पटना: रंगों का त्योहार होली को लेकर सभी का इंतजार रहता है. इस बार संशय की स्थिति है कि होली 24 या फिर 25 को मनायी जाएगी. आचार्य मनोज मिश्रा ने कहा कि हर साल फाल्गुन मास में होली का पर्व मनाया जाता है. इस साल 24 मार्च को सुबह 9:50 से पूर्णिमा तिथि की शुरुआत हो रही है. इसका समापन अगले दिन दोपहर 12:29 पर होगा. इसलिए 24 मार्च को होलिका दहन होगा. 25 मार्च को रंगों वाली होली खेली जाएगी.
"24 मार्च की रात में 11 बजकर 13 मिनट तक भद्रा का प्रकोप रहेगा. इसलिए भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाएगा. भद्रा समाप्त होने के बाद ही होलिका दहन किया जाएगा. होलिका दहन का समय 24 तारीख की रात 11:14 से से लेकर रात 12:20 तक होलिका दहन का सबसे अच्छा मुहूर्त है. 25 मार्च को रंग खेला जाएगा." -आचार्य मनोज मिश्रा
भगवान विष्णु और भक्त प्रह्लाद से जुड़ी है मान्यताः मनोज मिश्रा ने कहा कि होलिका दहन से भगवान विष्णु और भक्त प्रह्लाद की कथा जुड़ी हुई है. विष्णु भगवान के भक्त प्रह्लाद हिरण्यकश्यप का पुत्र था. वह विष्णु भगवान का परम भक्त था. हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था. भगवान का नाम सुनना पसंद नहीं था. इसलिए अपने पुत्र को काफी दंड देता था. बेटा प्रह्लाद को कहता था कि हमारे शत्रु का नाम क्यों लेते हो.
भक्ति में लीन रहता था प्रह्लादः प्रह्लाद पिता के बात को अनदेखी कर विष्णु भगवान के भक्ति में लीन रहता था. हिरण्यकश्यप कई बार पुत्र को मारने की कोशिश की लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से कुछ नहीं हुआ. इसके बाद अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि तुम गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाओ. क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था. वरदान में चादर मिली थी जिसे ओढ़ कर वह आग में बैठेगी भी तो नहीं जलेगी.
नरसिंह अवतार ने हिरणयकश्यप का किया वधः होलिका अपने भतीजा प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई. भगवान की ऐसी कृपा हुई कि वह चादर प्रह्लाद के शरीर पर आ पड़ी और होलिका आग में भस्म हो गई. इससे हिरणकश्यप और क्रोधित हो गया. हिरणयकश्यप को वध करने के लिए भगवान विष्णु को नरसिंह अवतार लेना पड़ा था.
ऐसे हुआ हिरणयकश्यप का वधः हिरण्यकश्यप को भी वरदान था कि उसको ना घर में ना बाहर, न पुरुष न पशु, ना दिन ना रात, ना अस्त्र से न शस्त्र से मारा जा सकता है. इसी कारण भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया था. भगवान विष्णु नरसिंह का अवतार लेकर दिन के सायांकाल में घर के दरवाजे के चौखट पर बैठकर हिरण्यकश्यप को अपने नाखूनों से सीना चीरते हुए मार डाला था.
पहले होलिका फिर होली मनायी जातीः तब से होलिका और होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए मनाया जाता है. मनोज मिश्रा ने कहा कि होलिका दहन की तैयारी लोग पहले से करते हैं. गली के हर-चौक चौराहे पर लकड़ी या चिपरी एकत्रित करके उसमें होलिका को बिठाते हैं और रात में होलिका जलाते हैं. अगले दिन रंगों का त्योहार मनाते हैं.
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