के वजीर ने इसे शुभ संकेत माना. उस समय मछली और दही को पहले से ही शुभता का प्रतीक माना जाता था. नवाब इस घटना से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने लखनऊ की कई इमारतों में मछलियों की नक्काशी करवाने का फरमान जारी किया.
अंग्रेजों का दौर और स्वतंत्र भारत में मछलियों का प्रतीक : नवाबी शासन के अंत के बाद, अंग्रेजों ने इस परंपरा को अधिक महत्व नहीं दिया, लेकिन स्वतंत्रता के बाद उत्तर प्रदेश शासन ने इन मछलियों को अपने आधिकारिक प्रतीक में शामिल किया. उत्तर प्रदेश पुलिस की मोहर में भी इन मछलियों का इस्तेमाल किया गया. यह न केवल नवाबी परंपराओं को बनाए रखने का संकेत था, बल्कि गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक भी बना.
उत्तर प्रदेश के लोगो में धनुष और तीर के साथ दो मछलियां साफ नजर आती हैं. यह प्रतीक न केवल राज्य की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को दर्शाता है, बल्कि नवाबी और भारतीय परंपराओं का सामंजस्य भी है. लखनऊ की यह कहानी सिर्फ नवाबी दौर तक सीमित नहीं है. इस शहर की पहचान और विरासत कई युगों को समेटे हुए है.
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