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मायावती, 4 बार यूपी की मुख्यमंत्री, 8 बार बसपा सुप्रीमो; प्रदेश की एकमात्र महिला जिसका राजनीति में चला सिक्का - BSP Supremo Mayawati

मायावती की सियासत का स्वर्णिम काल साल 2007 था. साल 2003 से लेकर 2024 तक मायावती सात बार पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुकी हैं. अब एक बार फिर वह राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पार्टी को स्थापित करने का काम करेंगी. 2003 से लेकर साल 2024 तक बीएसपी सुप्रीमो ने पार्टी में कई उतार चढ़ाव देखे हैं. आइए जानते हैं कि बीएसपी को फर्श से अर्श तक पहुंचने वाली मायावती का कैसा रहा राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल.

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बसपा सुप्रीमो और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 28, 2024, 1:56 PM IST

लखनऊ: बीएसपी सुप्रीमो मायावती को पार्टी नेताओं ने एक बार फिर सर्वसम्मति से आठवीं बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना है. 18 सितंबर साल 2003 को पहली बार उन्होंने पार्टी की कमान संभाली थी. इसके बाद बीएसपी सुप्रीमो ने जमकर मेहनत की और चार साल में ही पार्टी के लिए एक ऐसा स्वर्णिम अवसर लाने में सफल हुईं जो इतिहास में दर्ज हो गया. वह साल था 2007 जब उत्तर प्रदेश में पहली बार प्रचंड बहुमत की सरकार आई थी और इसका श्रेय बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती को जाता है.

मायावती साल 2007 में चौथी बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थीं. यह उनकी सियासत का स्वर्णिम काल था. साल 2003 से लेकर 2024 तक मायावती सात बार पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुकी हैं. अब एक बार फिर वह राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पार्टी को स्थापित करने का काम करेंगी. 2003 से लेकर साल 2024 तक बीएसपी सुप्रीमो ने पार्टी में कई उतार चढ़ाव देखे हैं.

साल 1977 में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के संपर्क में मायावती आई थीं. कांशीराम ने मायावती के तेज तर्रार स्वभाव को भांप लिया और अपनी कोर टीम का हिस्सा बना लिया. साल 1984 में जब बहुजन समाज पार्टी की स्थापना हुई तो पहली बार ही मुजफ्फरनगर जिले की कैराना लोकसभा सीट से मायावती को प्रत्याशी बनाया गया. हालांकि, उन्हें जीत नहीं मिली.

1985 में बिजनौर और 1987 में हरिद्वार से मैदान में उतारा गया लेकिन सफलता नहीं मिली. पहली बार 1989 के लोकसभा चुनाव में बिजनौर सीट से मायावती ने भारी मतों से चुनाव जीत लिया. इसके बाद 1994 में भी वे लोकसभा चुनाव जीतने में सफल हुईं. 1994 ही में बीएसपी सुप्रीमो पहली बार राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुईं. 1995 में वह अपनी पार्टी के प्रमुख के रूप में एक अल्पकालिक गठबंधन सरकार में यूपी की मुख्यमंत्री बनीं जो उस समय तक उत्तर प्रदेश के इतिहास में सबसे कम उम्र की महिला मुख्यमंत्री थीं और भारत में पहली महिला दलित मुख्यमंत्री के रूप में भी मायावती ने ही अपना नाम दर्ज कराया था.

1997 में कुछ समय के लिए और फिर 2002 से 2003 तक भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में मायावती मुख्यमंत्री बनीं. साल 2001 में कांशीराम ने उन्हें पार्टी नेतृत्व के लिए अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. 18 सितंबर 2003 को मायावती पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गईं. इसके बाद 27 अगस्त 2006 को भी लगातार दूसरी बार राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं. तब से लेकर अब तक वह लगातार पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित होती रही हैं. अब एक बार फिर पार्टी के पदाधिकारियों ने उन्हें ही पार्टी की कमान सौंपी है.

साल 2003 में मायावती जब पहली बार पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं तो उत्तर प्रदेश में उन्होंने पार्टी को फिर से स्थापित करने का संकल्प लिया और कार्यकर्ताओं के साथ जमीन पर उतरकर पार्टी को मजबूत करने का बीड़ा उठाया. चार साल उन्होंने जमकर मेहनत की और फिर उत्तर प्रदेश में साल 2007 का विधानसभा चुनाव आया. इस चुनाव में मायावती ने वह कर दिखाया जो उत्तर प्रदेश में पहले किसी भी पार्टी नहीं कर पाई थी.

