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हिमाचल में वेतन के लिए अब 5 सितंबर पर टिकी नजर, पेंशन के लिए भी बरकरार रहेगा इंतजार - Himachal Salary and Pension Delay - HIMACHAL SALARY AND PENSION DELAY

HP Govt Employees Salary Delay: हिमाचल प्रदेश के इतिहास में पहली बार महीने की 1 तारीख को कर्मचारियों के अकाउंट में सैलरी नहीं आई है. अभी कर्मचारियों को 5 तारीख तक सैलरी का इंतजार करना पड़ सकता है. जबकि पेंशनर्स को 10 तारीख तक का इंतजार करना पड़ सकता है.

HP Govt Employees Salary Delay
सुक्खू सरकार में आर्थिक संकट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Sep 3, 2024, 7:06 AM IST

शिमला: हिमाचल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि कर्मचारियों को पहली तारीख को वेतन नहीं मिला है. अब वेतन के लिए सरकारी कर्मचारियों को पांच सितंबर तक इंतजार करना होगा. पांच सितंबर को भी वेतन दोपहर बाद ही खाते में क्रेडिट होने के आसार हैं. केंद्र से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट की 520 करोड़ रुपए की रकम 5 सितंबर को राज्य सरकार की ट्रेजरी में आएगी. फिर ट्रेजरी से बैंक में पैसे आने की प्रक्रिया में समय लगता है. यदि पांच सितंबर को ये प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई तो वेतन के लिए एक दिन और इंतजार करना होगा. हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों के एक महीने के वेतन की रकम 1200 करोड़ रुपए के करीब बनती है. इसी तरह पेंशन का एक महीने का अमाउंट 800 करोड़ रुपए बनता है. कुल मिलाकर सरकार को एक महीने के वेतन और पेंशन के लिए 2000 करोड़ रुपए की रकम चाहिए. वेतन 5 सितंबर को नहीं आया तो अगले दिन यानी 6 सितंबर को संभावना होगी और पेंशन के लिए संभव है कि 10 सितंबर तक प्रतीक्षा करनी पड़े. अब सरकार इस संकट से कैसे पार पाएगी, इसे समझते हैं.

राज्य सरकार के पास बची कुल 2300 करोड़ लोन लिमिट

मान लो राज्य सरकार सैलरी व पेंशन के लिए लोन लेना चाहे तो क्या विकल्प हैं? राज्य सरकार की इस वित्त वर्ष में दिसंबर तक लोन लिमिट 6200 करोड़ रुपए है. इसमें से राज्य सरकार 3900 करोड़ रुपए का लोन ले चुकी है. अब कुल 2300 करोड़ की लोन लिमिट बची है. इस 2300 करोड़ रुपए से सरकार को दिसंबर महीने तक काम चलाना है. दिसंबर से मार्च 2025 की तिमाही के लिए केंद्र से अलग से लोन लिमिट सेंक्शन होगी. अब दिसंबर तक का समय निकालने के लिए भी सरकार को कठिनाई झेलनी पड़ेगी. कारण ये कि केवल और केवल वेतन व पेंशन के लिए 2000 करोड़ की रकम चाहिए. अब 2300 करोड़ रुपए की लोन लिमिट को देखें तो इस हिसाब से यदि सरकार इसे सारा का सारा लेने के लिए भी आवेदन करे तो ये एक महीने के वेतन व पेंशन के खर्च को ही संभाल पाएगा. ऐसे में सरकार को केंद्र से आने वाले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के पैसे का सहारा है, लेकिन उसमें भी समस्या ये है कि अकेले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पेंशन का 800 करोड़ का लोड नहीं उठा सकेगी.

आखिर ये नौबत आई कैसे ?

राज्य में आर्थिक संकट की ये नौबत आई कैसे? इसके कारणों पर गौर करें तो रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में टेपर फार्मूले (जिस फार्मूले के तहत ग्रांट हर महीने डिक्रीज होती है) से हर महीने ग्रांट कम हो जाती है. दूसरा लोन लिमिट में केंद्र ने कटौती कर दी है. आलम ये है कि इस वित्त वर्ष में यानी 2024-25 में रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में 1800 करोड़ की कटौती हुई है. अगले साल सिचुएशन और खराब होगी, जब कटौती 3000 करोड़ हो जाएगी. फिर राज्य सरकार ने ओपीएस लागू की है. इस कारण न्यू पेंशन स्कीम यानी एनपीएस के राज्य के कंट्रीब्यूशन के कारण मिलने वाला 2000 करोड़ का लोन भी हाथ से खिसक गया. इससे सरकार के खजाने पर एकदम से बोझ आ गया.

