रांची: झारखंड की गोड्डा लोकसभा सीट 1962 में अस्तित्व में आई. इस लोक सभा सीट पर कुल 14 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं. जिसमें 10 बार संयुक्त बिहार के साथ रहते हुए और पांच लोकसभा चुनाव बंटवारे के बाद हुए हैं. अगर इस लोकसभा के राजनीतिक सफर के समीकरण की बात करें तो 1962 में गोड्डा में पहली लोकसभा चुनाव हुए.
पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने दर्ज की जीत
1962 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जीत हुई. 1962 में गोड्डा से प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका विजयी हुए. इन्हें कुल 40.6 फीसदी वोट मिले थे. वहीं, जनता पार्टी दूसरे स्थान पर थी, जिसमें मोहन सिंह ओबेरॉय को 30.5 प्रतिशत वोट मिले थे.
1967 का लोकसभा चुनाव
1967 के लोकसभा चुनाव में भी गोड्डा लोकसभा सीट से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रभु दयाल हिम्मतसिंहका ही विजय हुए. 1967 में इन्होंने 36.8 फीसदी वोट हासिल किए. जबकि भारतीय जन संघ को 24.4 फीसदी वोट मिले थे.
1971 लोकसभा चुनाव
वहीं 1971 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद सहानुभूति की लहर में एक बार फिर से कांग्रेस ने जीत दर्ज की. यहां से जगदीश मंडल कांग्रेस के उम्मीदवार थे.
1977 में कांग्रेस को हार का करना पड़ा सामना
1977 के लोकसभा चुनाव में दो बार से लगातार जीत रही कांग्रेस पार्टी को यह सीट गंवानी पड़ी. इस सीट पर भारतीय लोकदल ने जीत हासिल की. भारतीय लोक दल के जगदंबी प्रसाद यादव ने इस सीट पर जीत दर्ज करते हुए 68.6 फीसदी वोट हासिल किए. जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 25.5 फीसदी वोट मिले. हालांकि कांग्रेस ने इस बार के चुनाव में अपना उम्मीदवार बदल दिया था.
1980 में कांग्रेस ने फिर से जीती गोड्डा सीट
1980 में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक बार फिर अपनी सीट को हासिल किया. यहां से समीनउद्दीन ने जीत हासिल की. जबकि दूसरे स्थान पर जनता पार्टी के जगदंबी प्रसाद यादव रहे थे. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 1980 के चुनाव में कुल 35.7 फीसदी वोट मिले थे. जबकि जनता पार्टी को 27.30 वोट मिले. 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में जगदंबी प्रसाद यादव भारतीय लोक दल से जीते थे. लेकिन जनता पार्टी में जाने के कारण यह सीट उनके हाथ से निकल गई.
1984 में कांग्रेस फिर जीती
1984 के लोकसभा चुनाव में भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक बार फिर से गोड्डा सीट पर कब्जा किया. यहां से शमीमुद्दीन सांसद चुने गए. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को कुल 44.8 फीसदी वोट मिले. जबकि भारतीय जनता पार्टी को 16.5 फीसदी वोट मिले. वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा को यहां कुल 15.8 फीसदी वोट और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 14.2 फीसदी वोट मिले.
1989 में बीजेपी पहली बार जीती
1989 में हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर जीत दर्ज की. जनार्दन यादव भारतीय जनता पार्टी से इस लोकसभा क्षेत्र से विजयी हुए. इन्हें कुल 53.01 फीसदी वोट मिले थे. वहीं दूसरे स्थान पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के सूरज मंडल रहे. इन्हें 21.8 फीसदी वोट मिले थे. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 20.8 फीसदी वोट मिले थे.
1991 में झामुमो ने मारी बाजी
1991 में हुए लोकसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने गोड्डा सीट पर बाजी मारी. झारखंड मुक्ति मोर्चा को लोकसभा में कुल 48.5 फीसदी वोट मिले. जबकि भारतीय जनता पार्टी के जनार्दन यादव को कुल 29 फीसदी वोट मिले. वहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 16.02 फीसदी वोट प्राप्त हुए.
1996 में बीजेपी ने हासिल की जीत
1996 की लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी फिर से यहां पर जीत दर्ज की. यहां से जगदंबी प्रसाद यादव 35.3 फीसदी वोट हासिल कर शानदार जीत दर्ज की. जनता दल दूसरे स्थान पर रही, जिसे 26.4 फीसदी वोट मिले. जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा को 19.6 फीस रिपोर्ट मिले और वह तीसरे स्थान पर रही. 1996 में कांग्रेस की हालत काफी खराब रही और यहां उन्हें सिर्फ 9.2 फीसदी वोट मिले. गोड्डा में भारतीय जनता पार्टी इस लोकसभा सीट पर कब्जा की थी.
