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खूंखार भेड़ियों से रेबीज फैलने का खतरा, मानव शरीर में बहुत तेजी से फैलता है ये वायरस, जानिए कैसे बचें? - Dr Kailash Kumar Gupta

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 18, 2024, 4:31 PM IST

भेड़िये, कुत्ते, बिल्ली समेत अन्य जंगली जानवरों से मानव में होने वाले रैबीज को लेकर ईटीवी भारत से इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस बीएचयू वाराणसी के निदेशक डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता ने खास बातचीत की. आइए, जानते हैं रेबीज के शरीर में फैलने की स्पीड और बचाव के तरीके.

रेबीज वायरस मनुष्य के शरीर में एक घंटे में 1.0 एमएम चलता है.
रेबीज वायरस मनुष्य के शरीर में एक घंटे में 1.0 एमएम चलता है. (Photo Credit; ETV Bharat)

आगराः उत्तर प्रदेश के बहराइच समेत कई जिलों में इन दिनों भेड़ियों का आतंक है. जो इंसानों की आबादी में घुसकर हमला कर रहे हैं. भेड़ियों के सीधे हमले में लोगों की जान भी जा रही है. इसके साथ ही जो लोग भेड़ियों के हमले का शिकार हुए हैं, उनमें रेबीज फैलने का भी बड़ा खतरा है. एक बार शरीर में यदि रेबीज फैल गया तो उसे काबू में करना खासा मुश्किल हो सकता है. क्योंकि, मानव शरीर में काटे गए जगह से 24 घंटे में 24 एमएम दिमाग की ओर चलता है. ये बातें ईटीवी भारत से इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस बीएचयू के निदेशक डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता ने खास बातचीत में कही.

रेबीज के बारे में डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता से जानिए. (Video Credit; ETV Bharat)


इस वजह से जंगल से आबादी में पहुंच रहे भेड़िएः डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता बताते हैं कि इन दिनों यूपी में भेड़िए आबादी में पहुंच रहे हैं. भेड़िए हमलावर हो गए हैं. इसकी तीन वजह है. जंगलों में जलभराव की वजह भेड़िए आबादी में पहुंच रहे हैं. जलभराव के साथ ही भोजन की कमी की वजह से भी भेड़िए आबादी में पहुंच कर इंसानों पर हमला कर रहे हैं. तीसरी वजह, जंगलों में मानव की बढती दखल भी हो सकती है. उन्होंने बताया कि सभी जंगली जानवरों को रैबिड एनीमल माना जाता है. यानी इनमें रेबीज कभी भी हो सकता है. इसलिए भेड़ियों से रेबीज फैलने का खतरा लगातार बढ़ रहा है.

रेबीज वायरस से  कैसे बचें.
रेबीज वायरस से कैसे बचें. (Photo Credit; ETV Bharat)

बुलेट के आखार का होता है रेबीज वायरसः आगरा में एसोसिएशन ऑफ फिजीशियंस ऑफ इंडिया (एपीआई) की सालाना दो दिवसीय कांफ्रेंस यूपीएपीआईकान-24 यूपी चैप्टर का आयोजन किया गया. जिसमें देशभर से फिजीशियन आए और तमाम बीमारियों पर अपने अनुभव और टिप्स बताए. इसी दौरान ईटीवी से बातचीत करते हुए डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता ने भेड़िये, कुत्ते, बिल्ली समेत अन्य जंगली जानवरों से मानव में होने वाले रेबीज के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि रेबीज आरएनए वायरस है, जो गर्म खून वाले यानी इंसानों और जंगली जानवरों में फैलता है. मुख्य रूप से रेबीज वायरस हमेशा जानवरों से इंसानों में फैलता है. वायरस का आकार बुलेट (बंदूक की गोली) जैसा है. इस वायरस का आकार 75 बाई 180 एनएम होता है. इसके साथ ही शरीर में इस वायरस की रफ्तार बहुत तेज है. रेबीज वायरस मनुष्य के शरीर में एक घंटे में 1.0 एमएम चलता है. जंगली जानवर के काटे गए स्थान से 24 घंटे में मानव शरीर में 24 एमएम दिमाग की ओर पहुंच जाएगा. एक बार रेबीज हुआ तो मौत तय है.


