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'बादशाह' ने दाढ़ी से साफ की श्रीनाथजी मंदिर की सीढ़ियां - Holi 2024 - HOLI 2024

Shrinathji Temple Nathdwara, राजसमंद जिले में स्थित नाथद्वारा श्रीनाथजी मंदिर की वजह से विश्व भर में अपनी एक अलग छवि रखता है. हर साल लाखों लोग श्रीनाथजी के दर्शन के लिए नाथद्वारा आते हैं. यहां की अदभुत परम्पराओं को देखने भी काफी लोग आते हैं. ऐसी ही एक परंपरा धुलंडी पर निकलने वाली बादशाह की सवारी है.

'बादशाह' ने दाड़ी से साफ की श्रीनाथजी मंदिर की सीढ़ियां
'बादशाह' ने दाड़ी से साफ की श्रीनाथजी मंदिर की सीढ़ियां
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Mar 25, 2024, 9:13 PM IST

Updated : Mar 25, 2024, 10:26 PM IST

'बादशाह' ने दाढ़ी से साफ की श्रीनाथजी मंदिर की सीढ़ियां...

राजसमंद. नाथद्वारा में हर साल धुलंडी पर 'बादशाह की सवारी' निकलती है. यह सवारी नाथद्वारा के गुर्जरपुरा मोहल्ले के बादशाह गली से निकलती है. यह एक प्राचीन परंपरा है, जिसमें एक व्यक्ति को नकली दाढ़ी-मूंछ, मुगल पोशाक और आंखों में काजल डालकर दोनों हाथों में श्रीनाथजी की छवि देकर उसे पालकी में बैठाया जाता है. इस सवारी की अगवानी मंदिर मंडल का बैंड बांसुरी बजाते हुए करता है.

यह सवारी गुर्जरपुरा से होते हुए बड़ा बाजार से आगे निकलती है, तब बृजवासी पालकी में सवार बादशाह को गलियां देते हैं. सवारी मंदिर की परिक्रमा लगाकर श्रीनाथजी के मंदिर पहुंचती है, जहां बादशाह अपनी दाढ़ी से सूरजपोल की नवधाभक्ति के भाव से बनी सीढियां साफ करता है. यह लम्बे समय से चली आ रही एक प्रथा है. उसके बाद मंदिर के परछना विभाग का मुखिया बादशाह को पैरावणी (कपड़े, आभूषण आदि) भेंट करते हैं. इसके बाद फिर से गालियों का दौर शुरू होता है. मंदिर में मौजूद लोग बादशाह को खरी-खोटी सुनते हैं और रसिया गान शुरू होता है.

पढ़ें : तुर्कों को हराने वाले राव हेमा की याद में निकली 'गैर', 632 साल पूरानी है यह परंपरा - Holi 2024

ये है इसके पीछे की कहानी : यह परम्परा वर्षों से चली आ रही है. कहा जाता है कि औरंगजेब मंदिरों में भगवान की मूर्तियों को खंडित करता हुआ मेवाड़ पहुंचा था. जब वह श्रीनाथजी के विग्रह को खंडित करने की मंशा से मंदिर में गया तो मंदिर में प्रवेश करते ही उसकी आंखों की रोशनी चली गई. उस वक्त उसकी बेगम ने भगवान श्रीनाथजी से प्रार्थना कर माफी मांगी, तब उसकी आंखें ठीक हो गईं.

पश्चाताप स्वरूप बादशाह को अपनी दाढ़ी से मंदिर की सीढ़ियों पर गिरी गुलाल को साफ करने के लिए बेगम ने कहा. तब बादशाह ने अपनी दाढ़ी से सूरजपोल के बाहर की 9 सीढ़ियों को उल्टे उतरते हुए साफ किया और तभी से इस घटना को एक परम्परा के रूप में मनाया जाता रहा है. उसके बाद औरंगजेब की मां ने एक बेशकीमती हीरा मंदिर को भेंट किया, जिसे आज भी श्रीनाथजी की दाढ़ी में लगा देखते हैं.

'बादशाह' ने दाढ़ी से साफ की श्रीनाथजी मंदिर की सीढ़ियां...

राजसमंद. नाथद्वारा में हर साल धुलंडी पर 'बादशाह की सवारी' निकलती है. यह सवारी नाथद्वारा के गुर्जरपुरा मोहल्ले के बादशाह गली से निकलती है. यह एक प्राचीन परंपरा है, जिसमें एक व्यक्ति को नकली दाढ़ी-मूंछ, मुगल पोशाक और आंखों में काजल डालकर दोनों हाथों में श्रीनाथजी की छवि देकर उसे पालकी में बैठाया जाता है. इस सवारी की अगवानी मंदिर मंडल का बैंड बांसुरी बजाते हुए करता है.

यह सवारी गुर्जरपुरा से होते हुए बड़ा बाजार से आगे निकलती है, तब बृजवासी पालकी में सवार बादशाह को गलियां देते हैं. सवारी मंदिर की परिक्रमा लगाकर श्रीनाथजी के मंदिर पहुंचती है, जहां बादशाह अपनी दाढ़ी से सूरजपोल की नवधाभक्ति के भाव से बनी सीढियां साफ करता है. यह लम्बे समय से चली आ रही एक प्रथा है. उसके बाद मंदिर के परछना विभाग का मुखिया बादशाह को पैरावणी (कपड़े, आभूषण आदि) भेंट करते हैं. इसके बाद फिर से गालियों का दौर शुरू होता है. मंदिर में मौजूद लोग बादशाह को खरी-खोटी सुनते हैं और रसिया गान शुरू होता है.

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ये है इसके पीछे की कहानी : यह परम्परा वर्षों से चली आ रही है. कहा जाता है कि औरंगजेब मंदिरों में भगवान की मूर्तियों को खंडित करता हुआ मेवाड़ पहुंचा था. जब वह श्रीनाथजी के विग्रह को खंडित करने की मंशा से मंदिर में गया तो मंदिर में प्रवेश करते ही उसकी आंखों की रोशनी चली गई. उस वक्त उसकी बेगम ने भगवान श्रीनाथजी से प्रार्थना कर माफी मांगी, तब उसकी आंखें ठीक हो गईं.

पश्चाताप स्वरूप बादशाह को अपनी दाढ़ी से मंदिर की सीढ़ियों पर गिरी गुलाल को साफ करने के लिए बेगम ने कहा. तब बादशाह ने अपनी दाढ़ी से सूरजपोल के बाहर की 9 सीढ़ियों को उल्टे उतरते हुए साफ किया और तभी से इस घटना को एक परम्परा के रूप में मनाया जाता रहा है. उसके बाद औरंगजेब की मां ने एक बेशकीमती हीरा मंदिर को भेंट किया, जिसे आज भी श्रीनाथजी की दाढ़ी में लगा देखते हैं.

Last Updated : Mar 25, 2024, 10:26 PM IST
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