भरतपुर. पत्नी की 31 साल पहले आकाशीय बिजली गिरने से मौत हो गई थी. पत्नी की मौत का ऐसा सदमा लगा कि पति जीवन कुमार शाह उर्फ प्रेमानंद सरस्वती ने मानसिक संतुलन खो दिया. ऐसी हालत में एक साल बाद ही जीवन कुमार घर से लापता हो गए. परिजनों और बेटों ने बहुत तलाश किया, लेकिन पिता का कहीं कोई पता नहीं चला. यहां तक कि बेटों ने पिता को मृत समझकर उनका मृत्यु प्रमाण पत्र तक बनवा लिया. आखिर में अब 30 साल बाद अपना घर आश्रम में पिता जीवन कुमार का अपने बेटों से मिलन हुआ. पिता-पुत्र का मिलन देखकर हर किसी की आंखों में खुशी के आंसू थे.
अपना घर आश्रम की अध्यक्ष बबीता गुलाटी ने बताया कि असम के जिला सोनितपुर के रहने वाले जीवन कुमार शाह की पत्नी की वर्ष 1993 में आकाशीय बिजली गिरने से मृत्य हो गई थी. पत्नी के वियोग में मानसिक संतुलन खोने के बाद जीवन कुमार शाह घर से निकल गए. जिस समय जीवन कुमार घर से निकले उनके दो बेटे रणधीर शाह 16 साल और मनोरंजन शाह की उम्र महज 11 साल थी. साथ ही एक छोटा भाई प्रवीण शाह और दो छोटी बहनें भी थीं. घर से निकलने के बाद इनके छोटे भाई व पुत्रों ने थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी. उनको जहां-जहां संभव था, हर जगह खोजा, लेकिन कहीं कोई सफलता हाथ नहीं लगी. अंत में निराश होकर उनकी मृत्यु के सभी दस्तावेज मृत्यु प्रमाण पत्र सहित जारी करा लिए और अपने दस्तावेजों में भी स्वर्गीय लिखवा दिया.
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बबीता गुलाटी ने बताया कि ये प्रभुजी गंभीर मानसिक व शारीरिक रूप से बीमार हालत में वृंदावन में एक पार्क में पड़े मिले थे, जिनकी गंभीरता को देखते हुए तत्काल वृंदावन आश्रम की रेस्क्यू टीम द्वारा 22 अप्रैल, 2024 को सेवा व उपचार के लिए अपना घर आश्रम भरतपुर में भर्ती कराया गया. इनके बदन पर अत्यंत गंदे साधु जैसे वस्त्र मिले, जिसकी वजह से ही संस्था ने इनका नाम प्रेमानंद सरस्वती रखा. अपना घर में इनका सेवा व उपचार नियमित जारी रहा, जिससे एक माह के अंदर ही इन्होंने अपने परिवार का पता बता दिया. गांव सिराजुली, थाना ढेकियाजुली, जिला सोनितपुर असम का होना बताया.
अपना घर की पुर्नवास टीम के सदस्य शैलेंद्र त्यागी ने जीवन कुमार उर्फ प्रेमानंद सरस्वती द्वारा बताए गए पते पर संपर्क किया तो पहली बार में तो परिजन समझ नहीं पाए कि जीवन कुमार शाह अभी जिंदा भी हो सकते हैं. सभी परिजनों के लिए यह एक अविश्वसनीय सूचना थी, क्योंकि वो तो उन्हें मृत समझ चुके थे. परिजनों ने शैलेंद्र त्यागी से वीडियो कॉल करने को कहा. जब वीडियो कॉल पर एक-दूसरे को देखा तो 30 सालों में इतना सब कुछ बदल गया था कि एक-दूसरे को पहचान ही नहीं सके. लेकिन जब बेटों से वार्तालाप हुई तो एक दूसरे को पहचाना और खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा.
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शनिवार को दोनों बेटे रणधीर और मनोरंजन शाह अपने पिता को लेने अपना घर आश्रम पहुंचे. उन्होंने बताया कि पिता की गैर मौजूदगी में चाचा ने सभी भाई-बहनों को पाला और शादी-विवाह कराए. हालांकि, परिवार में शुभ व अच्छे कार्य होते रहे, लेकिन पिताजी की कमी खलती थी. आज हमारे पिता जी की कमी भी अपना घर की वजह से पूरी हो गई और हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि अपना घर जैसे आश्रम हर शहर में हों, जिससे हमारे पिता जी जैसे बिछड़े हुए लोग अपने परिजनों से मिलते रहें. उन्हें घर न मिलने की स्थिति में एक विकल्प अपना घर के रूप में हर शहर में ऐसे लोगों को मिल सके. पिता-पुत्र एक दूसरे से गले मिले. सभी की आंखों में मिलन की खुशी के आंसू थे. सभी लोग आश्रम से खुशी खुशी अपने घर के लिए रवाना हुए.