नई दिल्ली: अगले महीने की पहली तारीख को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में केंद्रीय बजट पेश करेंगी और आने वाले साल के लिए भारत की वित्तीय स्थिति की रूपरेखा भी पेश करेंगी. दरअसल, 1 फरवरी 'बजट दिवस' का पर्याय बन गया है.
हालांकि, हमेशा ऐसा नहीं होता था. पहले केंद्रीय बजट फरवरी के आखिरी वर्किंग डेज पर पेश किया जाता था. आमतौर पर महीने के आखिरी हफ्ते के दौरान. यह प्रथा भारत में औपनिवेशिक काल से चली आ रही थी, लेकिन 2017 में इसमें उस समय बदलाव हुआ जब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने घोषणा की कि अब बजट महीने के अंत के बजाय 1 फरवरी को पेश किया जाएगा.
1 फरवरी को बजट पेश करने से औपनिवेशिक युग की परंपरा समाप्त हो गई. वहीं, अरुण जेटली के इस फैसले के पीछे सबसे महत्वपूर्ण तर्क यह था कि बजट पेश करने का समय फरवरी के अंत में था, जिससे सरकार के पास अप्रैल में शुरू होने वाले आगामी वित्तीय वर्ष से पहले आवश्यक बदलाव करने और उन्हें लागू करने का समय कम था.
केंद्रीय और रेल बजट का विलय
इसके अलावा 2017 में बजट प्रजेंटेशन में अरुण जेटली ने केंद्रीय और रेल बजट का विलय कर दिया था. इससे पहले लगभग एक सदी तक इन्हें अलग-अलग पेश किया जाता था. सरकार ने 2016 में दोनों बजटों को मिलाने का फैसला किया. इस निर्णय को नीति सुधार उपाय के रूप में देखा गया जिसका उद्देश्य लोकलुभावनवाद की संस्कृति को खत्म करना था, जिसने पिछले कुछ वर्षों में राज्य के स्वामित्व वाले ट्रांसपोर्टर की वित्तीय सेहत पर भारी असर डाला था.
बदला बजट पेश करने का समय
इससे पहले भारत में बजट पेश करने में एक और बड़ा बदलाव समय में हुआ था. भारत में बजट ऐतिहासिक रूप से शाम 5 बजे पेश किया जाता था. साल 1999 में ही समय बदलकर सुबह 11 बजे किया गया. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि शाम 5 बजे बजट पेश करने की प्रथा औपनिवेशिक थी.
चूंकि भारतीय मानक समय (IST) ब्रिटिश समर समय (BST) से 4.5 घंटे आगे है और ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) से 5.5 घंटे आगे है, इसलिए भारत में शाम 5 बजे बजट पेश करने से यह सुनिश्चित होता है कि यह इंग्लैंड में दिन के समय या तो दोपहर 12:30 बजे BST या 11:30 बजे GMT पर पेश किया जाता है, ताकि अंग्रेजों की सुविधा हो. हालांकि, 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार के तहत तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने हमेशा के लिए परंपरा को बदलते हुए सुबह 11 बजे केंद्रीय बजट पेश किया.
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