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कचनार के फूलों से बने हर्बल गुलाल से होली खेलेंगे श्री रामलला, वैज्ञानिकों ने सीएम को किया भेंट

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 20, 2024, 11:02 PM IST

सीएसआईआर-एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने कचनार के फूलों से बने दो तरह के गुलाल (Holi With Herbal Gulal in Lucknow) तैयार किए हैं. संस्थान के निदेशक ने बुधवार को दोनों खास गुलाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेंट किए.

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लखनऊ : अवधपुरी के भव्य-दिव्य-नव्य मंदिर में विराज रहे श्री रामलला इस बार कचनार के फूलों से बने गुलाल से होली खेलेंगे. सीएसआईआर-एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने कचनार के फूलों से बने गुलाल को खास तौर पर तैयार किया है. वैज्ञानिकों ने गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर के चढ़ाए हुए फूलों से भी एक हर्बल गुलाल तैयार किया है. संस्थान के निदेशक ने बुधवार को दोनों खास गुलाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेंट किए.

कचनार के फूलों से बना गुलाल.
कचनार के फूलों से बना गुलाल.


मुख्यमंत्री ने इस विशेष पहल के लिए संस्थान के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश के कई स्टार्ट-अप और उद्यमियों के लिए अधिक अवसर एवं रोजगार प्रदान करेगा. निदेशक डॉ. अजित कुमार शासनी ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा अयोध्या में रामायणकालीन वृक्षों का संरक्षण किया जा रहा है. विरासत को सम्मान और परंपरा के संरक्षण देने के यह प्रयास हमारे वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणास्पद है. इसी के तहत, संस्थान द्वारा श्रीराम जन्मभूमि, अयोध्या के लिए बौहिनिया प्रजाति जिसे आमतौर पर कचनार के नाम से जाना जाता है. जिसके फूलों से हर्बल गुलाल बनाया गया है. कचनार को त्रेतायुग में अयोध्या का राज्य वृक्ष माना जाता था और यह हमारे आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की सुस्थापित औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है. इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल आदि गुण भी होते हैं. इसी तरह, गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर में चढ़ाए हुए फूलों से हर्बल गुलाल को तैयार किया गया है. इन हर्बल गुलाल का परीक्षण किया जा चुका है और यह मानव त्वचा के लिए पूरी तरह से सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल है.

कचनार के फूलों से बना गुलाल.
कचनार के फूलों से बना गुलाल.



निदेशक ने बताया कि कचनार के फूलों से हर्बल गुलाल लैवेंडर फ्लेवर में बनाया गया है, जबकि गोरखनाथ मंदिर के चढ़ाए हुए फूलों से हर्बल गुलाल चंदन फ्लेवर में विकसित किया गया है. इन हर्बल गुलाल में रंग चमकीले नहीं होते, क्योंकि इनमें लेड, क्रोमियम और निकल जैसे केमिकल नहीं होते हैं. फूलों से निकाले गए रंगों को प्राकृतिक घटकों के साथ मिला कर पाउडर बनाया जाता है, इसे त्वचा से आसानी से पोंछ कर हटाया जा सकता है. गुलाल की बाजार में बेहतर उपलब्धता के लिए हर्बल गुलाल तकनीक को कई कंपनियों और स्टार्ट-अप्स को हस्तांतरित किया गया है. डॉ. शासनी ने कहा कि वर्तमान में बाजार में उपलब्ध रासायनिक गुलाल वास्तव में जहरीले होते हैं. इनमें खतरनाक रसायन होते हैं जो त्वचा और आंखों में एलर्जी, जलन और गंभीर समस्या पैदा कर सकते हैं. हर्बल गुलाल की पहचान करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि यह अन्य गुलाल की तरह हाथों में जल्दी रंग नहीं छोड़ेगा. संस्थान द्वारा विकसित हर्बल गुलाल होली के अवसर पर बाजार में बिक रहे हानिकारक रासायनिक रंगों का एक सुरक्षित विकल्प है.

यह भी पढ़ें : Holi 2023: होली के बाजार में बहार, हर ओर खरीददार

यह भी पढ़ें : लखनऊ में चढ़ा होली का खुमार, छात्र-छात्राओं ने जमकर लगाए ठुमके

लखनऊ : अवधपुरी के भव्य-दिव्य-नव्य मंदिर में विराज रहे श्री रामलला इस बार कचनार के फूलों से बने गुलाल से होली खेलेंगे. सीएसआईआर-एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने कचनार के फूलों से बने गुलाल को खास तौर पर तैयार किया है. वैज्ञानिकों ने गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर के चढ़ाए हुए फूलों से भी एक हर्बल गुलाल तैयार किया है. संस्थान के निदेशक ने बुधवार को दोनों खास गुलाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेंट किए.

कचनार के फूलों से बना गुलाल.
कचनार के फूलों से बना गुलाल.


मुख्यमंत्री ने इस विशेष पहल के लिए संस्थान के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश के कई स्टार्ट-अप और उद्यमियों के लिए अधिक अवसर एवं रोजगार प्रदान करेगा. निदेशक डॉ. अजित कुमार शासनी ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा अयोध्या में रामायणकालीन वृक्षों का संरक्षण किया जा रहा है. विरासत को सम्मान और परंपरा के संरक्षण देने के यह प्रयास हमारे वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणास्पद है. इसी के तहत, संस्थान द्वारा श्रीराम जन्मभूमि, अयोध्या के लिए बौहिनिया प्रजाति जिसे आमतौर पर कचनार के नाम से जाना जाता है. जिसके फूलों से हर्बल गुलाल बनाया गया है. कचनार को त्रेतायुग में अयोध्या का राज्य वृक्ष माना जाता था और यह हमारे आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की सुस्थापित औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है. इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल आदि गुण भी होते हैं. इसी तरह, गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर में चढ़ाए हुए फूलों से हर्बल गुलाल को तैयार किया गया है. इन हर्बल गुलाल का परीक्षण किया जा चुका है और यह मानव त्वचा के लिए पूरी तरह से सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल है.

कचनार के फूलों से बना गुलाल.
कचनार के फूलों से बना गुलाल.



निदेशक ने बताया कि कचनार के फूलों से हर्बल गुलाल लैवेंडर फ्लेवर में बनाया गया है, जबकि गोरखनाथ मंदिर के चढ़ाए हुए फूलों से हर्बल गुलाल चंदन फ्लेवर में विकसित किया गया है. इन हर्बल गुलाल में रंग चमकीले नहीं होते, क्योंकि इनमें लेड, क्रोमियम और निकल जैसे केमिकल नहीं होते हैं. फूलों से निकाले गए रंगों को प्राकृतिक घटकों के साथ मिला कर पाउडर बनाया जाता है, इसे त्वचा से आसानी से पोंछ कर हटाया जा सकता है. गुलाल की बाजार में बेहतर उपलब्धता के लिए हर्बल गुलाल तकनीक को कई कंपनियों और स्टार्ट-अप्स को हस्तांतरित किया गया है. डॉ. शासनी ने कहा कि वर्तमान में बाजार में उपलब्ध रासायनिक गुलाल वास्तव में जहरीले होते हैं. इनमें खतरनाक रसायन होते हैं जो त्वचा और आंखों में एलर्जी, जलन और गंभीर समस्या पैदा कर सकते हैं. हर्बल गुलाल की पहचान करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि यह अन्य गुलाल की तरह हाथों में जल्दी रंग नहीं छोड़ेगा. संस्थान द्वारा विकसित हर्बल गुलाल होली के अवसर पर बाजार में बिक रहे हानिकारक रासायनिक रंगों का एक सुरक्षित विकल्प है.

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