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रामनगर में धान की रोपाई पर गूंजे हुड़किया बौल, उत्तराखंड की विरासत संजोए रखने की कवायद - Hudkiya Baul on planting of paddy

Hudkiya Baul resounded on the planting of paddy in Ramnagar उत्तराखंड विविध संस्कृतियों वाला प्रदेश है. यह प्रदेश अपने असंख्य मंदिरों, त्यौहारों और लोक परंपराओं के कारण देवभूमि कहा जाता है. यहां हर तीज-त्यौहार और कार्य के लिए गीत बने हैं. इन्हीं में से एक गीत है हुड़किया बौल. धान की रोपाई के दौरान खेतों में सामूहिक रूप से कार्य कर रहे किसानों के मुंह से जब हुड़किया बौल के सुर फूटते हैं, तो सुनने वाले खो से जाते हैं.

Hudkiya Baul
धान की रोपाई में हुड़किया बौल (Photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 19, 2024, 8:27 AM IST

Updated : Aug 19, 2024, 11:03 AM IST

धान की रोपाई पर गूंजा हुड़किया बौल (Video- ETV Bharat)

रामनगर: खेतों में हुड़किया बौल के गूंजते स्वर आज भी पहाड़ की उस संस्कृति की याद दिलाते हैं. हालांकि युवा पीढ़ी धीरे-धीरे इस संस्कृति से दूर होती जा रही है, लेकिन रामनगर में जब हुड़किया बौल पर धान की रोपाई हुई तो उसका नजारा देखने लायक था. यहां लोक संस्कृति को जिंदा रखने का प्रयास कई वर्षों से किया जा रहा है.

Hudkiya Baul
खेतों में धान की रोपाई करती महिलाएं (Photo- ETV Bharat)

धान की रोपाई पर गूंजा हुड़किया बौल: उत्तराखंड की लोक संस्कृति की झलक यहां के तीज त्यौहारों पर अक्सर देखने को मिल जाती है. यहां की संस्कृति जनमानस में रची बसी है. ये लोगों को एक दूसरे से जोड़े रखती है. उत्तराखंड में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा रही है. हुड़किया बौल इसमें प्रमुख है. उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में धान की रोपाई और मडुवे की गोड़ाई के समय हुड़किया बौल गाए जाते हैं. हालांकि धीरे-धीरे युवा इन रीति रिवाजों से दूर होते जा रहे हैं. बावजूद इसके कुछ जगहों पर आज भी उन परंपराओं को निभाया जा रहा है, जिसमें से एक है 'हुड़किया बौल'.

Hudkiya Baul
धान की रोपाई पर गाए जाते हैं हुड़किया बौल (Photo- ETV Bharat)

हुड़किया बौल से जिंदा रखी है संस्कृति: हुड़किया बौल में पहले भूमि के देवता भूमियां, पानी के देवता इंद्र, छाया के देव मेघ की वंदना से शुरुआत होती है. फिर हास्य और वीर रस आधारित राजुला मालूशाई, सिदु-बिदु, जुमला बैराणी आदि पौराणिक गाथाएं गाई जाती हैं. रामनगर में महिलाएं हुड़के की थाप में भूमि का भूमि आला देवा हो देवा सफल है जाया मंगल गीत के साथ खेतों में रोपाई लगा रही हैं. खेती और सामूहिक श्रम से जुड़ी यह परंपरा सिमटती जा रही है. लेकिन रामनगर के ग्रामीण इलाकों में बसे लोग आज भी संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं.

Hudkiya Baul
हुड़किया बौल सुनकर नहीं लगती थकान (Photo- ETV Bharat)

पलायन ने खेतो को बंजर कर दिया: ऐसा माना जाता है कि हुड़किया बौल के चलते दिन-भर रोपाई के बावजूद थकान महसूस नहीं होती. हुड़के की थाप पर लोकगीतों में ध्यान लगाकर महिलाएं तेजी से रोपाई के कार्य को निपटाती हैं. समूह में कार्य कर रही महिलाओं को हुड़का वादक अपने गीतों से जोश भरने का काम करता है. यह परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी कुमाऊं के कई हिस्सों में जीवंत है. कई हिस्सों में बदलते कक्रीट के जंगलों व पहाड़ों से पलायन ने इस परंपरा को खत्म कर दिया है, जो आने वाले समय में पर्यावरण के लिए नुकसानदायक होगा.