अब हर महीने पहली तारीख को आएगा संकट

चूंकि राज्य सरकार के पास कोई खास विकल्प नहीं है, लिहाजा हर महीने पहली तारीख को मिलने वाली सैलरी व पेंशन के लिए समय आगे खिसक सकता है. ये समय महीने की पहली तारीख के बजाय 6 तारीख हो सकता है. सरकार के खुद के टैक्स व नॉन टैक्स रेवेन्यू से हर महीने 1100 से 1200 करोड़ रुपए के करीब रकम जुटती है. इसमें वैट, शराब की बिक्री आदि से रेवेन्यू आता है. इस तरह कुल मिलाकर 520 करोड़ रुपए रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट, 1200 करोड़ टैक्स व नॉन टैक्स रेवेन्यू व कुछ रकम लोन की जुटा कर सरकार को वेतन व पेंशन का जुगाड़ करना होगा.

कर्ज का घी पीने से भी नहीं बनेगी बात

हालात ये हो गए हैं कि अब कर्ज की घी लेकर पीने से भी बात नहीं बनेगी. सुखविंदर सरकार ने 15 दिसंबर 2022 से लेकर 31 जुलाई 2024 तक कुल 21,366 करोड़ रुपए का लोन यानी कर्ज लिया है. सरकार ने इस दौरान बेशक 5864 करोड़ रुपए का कर्ज वापिस भी किया है, लेकिन इससे स्थितियां सुधरने वाली नहीं हैं. सरकार ने जीपीएफ के अगेंस्ट पहली जनवरी 2023 से 31 जुलाई 2024 तक की अवधि में भी 2810 करोड़ रुपए का लोन लिया है. अगले साल मार्च महीने में हिमाचल सरकार पर 92 हजार करोड़ रुपए से अधिक के कर्ज का अनुमान है. फिर अगले साल किसी भी समय राज्य के कर्ज का आंकड़ा एक लाख करोड़ रुपए को छू सकता है. ऐसे में वेतन व पेंशन के लिए जुगाड़ करना आसान नहीं होगा.

हिमाचल सरकार के वित्त सचिव रहे सेवानिवृत आईएएस अधिकारी केआर भारती का कहना है, "कर्ज की समस्या विकराल हो गई है. इसे काबू में करने के लिए कई मोर्चों पर काम करने की जरूरत है. सरकार को गैर जरूरी खर्चों पर नियंत्रण करना होगा." कर्मचारी नेता संजीव शर्मा पहले ही कह चुके हैं कि अफसरों व मंत्रियों के खर्च बेलगाम हैं.

नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का कहना है, "सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य में ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि कर्मचारियों व पेंशनर्स को वेतन और पेंशन के लिए परेशान होना पड़ रहा है. खैर, सितंबर महीने में वेतन व पेंशन की अदायगी का जो शेड्यूल होगा, आने वाले महीनों में भी स्थितियां संभवत: वैसी ही रहेंगी. कहीं दिसंबर तक हर महीने यही स्थितियां देखने को न मिलें."

ये भी पढ़ें: हिमाचल में कांग्रेस सरकार नहीं दे पाई वेतन और पेंशन, राज्य के इतिहास में पहली बार महीने की शुरुआत में नहीं आई सैलेरी

ये भी पढ़ें: "हिमाचल पर घोर वित्तीय संकट", हर महीने सैलरी और पेंशन के लिए चाहिए इतने करोड़

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ये भी पढ़ें: "आर्थिक संकट से उभर रहा हिमाचल, प्रदेश सरकार ने एक साल में अर्थव्यवस्था में किया 20 फीसदी सुधार"

शिमला: हिमाचल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि कर्मचारियों को पहली तारीख को वेतन नहीं मिला है. अब वेतन के लिए सरकारी कर्मचारियों को पांच सितंबर तक इंतजार करना होगा. पांच सितंबर को भी वेतन दोपहर बाद ही खाते में क्रेडिट होने के आसार हैं. केंद्र से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट की 520 करोड़ रुपए की रकम 5 सितंबर को राज्य सरकार की ट्रेजरी में आएगी. फिर ट्रेजरी से बैंक में पैसे आने की प्रक्रिया में समय लगता है. यदि पांच सितंबर को ये प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई तो वेतन के लिए एक दिन और इंतजार करना होगा. हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों के एक महीने के वेतन की रकम 1200 करोड़ रुपए के करीब बनती है. इसी तरह पेंशन का एक महीने का अमाउंट 800 करोड़ रुपए बनता है. कुल मिलाकर सरकार को एक महीने के वेतन और पेंशन के लिए 2000 करोड़ रुपए की रकम चाहिए. वेतन 5 सितंबर को नहीं आया तो अगले दिन यानी 6 सितंबर को संभावना होगी और पेंशन के लिए संभव है कि 10 सितंबर तक प्रतीक्षा करनी पड़े. अब सरकार इस संकट से कैसे पार पाएगी, इसे समझते हैं.