1998 में फिर जीती बीजेपी
2 साल बाद 1998 फिर हुए लोकसभा उप चुनाव में बीजेपी ने यहां से बाजी मारी. भारतीय जनता पार्टी को कुल 46.5 फीसदी वोट मिले. और जगदंबी प्रसाद यादव फिर से भारतीय जनता पार्टी के सांसद बने. जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा के सूरज मंडल को 35.9 फीसदी वोट मिले. जनता दल 11 फ़ीसदी वोट यहां पास सकी थी.
1999 में बीजेपी ने लगाया जीत का हैट्रिक
1999 में हुए लोकसभा के चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने फिर सीट पर कब्जा जमाया. जगदंबी प्रसाद यादव 34.5 फीसदी वोट हासिल कर भारतीय जनता पार्टी के खाते में गोड्डा सीट को डाला. वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा को 22 फीसदी वोट मिले. झामुमो की तरफ से सूरज मंडल ने ताल ठोका था, लेकिन वह जीत हासिल नही कर सके. 1999 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को गोड्डा सीट पर सिर्फ 17 फीसदी वोट मिले. जबकि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 13.5 फीसदी वोट हासिल हुआ.
बंटवारे के बाद हुए पहले चुनाव में कांग्रेस ने मारी बाजी
गोड्डा संयुक्त बिहार में जितने लोकसभा चुनाव हुए उसमें भारतीय जनता पार्टी काफी मजबूत दिखी. बंटवारे के बाद 2004 में हुए पहले लोकसभा चुनाव जो झारखंड राज्य के तहत हुआ था उसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के फुरकान अंसारी ने इस सीट पर कब्जा जमाया. कांग्रेस को 44. 9 फीसदी वोट मिले. जबकि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार प्रदीप यादव को 41.7 फीसदी वोट मिले. हालांकि लगातार तीन बार भारतीय जनता पार्टी यहां जीती थी, लेकिन झारखंड बंटवारे के बाद यह सीट भाजपा के हाथ से निकल गई.
2009 में बीजेपी ने फिर हासिल की अपनी सीट
2009 में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार डॉक्टर निशिकांत दुबे ने गोड्डा सीट पर जीत हासिल की. इसके साथ ही गोड्डा एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी से भारतीय जनता पार्टी के खाते में चला गया. 2009 में कांग्रेस के फुरकान अंसारी को 23 फीसदी वोट मिले. जबकि झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक को 22.02 फीसदी वोट मिले थे. झारखंड मुक्ति मोर्चा के दुर्गा सोरेन यहां से चुनाव लड़े थे. जिन्हें 9.2 फीसदी को मिले थे.
2014 में मोदी लहर का दिखा असर
2009 में गोड्डा सीट भाजपा के कब्जे में आ चुकी थी. 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर जीत दर्ज की. डॉ निशिकांत दुबे भाजपा की उम्मीदवार थे और इन्हें 36.3 फीसदी वोट मिले. 2014 में सभी लोकसभा सीटों पर मोदी के लहर का असर था. हालांकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के फुरकान अंसारी को 30.5 फीसदी वोट मिले थे. जबकि झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक को 18.4 फीसदी वोट मिले.
2019 में निशिकांत दुबे ने लगाई जीत की हैट्रिक
2019 की लोकसभा चुनाव में गोड्डा लोकसभा सीट फिर भाजपा के कब्जे में रही. यहां से 2009 और 2014 के सांसद रहे निशिकांत दुबे ने तीसरी बार जीत दर्ज की. 2019 में गोड्डा से भारतीय जनता पार्टी को कुल 53.4 फीसदी वोट मिले थे. जबकि झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक के प्रदीप यादव को 38.8 फीसदी वोट मिले.
गोड्डा सीट का जिस तरीके का राजनीतिक सफर रहा है उससे एक बात तो साफ है कि इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी का दबदबा रहा है. हालांकि 1962 में जब यह सीट बनी थी और झारखंड बंटवारे के बाद जब चुनाव हुए थे तो इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा था. लेकिन उसके बाद कांग्रेस इस पर अपना कोई मजबूत पकड़ नहीं बना सकी. ना ही झारखंड मुक्ति मोर्चा इस पर मजबूत पकड़ के साथ दावेदारी दे सका. अब देखने वाली बात है कि 2024 के लोकसभा के समर में किसका सफर इस लोकसभा सीट के साथ होता है.
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