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लवी मेले में 'सोने के भाव' बिक रहा है ये लाल चावल, कीमत जान उड़ जाएंगे होश

हिमाचल प्रदेश के रोहड़ू में पाए जाने वाले लाल चावल, जिसे 'पैजा' कहते हैं. इसकी लवी मेले में भारी डिमांड देखने को मिल रही है.

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पैजा चावल (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 2 hours ago

Updated : 2 hours ago

रामपुर बुशहर: अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में अभी भी व्यापारियों ने अपने स्टॉल लगाए हैं. लोग मेले में जमकर खरीददारी कर रहे हैं, जबकि व्यापारी भी कारोबार अच्छा होने से खुश हैं. मेले में ड्राई फ्रूट, गर्म ऊनी वस्त्रों, मसालों समेत अन्य चीजों की भारी डिमांड देखने को मिल रही है, लेकिन हिमाचल प्रदेश के रोहड़ू क्षेत्र से लाए गए लाल चावल, जिसे 'पैजा' नाम से जाना जाता है, भारी डिमांड देखने को मिल रही है.

कीमत बहुत अधिक होने के बाद भी लोग इसकी जमकर खरीददारी कर रहे हैं. यह चावल 800 रुपये प्रति किलो की कीमत पर बिक रहा है. पौष्टिकता और दुर्लभता इसकी खासियत है. यह चावल न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, बल्कि इसकी खेती और उत्पादन की प्रक्रिया भी इसे खास बनाती है. वहीं, व्यापारी ने बताया कि, लवी मेले में हर साल वो पैजा चावल लेकर मेले में पहुंचते हैं. लोगों में इसकी भारी डिमांड देखने को मिलती है. इस बार ये चावल 800 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जा रहा है.

पैजा चावल की भारी डिमांड (ETV BHARAT)

रोहड़ू के स्थानीय निवासी रविंद्र ने बताया कि, 'यह चावल रोहडू के चिड़गाव तहसील की छुआरा बैल्ट में आने वाले पैजा गांव में इसकी काफी पैदावार होती है. इसके लिए पहले बीज से एक पौधा तैयार किया जाता है, उसके बाद पानी से खेत को भरा जाता है. मिट्टी में उस पौधे की रोपाई की जाती है. पैजा गांव का यह चावल काफी मशहूर है. इसकी खेती के लिए जैविक और प्राकृतिक तरीकों का उपयोग किया जाता है. किसान रासायनिक खादों के बजाय पारंपरिक खाद, गोबर और अन्य जैविक सामग्री का उपयोग करते हैं. इसकी खेती के लिए विशेष प्रकार की मिट्टी और जलवायु की आवश्यकता होती है.' लाल चावल आमतौर पर बंजर भूमि और ढलानों पर उगाए जाते हैं, जो अधिक मेहनत और समय मांगते हैं. इन चावलों को हाथ से काटा जाता है और धूप में सुखाया जाता है, जिससे उनकी गुणवत्ता बरकरार रहती है. इसकी खेती का उत्पादन अन्य चावलों की तुलना में कम होता है, जिससे यह दुर्लभ और मूल्यवान बन जाता है.

क्यों है यह इतना महंगा

यह चावल हिमाचल के कुछ ही क्षेत्रों में पाया जाता है और इसकी पैदावार सीमित मात्रा में होती है. रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग न करना इसकी खेती को महंगा बनाता है. इस चावल की खेती की हर प्रक्रिया में मानव श्रम का इस्तेमाल होता है. यह चावल पौष्टिकता से भरपूर और स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी है.

स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद

शुगर फ्री और पोषण से भरपूर लाल चावल पैजा को स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद फायदेमंद माना जाता है. बीएमओ रामपुर आरके नेगी ने बताया कि, 'यह ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) में कम होता है, यानी इसे खाने से शुगर का स्तर तेजी से नहीं बढ़ता. इसलिए यह शुगर और डायबिटीज के मरीजों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है. इसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जो पाचन को सुधारने में मदद करती है. इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट शरीर को बीमारियों से बचाने और इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक होते हैं. इसके अलावा, इसमें आयरन, जिंक और मैग्नीशियम जैसे खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो रक्तचाप को नियंत्रित करने, हड्डियों को मजबूत बनाने और शरीर को ऊर्जा प्रदान करने में मदद करते हैं.'

परंपरा और आधुनिकता का संगम

लाल चावल पैजा न केवल एक खाद्य पदार्थ है, बल्कि ये हिमाचल की समृद्ध परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है. इसे उगाने वाले किसान आधुनिक चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी परंपराओं को जीवित रख रहे हैं. पैजा चावल की खेती का हर पहलू इसे अनोखा बनाता है. इसके स्वास्थ्य लाभ, विशिष्ट उत्पादन प्रक्रिया और जैविक गुण इसे महंगा, लेकिन मूल्यवान बनाते हैं. ऐसे में यह चावल न केवल हिमाचल प्रदेश की पहचान बन चुका है, बल्कि अपने उपभोक्ताओं को स्वास्थ्य और स्वाद का अनमोल उपहार भी देता है.