Hudkiya Baul
हुड़किया बौल के दौरान मसक बीन की धुन मन मोहती है (Photo- ETV Bharat)

पहली बार देखी धान की रोपाई तो छात्रा ने क्या कहा: वहीं इस कार्यक्रम में शामिल हुई दसवीं की छात्रा भक्ति उप्रेती कहती हैं कि उन्होंने पहली बार इस तरीके से हुड़का बौल में धान की रोपाई करते देखा. वो कहती हैं कि पहाड़ों पर लोगों ने अपनी खेती छोड़ दी है और पलायन कर लिया है. आज किसानों को प्रोत्साहित करते हुए सरकारों को पहाड़ों के किसानों के लिये ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि वह एक बार फिर अपनी जमीनों खुशहाल कर सकें और उन्हें सरकारों की तरफ से अच्छा लाभ मिले.
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धान की रोपाई पर गूंजा हुड़किया बौल (Video- ETV Bharat)

रामनगर: खेतों में हुड़किया बौल के गूंजते स्वर आज भी पहाड़ की उस संस्कृति की याद दिलाते हैं. हालांकि युवा पीढ़ी धीरे-धीरे इस संस्कृति से दूर होती जा रही है, लेकिन रामनगर में जब हुड़किया बौल पर धान की रोपाई हुई तो उसका नजारा देखने लायक था. यहां लोक संस्कृति को जिंदा रखने का प्रयास कई वर्षों से किया जा रहा है.

Hudkiya Baul
खेतों में धान की रोपाई करती महिलाएं (Photo- ETV Bharat)

धान की रोपाई पर गूंजा हुड़किया बौल: उत्तराखंड की लोक संस्कृति की झलक यहां के तीज त्यौहारों पर अक्सर देखने को मिल जाती है. यहां की संस्कृति जनमानस में रची बसी है. ये लोगों को एक दूसरे से जोड़े रखती है. उत्तराखंड में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा रही है. हुड़किया बौल इसमें प्रमुख है. उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में धान की रोपाई और मडुवे की गोड़ाई के समय हुड़किया बौल गाए जाते हैं. हालांकि धीरे-धीरे युवा इन रीति रिवाजों से दूर होते जा रहे हैं. बावजूद इसके कुछ जगहों पर आज भी उन परंपराओं को निभाया जा रहा है, जिसमें से एक है 'हुड़किया बौल'.

Hudkiya Baul
धान की रोपाई पर गाए जाते हैं हुड़किया बौल (Photo- ETV Bharat)

हुड़किया बौल से जिंदा रखी है संस्कृति: हुड़किया बौल में पहले भूमि के देवता भूमियां, पानी के देवता इंद्र, छाया के देव मेघ की वंदना से शुरुआत होती है. फिर हास्य और वीर रस आधारित राजुला मालूशाई, सिदु-बिदु, जुमला बैराणी आदि पौराणिक गाथाएं गाई जाती हैं. रामनगर में महिलाएं हुड़के की थाप में भूमि का भूमि आला देवा हो देवा सफल है जाया मंगल गीत के साथ खेतों में रोपाई लगा रही हैं. खेती और सामूहिक श्रम से जुड़ी यह परंपरा सिमटती जा रही है. लेकिन रामनगर के ग्रामीण इलाकों में बसे लोग आज भी संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं.

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हुड़किया बौल सुनकर नहीं लगती थकान (Photo- ETV Bharat)

पलायन ने खेतो को बंजर कर दिया: ऐसा माना जाता है कि हुड़किया बौल के चलते दिन-भर रोपाई के बावजूद थकान महसूस नहीं होती. हुड़के की थाप पर लोकगीतों में ध्यान लगाकर महिलाएं तेजी से रोपाई के कार्य को निपटाती हैं. समूह में कार्य कर रही महिलाओं को हुड़का वादक अपने गीतों से जोश भरने का काम करता है. यह परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी कुमाऊं के कई हिस्सों में जीवंत है. कई हिस्सों में बदलते कक्रीट के जंगलों व पहाड़ों से पलायन ने इस परंपरा को खत्म कर दिया है, जो आने वाले समय में पर्यावरण के लिए नुकसानदायक होगा.

Hudkiya Baul
हुड़किया बौल के दौरान मसक बीन की धुन मन मोहती है (Photo- ETV Bharat)

पहली बार देखी धान की रोपाई तो छात्रा ने क्या कहा: वहीं इस कार्यक्रम में शामिल हुई दसवीं की छात्रा भक्ति उप्रेती कहती हैं कि उन्होंने पहली बार इस तरीके से हुड़का बौल में धान की रोपाई करते देखा. वो कहती हैं कि पहाड़ों पर लोगों ने अपनी खेती छोड़ दी है और पलायन कर लिया है. आज किसानों को प्रोत्साहित करते हुए सरकारों को पहाड़ों के किसानों के लिये ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि वह एक बार फिर अपनी जमीनों खुशहाल कर सकें और उन्हें सरकारों की तरफ से अच्छा लाभ मिले.
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Last Updated : Aug 19, 2024, 11:03 AM IST
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