98 फीसदी रेबीज फैलाता है कुत्ताः डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता बताते हैं कि हर जंगली जानवर रेबीज फैलाता है. इसमें सबसे ज्यादा 98 फीसदी रेबीज कुत्ते से होता है. 2.0 फीसदी बिल्ली, एक प्रतिशत बंदर से होता है. इसके साथ ही लोमड़ी, गधे, घोड़े, सुअर से भी हो रेबीज सकता है. मगर, किसी कुत्ते को छूने, पेशाब या पोटी को हाथ लगाने से रेबीज रोग नहीं होता है. अधिक भौंकने वाले, कूड़ाघर के पास बैठे, गंदी आवाज निकालने वाले कुत्तों को रेबीज होता है. एक शोध के मुताबिक 30 से 40 फीसदी बाइट घरेलू जानवरों से होती है. इसकी वजह घरेलू जानवरों को टीका नहीं लगवाना है. हर 20 हजार की आबादी में से 25 फीसदी लोग ही साल में एक बार जानवरों की बाइट का शिकार होते हैं. यहां लोग अपने बच्चों को भी टीके लगवाने में लापरवाही बरतते हैं. इसलिए जानवरों के साथ बेहद लापरवाह हैं.

विश्व भर में सालाना 60 हजार मौतेंः डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता बताते हैं कि दुनियां भर में रेबीज भी मौत सबसे बड़ा 10वां कारण है. दुनिया में साल में करीब 60 हजार मौतें रेबीज की वजह से होती हैं. भारत में एक साल में 20 हजार लोगों की जान रेबीज से जाती है. इसके साथ ही देश में हर 20 लाख आबादी में 2.40 से लेकर 8.0 लाख को कुत्ते काटते हैं. अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप पूरी तरह रेबीज मुक्त है. बाकी पूरा देश रेबीज के मामले में एक तरह से पैनडेमिक जोन में आता है.

10 दिन में मर जाता है जानवरः डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता बताते हैं कि किसी जानवर को रेबीज हो गया है तो वो अधिकतम 10 दिन तक जीवित रहेगा. अगर काटने वाला जानवर इतने दिनों तक जिंदा है तो समझिए कि उसे रेबीज नहीं है. उनके काटे लोगों को अगर रेबीज हो गया तो मौत तय है. बहराइच में अब तक जितने भी भेड़िए पकडे गए हैं, वे सभी जिंदा है. इससे साफ है कि भेड़िए अभी तक रेबीज की चपेट में नहीं आए हैं. लेकिन सावधानी बरतनी है. इसलिए, रेबीज की डोज जरूर लगवानी है.

आगराः उत्तर प्रदेश के बहराइच समेत कई जिलों में इन दिनों भेड़ियों का आतंक है. जो इंसानों की आबादी में घुसकर हमला कर रहे हैं. भेड़ियों के सीधे हमले में लोगों की जान भी जा रही है. इसके साथ ही जो लोग भेड़ियों के हमले का शिकार हुए हैं, उनमें रेबीज फैलने का भी बड़ा खतरा है. एक बार शरीर में यदि रेबीज फैल गया तो उसे काबू में करना खासा मुश्किल हो सकता है. क्योंकि, मानव शरीर में काटे गए जगह से 24 घंटे में 24 एमएम दिमाग की ओर चलता है. ये बातें ईटीवी भारत से इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस बीएचयू के निदेशक डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता ने खास बातचीत में कही.

रेबीज के बारे में डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता से जानिए. (Video Credit; ETV Bharat)


इस वजह से जंगल से आबादी में पहुंच रहे भेड़िएः डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता बताते हैं कि इन दिनों यूपी में भेड़िए आबादी में पहुंच रहे हैं. भेड़िए हमलावर हो गए हैं. इसकी तीन वजह है. जंगलों में जलभराव की वजह भेड़िए आबादी में पहुंच रहे हैं. जलभराव के साथ ही भोजन की कमी की वजह से भी भेड़िए आबादी में पहुंच कर इंसानों पर हमला कर रहे हैं. तीसरी वजह, जंगलों में मानव की बढती दखल भी हो सकती है. उन्होंने बताया कि सभी जंगली जानवरों को रैबिड एनीमल माना जाता है. यानी इनमें रेबीज कभी भी हो सकता है. इसलिए भेड़ियों से रेबीज फैलने का खतरा लगातार बढ़ रहा है.