ये भी पढ़ें: पश्मीना शॉल और मफलर आखिर क्यों होते हैं इतने महंगे, किन्नौर के व्यापारियों ने बताई वजह

रामपुर बुशहर: अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में अभी भी व्यापारियों ने अपने स्टॉल लगाए हैं. लोग मेले में जमकर खरीददारी कर रहे हैं, जबकि व्यापारी भी कारोबार अच्छा होने से खुश हैं. मेले में ड्राई फ्रूट, गर्म ऊनी वस्त्रों, मसालों समेत अन्य चीजों की भारी डिमांड देखने को मिल रही है, लेकिन हिमाचल प्रदेश के रोहड़ू क्षेत्र से लाए गए लाल चावल, जिसे 'पैजा' नाम से जाना जाता है, भारी डिमांड देखने को मिल रही है.

कीमत बहुत अधिक होने के बाद भी लोग इसकी जमकर खरीददारी कर रहे हैं. यह चावल 800 रुपये प्रति किलो की कीमत पर बिक रहा है. पौष्टिकता और दुर्लभता इसकी खासियत है. यह चावल न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, बल्कि इसकी खेती और उत्पादन की प्रक्रिया भी इसे खास बनाती है. वहीं, व्यापारी ने बताया कि, लवी मेले में हर साल वो पैजा चावल लेकर मेले में पहुंचते हैं. लोगों में इसकी भारी डिमांड देखने को मिलती है. इस बार ये चावल 800 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जा रहा है.

पैजा चावल की भारी डिमांड (ETV BHARAT)

रोहड़ू के स्थानीय निवासी रविंद्र ने बताया कि, 'यह चावल रोहडू के चिड़गाव तहसील की छुआरा बैल्ट में आने वाले पैजा गांव में इसकी काफी पैदावार होती है. इसके लिए पहले बीज से एक पौधा तैयार किया जाता है, उसके बाद पानी से खेत को भरा जाता है. मिट्टी में उस पौधे की रोपाई की जाती है. पैजा गांव का यह चावल काफी मशहूर है. इसकी खेती के लिए जैविक और प्राकृतिक तरीकों का उपयोग किया जाता है. किसान रासायनिक खादों के बजाय पारंपरिक खाद, गोबर और अन्य जैविक सामग्री का उपयोग करते हैं. इसकी खेती के लिए विशेष प्रकार की मिट्टी और जलवायु की आवश्यकता होती है.' लाल चावल आमतौर पर बंजर भूमि और ढलानों पर उगाए जाते हैं, जो अधिक मेहनत और समय मांगते हैं. इन चावलों को हाथ से काटा जाता है और धूप में सुखाया जाता है, जिससे उनकी गुणवत्ता बरकरार रहती है. इसकी खेती का उत्पादन अन्य चावलों की तुलना में कम होता है, जिससे यह दुर्लभ और मूल्यवान बन जाता है.

क्यों है यह इतना महंगा

यह चावल हिमाचल के कुछ ही क्षेत्रों में पाया जाता है और इसकी पैदावार सीमित मात्रा में होती है. रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग न करना इसकी खेती को महंगा बनाता है. इस चावल की खेती की हर प्रक्रिया में मानव श्रम का इस्तेमाल होता है. यह चावल पौष्टिकता से भरपूर और स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी है.

स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद

शुगर फ्री और पोषण से भरपूर लाल चावल पैजा को स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद फायदेमंद माना जाता है. बीएमओ रामपुर आरके नेगी ने बताया कि, 'यह ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) में कम होता है, यानी इसे खाने से शुगर का स्तर तेजी से नहीं बढ़ता. इसलिए यह शुगर और डायबिटीज के मरीजों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है. इसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जो पाचन को सुधारने में मदद करती है. इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट शरीर को बीमारियों से बचाने और इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक होते हैं. इसके अलावा, इसमें आयरन, जिंक और मैग्नीशियम जैसे खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो रक्तचाप को नियंत्रित करने, हड्डियों को मजबूत बनाने और शरीर को ऊर्जा प्रदान करने में मदद करते हैं.'

परंपरा और आधुनिकता का संगम

लाल चावल पैजा न केवल एक खाद्य पदार्थ है, बल्कि ये हिमाचल की समृद्ध परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है. इसे उगाने वाले किसान आधुनिक चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी परंपराओं को जीवित रख रहे हैं. पैजा चावल की खेती का हर पहलू इसे अनोखा बनाता है. इसके स्वास्थ्य लाभ, विशिष्ट उत्पादन प्रक्रिया और जैविक गुण इसे महंगा, लेकिन मूल्यवान बनाते हैं. ऐसे में यह चावल न केवल हिमाचल प्रदेश की पहचान बन चुका है, बल्कि अपने उपभोक्ताओं को स्वास्थ्य और स्वाद का अनमोल उपहार भी देता है.

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