मथुरा : यूं तो कान्हा की नगरी मथुरा में बसंत पंचमी से ही होली की शुरुआत हो जाती है. यहां बसंत पंचमी से पहले से ही देश-विदेश से श्रद्धालु मथुरा, वृंदावन पहुंचना शुरू हो जाते हैं. हर रोज मंदिरों में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित होते हैं. जिसमें श्रद्धालु अपने आराध्य के साथ होली का आनंद लेते हैं. वहीं, कान्हा की नगरी मथुरा के नौहझील कस्बे में होली के दूसरे दिन यानी कि भाई दूज पर अनोखी होली खेली जाती है. यहां लोग फूलों से नहीं, रंगों से नहीं, गुलाल से नहीं बल्कि कीचड़ से होली खेलते हैं. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है. इस दिन पूरा बाजार बंद रहता है और सड़कों पर जमकर कीचड़ की होली खेली जाती है. इस दौरान पूरे कस्बे में कर्फ्यू जैसा नजारा रहता है.
यहां होती है कीचड़ की होली : बता दें कि पूरे देश में होली का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास और खुशी के साथ मनाया जाता है. वहीं, कान्हा की नगरी मथुरा में होली का पर्व अलग ही रूप में मनाया जाता है. बसंत पंचमी से ही यहां होली की शुरुआत हो जाती है. जगह-जगह फूलों, रंगों, गुलालों यहां तक की लड्डू और लठ्ठमार होली भी होती है. लेकिन, मथुरा के नौहझील कस्बे में लोग कीचड़ से होली खेलते हैं. होली के अगले दिन भाई दूज के दिन कीचड़ की होली खेली जाती है, जो लगातार दो दिन होती है. युवकों एवं हुरियारनों की टोलियां अलग-अलग ग्रुप बनाकर कीचड़ की होली खेलते हैं. इस दौरान कस्बे की लगभग सभी दुकानें एवं बाजार बंद रहते हैं. पूरे क्षेत्र में कर्फ्यू जैसा माहौल हो जाता है. कीचड़ की होली खेलने के लिए विशेष तैयारी की जाती है. कीचड़ की होली खेलने के शौकीन बैलगाड़ी और ट्रैक्टरों से 2 दिन पूर्व ही भारी संख्या में मिट्टी को एकत्रित कर कीचड़ की व्यवस्था करते हैं.
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