प्रचंड बहुमत के साथ पहली बार यूपी में बहुजन समाज पार्टी की सरकार सत्ता में आई. हालांकि मायावती का दबदबा पांच साल ही कायम रह सका. इसके बाद सपा ने 2012 में बसपा से भी ज्यादा सीटें हासिल कर सत्ता पर कब्जा जमा लिया.

साल 2012 के बाद ही बहुजन समाज पार्टी अर्श से फर्श की तरफ बढ़ने लगी. लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव, देश भर में बहुजन समाज पार्टी का ग्राफ चढ़ने के बजाय खिसकने लगा. पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के दर्जे पर भी संकट के बदले मंडराने लगे. हालांकि पार्टी का अभी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा कायम है, लेकिन चुनाव आयोग अगर वर्तमान में समीक्षा करे तो पार्टी का यह दर्जा भी छिन सकता है.

हालांकि बहुजन समाज पार्टी मुखिया को यह मालूम है इसीलिए अब विभिन्न राज्यों में हो रहे चुनाव में वह वहां की पार्टियों से मिलकर चुनाव लड़ रही हैं जिससे राष्ट्रीय पार्टी बने रहने के लिए जो मत प्रतिशत आवश्यक होता है, वह बरकरार रहे.

धुर विरोधी सपा से किया गठबंधन: अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के कार्यकाल में ही मायावती ने अपने साथ हुई जून 1995 की घटना को भी भुला दिया. धुर विरोधी समाजवादी पार्टी से गठबंधन करके लोकसभा चुनाव भी लड़ लिया. पार्टी की हालत खस्ता होने पर बीएसपी सुप्रीमो ने फैसला लिया था. हालांकि पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन के चलते शून्य से 10 सीटें हासिल करने में सफल जरूर हुई, लेकिन सपा से गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चल सका.

2024 में बीएसपी ने अकेले दम लोकसभा चुनाव लड़ा और राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के नेतृत्व में देशभर में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली. वर्तमान में पार्टी का एक भी सांसद नहीं है. यह स्थिति बसपा के साथ ही मायावती के लिए भी चिंताजनक बनी हुई है.

विधानसभा चुनाव में भी निराशाजनक प्रदर्शन: विधानसभा चुनाव 2022 भी बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने अकेले दम लड़ने का फैसला लिया था. इसका भी नतीजा यह हुआ कि पार्टी उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से सिर्फ एक ही सीट जीतने में कामयाब हो पाई थी. वर्तमान में पार्टी का एक ही विधायक है. विधान परिषद में पार्टी का प्रतिनिधित्व ही नहीं बचा है.

ये भी पढ़ेंः मायावती बोलीं, मैं नहीं बनूंगी राष्ट्रपति, ना ही लूंगी राजनीति से सन्यास; ये सब सिर्फ अफवाह

लखनऊ: बीएसपी सुप्रीमो मायावती को पार्टी नेताओं ने एक बार फिर सर्वसम्मति से आठवीं बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना है. 18 सितंबर साल 2003 को पहली बार उन्होंने पार्टी की कमान संभाली थी. इसके बाद बीएसपी सुप्रीमो ने जमकर मेहनत की और चार साल में ही पार्टी के लिए एक ऐसा स्वर्णिम अवसर लाने में सफल हुईं जो इतिहास में दर्ज हो गया. वह साल था 2007 जब उत्तर प्रदेश में पहली बार प्रचंड बहुमत की सरकार आई थी और इसका श्रेय बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती को जाता है.

मायावती साल 2007 में चौथी बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थीं. यह उनकी सियासत का स्वर्णिम काल था. साल 2003 से लेकर 2024 तक मायावती सात बार पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुकी हैं. अब एक बार फिर वह राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पार्टी को स्थापित करने का काम करेंगी. 2003 से लेकर साल 2024 तक बीएसपी सुप्रीमो ने पार्टी में कई उतार चढ़ाव देखे हैं.

साल 1977 में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के संपर्क में मायावती आई थीं. कांशीराम ने मायावती के तेज तर्रार स्वभाव को भांप लिया और अपनी कोर टीम का हिस्सा बना लिया. साल 1984 में जब बहुजन समाज पार्टी की स्थापना हुई तो पहली बार ही मुजफ्फरनगर जिले की कैराना लोकसभा सीट से मायावती को प्रत्याशी बनाया गया. हालांकि, उन्हें जीत नहीं मिली.

