पूर्वी सिंहभूम: जमशेदपुर में स्थापित 100 साल से ज्यादा पुराना एक चर्च है. जिसका इतिहास बेमिसाल है. जमशेदपुर में आजादी से पूर्व कई ऐसी ऐतिहासिक धरोहर है जो आज भी अपने आप में एक मिसाल है. आजादी से पूर्व अंग्रेजों द्वारा बनाया गया यह चर्च 108 साल होने के बावजूद भी उतना ही खूबसूरत है. यहां प्रार्थना करने वाले ईसाई धर्मावलम्बी को इस चर्च के प्रति विशेष लगाव है.
चर्च का इतिहास
देश की आजादी से पूर्व ब्रिटिश शासन काल में जमशेदपुर में स्थापित टाटा स्टील कंपनी के अंग्रेज अधिकारियों ने प्रार्थना के लिए बिष्टुपुर नॉर्दन टाउन में एक खाली भूखंड को चिन्हित कर 28 दिसंबर 1914 के दिन सेंट जॉर्ज चर्च की नींव रखी. बता दें की सेंट जॉर्ज एक सामाजिक व्यक्ति थे. समाज में लोगों की भलाई के लिए वे निरंतर काम करते रहते थे. गरीबों के प्रति उनका विशेष लगाव था. जिसके कारण उन्हें संत की उपाधि दी गयी और उन्हीं के नाम पर जमशेदपुर में सेंट जॉर्ज चर्च की नींव रखी गयी है.
चर्च का निर्माण
जानकार बताते हैं कि उस दौरान जमशेदपुर में स्थापित टाटा स्टील प्लांट में ब्लास्ट फर्नेस के लिए इंग्लैंड से ईंटें लाई गई थी. उसी ईंट से सेंट जॉर्ज चर्च का निर्माण किया गया. बिना नींव, बिना ढलाई और बिना पिलर से बना गगन चुम्बी यह चर्च आज भी मजबूती के साथ खड़ा है. चर्च के निर्माण के बाद 23 अप्रैल 1916 को कोलकाता से विशप जमशेदपुर आए और चर्च में प्राण प्रतिष्ठा संस्कार किया और पहली प्रार्थना सभा हुई. 100 से ज्यादा पुराना इस चर्च के निर्माण के बाद आज तक मरम्मत करने की जरूरत नहीं पड़ी है. चर्च के चारों तरफ रंग बिरंगे फूलों का बगीचा है.
108 साल पुराने इस चर्च में बैठने के लिए लकड़ी के बने बैंच की चमक और मजबूती आज भी बरकरार है. चर्च के दरवाजे और खिड़कियां अब तक नहीं बदली गयी हैं. बता दें कि इस चर्च में अंग्रेजी, हिंदी और मलयालम तीन भाषाओं में प्रार्थना होती है. दरअसल, अविभाजित बिहार में बना यह एक मात्र चर्च है जहां क्रिकेटरों ने प्रार्थना की है. कीनन स्टेडियम में क्रिकेट खेलने के लिए जब भी इंग्लैंड और वेस्टइंडीज की टीम आती थी, वो मैच खेलने जाने से पूर्व इस चर्च में प्रार्थना करती थी. चर्च के पादरी अरुण बरुआ बताते हैं कि 108 साल पुराने इस चर्च से जुड़ी कई बातें हैं, जो अपने आप में एक इतिहास है. चर्च के सबसे ऊपर टाटा स्टील द्वारा बनाया गया बड़ा घंटा आज भी बजता है. जिससे विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है. 25 दिसंबर को क्रिसमस के दिन इस चर्च में आम सदस्य के अलावा कई नामचीन भी प्रार्थना सभा में शामिल होते हैं. उन्हें भी इस ऐतिहासिक चर्च के प्रति पूरी आस्था और विश्वास है, जहां मन की शांति मिलती है.
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