रेबीज वायरस से  कैसे बचें.
रेबीज वायरस से कैसे बचें. (Photo Credit; ETV Bharat)

बुलेट के आखार का होता है रेबीज वायरसः आगरा में एसोसिएशन ऑफ फिजीशियंस ऑफ इंडिया (एपीआई) की सालाना दो दिवसीय कांफ्रेंस यूपीएपीआईकान-24 यूपी चैप्टर का आयोजन किया गया. जिसमें देशभर से फिजीशियन आए और तमाम बीमारियों पर अपने अनुभव और टिप्स बताए. इसी दौरान ईटीवी से बातचीत करते हुए डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता ने भेड़िये, कुत्ते, बिल्ली समेत अन्य जंगली जानवरों से मानव में होने वाले रेबीज के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि रेबीज आरएनए वायरस है, जो गर्म खून वाले यानी इंसानों और जंगली जानवरों में फैलता है. मुख्य रूप से रेबीज वायरस हमेशा जानवरों से इंसानों में फैलता है. वायरस का आकार बुलेट (बंदूक की गोली) जैसा है. इस वायरस का आकार 75 बाई 180 एनएम होता है. इसके साथ ही शरीर में इस वायरस की रफ्तार बहुत तेज है. रेबीज वायरस मनुष्य के शरीर में एक घंटे में 1.0 एमएम चलता है. जंगली जानवर के काटे गए स्थान से 24 घंटे में मानव शरीर में 24 एमएम दिमाग की ओर पहुंच जाएगा. एक बार रेबीज हुआ तो मौत तय है.


98 फीसदी रेबीज फैलाता है कुत्ताः डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता बताते हैं कि हर जंगली जानवर रेबीज फैलाता है. इसमें सबसे ज्यादा 98 फीसदी रेबीज कुत्ते से होता है. 2.0 फीसदी बिल्ली, एक प्रतिशत बंदर से होता है. इसके साथ ही लोमड़ी, गधे, घोड़े, सुअर से भी हो रेबीज सकता है. मगर, किसी कुत्ते को छूने, पेशाब या पोटी को हाथ लगाने से रेबीज रोग नहीं होता है. अधिक भौंकने वाले, कूड़ाघर के पास बैठे, गंदी आवाज निकालने वाले कुत्तों को रेबीज होता है. एक शोध के मुताबिक 30 से 40 फीसदी बाइट घरेलू जानवरों से होती है. इसकी वजह घरेलू जानवरों को टीका नहीं लगवाना है. हर 20 हजार की आबादी में से 25 फीसदी लोग ही साल में एक बार जानवरों की बाइट का शिकार होते हैं. यहां लोग अपने बच्चों को भी टीके लगवाने में लापरवाही बरतते हैं. इसलिए जानवरों के साथ बेहद लापरवाह हैं.

विश्व भर में सालाना 60 हजार मौतेंः डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता बताते हैं कि दुनियां भर में रेबीज भी मौत सबसे बड़ा 10वां कारण है. दुनिया में साल में करीब 60 हजार मौतें रेबीज की वजह से होती हैं. भारत में एक साल में 20 हजार लोगों की जान रेबीज से जाती है. इसके साथ ही देश में हर 20 लाख आबादी में 2.40 से लेकर 8.0 लाख को कुत्ते काटते हैं. अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप पूरी तरह रेबीज मुक्त है. बाकी पूरा देश रेबीज के मामले में एक तरह से पैनडेमिक जोन में आता है.

10 दिन में मर जाता है जानवरः डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता बताते हैं कि किसी जानवर को रेबीज हो गया है तो वो अधिकतम 10 दिन तक जीवित रहेगा. अगर काटने वाला जानवर इतने दिनों तक जिंदा है तो समझिए कि उसे रेबीज नहीं है. उनके काटे लोगों को अगर रेबीज हो गया तो मौत तय है. बहराइच में अब तक जितने भी भेड़िए पकडे गए हैं, वे सभी जिंदा है. इससे साफ है कि भेड़िए अभी तक रेबीज की चपेट में नहीं आए हैं. लेकिन सावधानी बरतनी है. इसलिए, रेबीज की डोज जरूर लगवानी है.

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