1985 में बिजनौर और 1987 में हरिद्वार से मैदान में उतारा गया लेकिन सफलता नहीं मिली. पहली बार 1989 के लोकसभा चुनाव में बिजनौर सीट से मायावती ने भारी मतों से चुनाव जीत लिया. इसके बाद 1994 में भी वे लोकसभा चुनाव जीतने में सफल हुईं. 1994 ही में बीएसपी सुप्रीमो पहली बार राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुईं. 1995 में वह अपनी पार्टी के प्रमुख के रूप में एक अल्पकालिक गठबंधन सरकार में यूपी की मुख्यमंत्री बनीं जो उस समय तक उत्तर प्रदेश के इतिहास में सबसे कम उम्र की महिला मुख्यमंत्री थीं और भारत में पहली महिला दलित मुख्यमंत्री के रूप में भी मायावती ने ही अपना नाम दर्ज कराया था.

1997 में कुछ समय के लिए और फिर 2002 से 2003 तक भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में मायावती मुख्यमंत्री बनीं. साल 2001 में कांशीराम ने उन्हें पार्टी नेतृत्व के लिए अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. 18 सितंबर 2003 को मायावती पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गईं. इसके बाद 27 अगस्त 2006 को भी लगातार दूसरी बार राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं. तब से लेकर अब तक वह लगातार पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित होती रही हैं. अब एक बार फिर पार्टी के पदाधिकारियों ने उन्हें ही पार्टी की कमान सौंपी है.

साल 2003 में मायावती जब पहली बार पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं तो उत्तर प्रदेश में उन्होंने पार्टी को फिर से स्थापित करने का संकल्प लिया और कार्यकर्ताओं के साथ जमीन पर उतरकर पार्टी को मजबूत करने का बीड़ा उठाया. चार साल उन्होंने जमकर मेहनत की और फिर उत्तर प्रदेश में साल 2007 का विधानसभा चुनाव आया. इस चुनाव में मायावती ने वह कर दिखाया जो उत्तर प्रदेश में पहले किसी भी पार्टी नहीं कर पाई थी.

प्रचंड बहुमत के साथ पहली बार यूपी में बहुजन समाज पार्टी की सरकार सत्ता में आई. हालांकि मायावती का दबदबा पांच साल ही कायम रह सका. इसके बाद सपा ने 2012 में बसपा से भी ज्यादा सीटें हासिल कर सत्ता पर कब्जा जमा लिया.

साल 2012 के बाद ही बहुजन समाज पार्टी अर्श से फर्श की तरफ बढ़ने लगी. लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव, देश भर में बहुजन समाज पार्टी का ग्राफ चढ़ने के बजाय खिसकने लगा. पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के दर्जे पर भी संकट के बदले मंडराने लगे. हालांकि पार्टी का अभी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा कायम है, लेकिन चुनाव आयोग अगर वर्तमान में समीक्षा करे तो पार्टी का यह दर्जा भी छिन सकता है.

हालांकि बहुजन समाज पार्टी मुखिया को यह मालूम है इसीलिए अब विभिन्न राज्यों में हो रहे चुनाव में वह वहां की पार्टियों से मिलकर चुनाव लड़ रही हैं जिससे राष्ट्रीय पार्टी बने रहने के लिए जो मत प्रतिशत आवश्यक होता है, वह बरकरार रहे.

धुर विरोधी सपा से किया गठबंधन: अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के कार्यकाल में ही मायावती ने अपने साथ हुई जून 1995 की घटना को भी भुला दिया. धुर विरोधी समाजवादी पार्टी से गठबंधन करके लोकसभा चुनाव भी लड़ लिया. पार्टी की हालत खस्ता होने पर बीएसपी सुप्रीमो ने फैसला लिया था. हालांकि पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन के चलते शून्य से 10 सीटें हासिल करने में सफल जरूर हुई, लेकिन सपा से गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चल सका.

2024 में बीएसपी ने अकेले दम लोकसभा चुनाव लड़ा और राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के नेतृत्व में देशभर में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली. वर्तमान में पार्टी का एक भी सांसद नहीं है. यह स्थिति बसपा के साथ ही मायावती के लिए भी चिंताजनक बनी हुई है.

विधानसभा चुनाव में भी निराशाजनक प्रदर्शन: विधानसभा चुनाव 2022 भी बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने अकेले दम लड़ने का फैसला लिया था. इसका भी नतीजा यह हुआ कि पार्टी उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से सिर्फ एक ही सीट जीतने में कामयाब हो पाई थी. वर्तमान में पार्टी का एक ही विधायक है. विधान परिषद में पार्टी का प्रतिनिधित्व ही नहीं बचा है.

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