बीकानेर. शहर के लोग अपनी परंपराओं को शिद्दत से निभाने के लिए पहचाने जाने जाते हैं. होली से जुड़ी कई परंपराएं बीकानेर में कई सैकड़ों सालों से चली आ रही हैं. बीकानेर के अलग-अलग मोहल्ले में होलाष्टक के दौरान रम्मतों का मंचन हो या फिर डोलची पानी का, या फिर धुलंडी के दिन तणी तोड़ने की परंपरा बीकानेर में होली से जुड़ी हुई हैं, जिन्हें लोग आज भी निभाते आ रहे हैं. ऐसी ही एक परंपरा बीकानेर के जोशी जाति के लोगों से जुड़ी हुई है, जो 8 दिन के होलाष्टक में अपनी रसोई में छोंक नहीं लगाते.
दरअसल, करीब 350 साल पहले होलिका दहन के दौरान इस जाति में एक घटना घटी थी, इसलिए पुष्करणा ब्राह्मण समाज के जोशी जाति के लोग घरों में छोंक नहीं लगाते. पंडित मदन गोपाल जोशी बताते हैं कि करीब 350 साल पहले पोकरण के पास मांडवा गांव में होलिका दहन के समय जोशी जाति की एक महिला अपने हाथ में बच्चे को लिए परिक्रमा लगा रही थी. इस दौरान बच्चा हाथ से छूटकर होलिका की अग्नि में गिर गया और उसको बचाने के लिए मां ने भी प्रयास किया और दोनों की इस दौरान होलिका दहन में जलने से मौत हो गई. तब से जोशी जाति के लोग होलाष्टक के बाद धुलंडी के दिन दोपहर तक अपने घरों में छोंक नहीं लगाते हैं.
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अब तो नहीं बनता खाना भी : जोशी कहते हैं कि उस घटना के बाद छोंक लगाना बंद हो गया था, जिसके चलते घरों में सब्जी नहीं बनती है. तब से यह परंपरा चली आ रही है और इन 8 दिनों में जोशी जाति के लोगों के घरों में खाना सगे-संबंधी लेकर आते हैं. पूर्व में रिश्तेदारों के घरों से सब्जी आती थी, क्योंकि रोटी बनाई जा सकती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे बदलते जमाने में यह परंपरा हो गई कि पूरा खाना ही सगे-संबंधी और रिश्तेदारों के घरों से आता है.
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दुनियाभर में मानते परंपरा : जोशी कहते हैं कि जिस जगह पर यह घटना हुई थी, वहां अब एक पेड़ है और वह हर वक्त हरा रहता है. जोशी जाति के लोग वहां अपनी श्रद्धा के मुताबिक दर्शन के लिए भी जाते हैं. मदन गोपाल जोशी कहते हैं कि जिस समय यह घटना हुई थी, उस समय हमारा देश अखंड था. आज भी किसी भी देश में रहने वाले पुष्करणा ब्राह्मण समाज के लोग इस परंपरा को मानते हैं.
कपड़े और पिचकारी भी नहीं खरीदते : पंडित मदन गोपाल जोशी कहते हैं कि इस घटना के बाद हम लोगों के परिवार में होलाष्टक के दौरान कोई भी नए कपड़े नहीं खरीदते हैं और बच्चों के लिए रंग और पिचकारी भी अपने जेब से खर्च कर नहीं खरीदते हैं. सगे संबंधी और मित्रगण ही बच्चों को रंग और पिचकारी खरीद कर देते हैं.