राज्य सरकार के पास बची कुल 2300 करोड़ लोन लिमिट

मान लो राज्य सरकार सैलरी व पेंशन के लिए लोन लेना चाहे तो क्या विकल्प हैं? राज्य सरकार की इस वित्त वर्ष में दिसंबर तक लोन लिमिट 6200 करोड़ रुपए है. इसमें से राज्य सरकार 3900 करोड़ रुपए का लोन ले चुकी है. अब कुल 2300 करोड़ की लोन लिमिट बची है. इस 2300 करोड़ रुपए से सरकार को दिसंबर महीने तक काम चलाना है. दिसंबर से मार्च 2025 की तिमाही के लिए केंद्र से अलग से लोन लिमिट सेंक्शन होगी. अब दिसंबर तक का समय निकालने के लिए भी सरकार को कठिनाई झेलनी पड़ेगी. कारण ये कि केवल और केवल वेतन व पेंशन के लिए 2000 करोड़ की रकम चाहिए. अब 2300 करोड़ रुपए की लोन लिमिट को देखें तो इस हिसाब से यदि सरकार इसे सारा का सारा लेने के लिए भी आवेदन करे तो ये एक महीने के वेतन व पेंशन के खर्च को ही संभाल पाएगा. ऐसे में सरकार को केंद्र से आने वाले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के पैसे का सहारा है, लेकिन उसमें भी समस्या ये है कि अकेले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पेंशन का 800 करोड़ का लोड नहीं उठा सकेगी.

आखिर ये नौबत आई कैसे ?

राज्य में आर्थिक संकट की ये नौबत आई कैसे? इसके कारणों पर गौर करें तो रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में टेपर फार्मूले (जिस फार्मूले के तहत ग्रांट हर महीने डिक्रीज होती है) से हर महीने ग्रांट कम हो जाती है. दूसरा लोन लिमिट में केंद्र ने कटौती कर दी है. आलम ये है कि इस वित्त वर्ष में यानी 2024-25 में रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में 1800 करोड़ की कटौती हुई है. अगले साल सिचुएशन और खराब होगी, जब कटौती 3000 करोड़ हो जाएगी. फिर राज्य सरकार ने ओपीएस लागू की है. इस कारण न्यू पेंशन स्कीम यानी एनपीएस के राज्य के कंट्रीब्यूशन के कारण मिलने वाला 2000 करोड़ का लोन भी हाथ से खिसक गया. इससे सरकार के खजाने पर एकदम से बोझ आ गया.

अब हर महीने पहली तारीख को आएगा संकट

चूंकि राज्य सरकार के पास कोई खास विकल्प नहीं है, लिहाजा हर महीने पहली तारीख को मिलने वाली सैलरी व पेंशन के लिए समय आगे खिसक सकता है. ये समय महीने की पहली तारीख के बजाय 6 तारीख हो सकता है. सरकार के खुद के टैक्स व नॉन टैक्स रेवेन्यू से हर महीने 1100 से 1200 करोड़ रुपए के करीब रकम जुटती है. इसमें वैट, शराब की बिक्री आदि से रेवेन्यू आता है. इस तरह कुल मिलाकर 520 करोड़ रुपए रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट, 1200 करोड़ टैक्स व नॉन टैक्स रेवेन्यू व कुछ रकम लोन की जुटा कर सरकार को वेतन व पेंशन का जुगाड़ करना होगा.

कर्ज का घी पीने से भी नहीं बनेगी बात

हालात ये हो गए हैं कि अब कर्ज की घी लेकर पीने से भी बात नहीं बनेगी. सुखविंदर सरकार ने 15 दिसंबर 2022 से लेकर 31 जुलाई 2024 तक कुल 21,366 करोड़ रुपए का लोन यानी कर्ज लिया है. सरकार ने इस दौरान बेशक 5864 करोड़ रुपए का कर्ज वापिस भी किया है, लेकिन इससे स्थितियां सुधरने वाली नहीं हैं. सरकार ने जीपीएफ के अगेंस्ट पहली जनवरी 2023 से 31 जुलाई 2024 तक की अवधि में भी 2810 करोड़ रुपए का लोन लिया है. अगले साल मार्च महीने में हिमाचल सरकार पर 92 हजार करोड़ रुपए से अधिक के कर्ज का अनुमान है. फिर अगले साल किसी भी समय राज्य के कर्ज का आंकड़ा एक लाख करोड़ रुपए को छू सकता है. ऐसे में वेतन व पेंशन के लिए जुगाड़ करना आसान नहीं होगा.

हिमाचल सरकार के वित्त सचिव रहे सेवानिवृत आईएएस अधिकारी केआर भारती का कहना है, "कर्ज की समस्या विकराल हो गई है. इसे काबू में करने के लिए कई मोर्चों पर काम करने की जरूरत है. सरकार को गैर जरूरी खर्चों पर नियंत्रण करना होगा." कर्मचारी नेता संजीव शर्मा पहले ही कह चुके हैं कि अफसरों व मंत्रियों के खर्च बेलगाम हैं.

नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का कहना है, "सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य में ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि कर्मचारियों व पेंशनर्स को वेतन और पेंशन के लिए परेशान होना पड़ रहा है. खैर, सितंबर महीने में वेतन व पेंशन की अदायगी का जो शेड्यूल होगा, आने वाले महीनों में भी स्थितियां संभवत: वैसी ही रहेंगी. कहीं दिसंबर तक हर महीने यही स्थितियां देखने को न मिलें."

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