रायपुर : छत्तीसगढ़ के अभयारण्य घने जंगलों, नदियों, झीलों, घास के मैदानों और पठारी क्षेत्रों से सम्पन्न हैं. ये अभयारण्य कई प्रकार के जानवरों, वन्यजीवों और कई प्रजाति की पक्षियों का निवास स्थान है. अभयारण्य वन्यजीवों और वनस्पतियों के लिए एक महत्वपूर्ण संरक्षण केंद्र के रूप में काम करता है. इसलिए वन्यजीवों के संरक्षण में अभयारण्य की खास भूमिका होती है.
वन्यजीव अभयारण्य का महत्व : अभयारण्य वन्य जीवों के समुचित विकास, आवास, लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए प्रजनन और उनके संरक्षण का केंद्र होता है. इसके साथ ही यहां पारिस्थितिक संतुलन और जैव विविधता के प्रयासों को भी बढ़ावा मिलता है. अभयारण्य में अवैध शिकार के खिलाफ वन विभाग की पेट्रोलिंग और संरक्षण के लिए प्रयास किये जाते हैं.
छत्तीसगढ़ के वन्यजीव अभयारण्य : छत्तीसगढ़ के वन्यजीव अभयारण्य में सीतानदी वन्यजीव अभयारण्य, उदंती वन्यजीव अभयारण्य, अचानकमार वन्यजीव अभ्यारण्य, भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य, बारनवापारा अभयारण्य, पामेड़ वन्यजीव अभयारण्य, तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य, सेमरसोत वन्यजीव अभयारण्य, भैरमगढ़ वन्यजीव अभयारण्य, गोमर्डा अभयारण्य, बादलखोल अभयारण्य शामिल हैं.
छत्तीसगढ़ के वन्यजीव अभयारण्य की विशेषता :
- सीतानदी वन्यजीव अभयारण्य : मध्य भारत के प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण वन्यजीव अभयारण्य में धमतरी जिले का सीतानदी वन्यजीव अभयारण्य शामिल है. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत साल 1974 में सीतानदी वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना की गई. इस अभयारण्य का क्षेत्रफल लगभग 556 वर्ग किलोमीटर में फैला है. सीतानदी नदी के नाम पर ही सीतानदी वन्यजीव अभयारण्य नाम रखा गया है. यह हरी-भरी वनस्पतियों और विविध जीवों निवास स्थान है. यहां खासकर बाघ, तेंदुए, भालू, हाथी, लकड़बग्घे, हिरण, सांभर जैसे कई वन्यजीव और खई प्रजाति की पक्षियों का यह एक महत्वपूर्ण संरक्षण क्षेत्र है.
- उदंती वन्यजीव अभयारण्य : वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत साल 1983 में उदंती वन्यजीव अभयारण्य को स्थापित किया गया. इस अभयारण्य का नाम उदंती नदी से लिया गया है. उदंती अभ्यारण्य लगभग 232 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करता है. उदंती अभयारण्य विशेष तौर पर लुप्तप्राय जंगली भैंसों की आबादी का निवास स्थान है. यहां उनके संरक्षण और विकास के लिए प्रयास किए जा रहे हैं.
- भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य : भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में स्थित है. प्रसिद्ध भोरमदेव मंदिर से इस अभयारण्य का नाम रखा गया है. इसलिए यह प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ सांस्कृतिक महत्व भी रखता है. भोरमदेव वन्यजीव अभ्यारण्य सकारी नदी से पोषित है. घने जंगल और बारहों महीने पीने का पानी की उपलब्धता अभयारण्य के वन्यजीनों को उनके आवास और अस्तित्व को बनाए रखने में बड़ा योगदान देती है. यह हिरण, चीतल, भालू, लकड़बग्घे और तेंदुए सहित कई वन्यजीवों का घर है.
- बारनवापारा अभयारण्य : छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के उत्तरी भाग में बारनवापारा अभयारण्य स्थित है. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत इसे 1976 में स्थापित किया गया. बारनवापारा अभयारण्य 245 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. बारनवापारा अभ्यारण्य में समतल और पहाड़ी दोनों तरह के भूभाग मौजूद हैं. इस अभयारण्य अपनी हरी-भरी वनस्पतियों के लिए जाना जाता है. बारनवापारा अभयारण्य में बाघ, तेंदुए, भालू, लकड़बग्घे, वनभैंसे, सांभर, चीतल जैसे कई वन्यजीव निवास करते हैं, जो प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करता है.
- पामेड़ वन्यजीव अभयारण्य : दंतेवाड़ा जिले में स्थित पामेड़ वन्यजीव अभयारण्य 262 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. पामेड़ अभयारण्य के भीतर साल और सागौन जैसी कीमती वृक्षों की प्रजातियां मौजूद हैं, जो इसके पारिस्थितिक महत्व को बढ़ाती है. अभयारण्य में हिरण की प्रजाति चीतल, भारतीय चिकारे और चिंकारा सहित विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों निवास करते हैं. वन्यजीव प्रेमियों के लिए पामेड़ अभ्यारण्य के मैदानों में स्वतंत्र रूप से घूमते हिरणों को देखना आपकी छुट्टियों को यादगार बना देती है.
- तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य : सरगुजा जिले में स्थित तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य साल और कई अन्य पर्णपाती पेड़ों के मिश्रित वन से घिरा हुआ है. इस वजह से वन्यजीव अभ्यारण्य की पारिस्थितिक विविधता और महत्व बढ़ा जाती है. तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य का नाम पिंगला नाला और तमोर पहाड़ी के नाम पर रका गया है. इस अभयारण्य का क्षेत्रफल 608.55 वर्ग किलोमीटर है. यहां भालू, गौर, वन भैेंसा, चीतल, लकड़बग्घा और पहाड़ी मैना समेत कई प्रजाति की पक्षियों का प्राकृतिक आवास है.
- सेमरसोत वन्यजीव अभयारण्य : यह सरगुजा जिले के अंबिकापुर-डाल्टनगंज रोड पर सेमरसोत के पास स्थित है. इस वजह से इसका नाम सेमरसोत वन्यजीव अभ्यारण्य रखा गया है. यह 430.36 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. सेमरसोत अभयारण्य में साल, पर्णपाती समेत कई पेड़ पाए जाते हैं. इस वजह से सेमरसोत अभयारण्य वन्यजीवों के प्रजातियों को विविध और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण निवास स्थान हैं.
- भैरमगढ़ वन्यजीव अभयारण्य : छत्तीसगढ़ के बीजापुर से 48 किमी दूर भैरमगढ़ वन्यजीव अभयारण्य स्थित है. यह अभयारण्य घने जंगलों से घिरा हुआ है. इंद्रावती नदी इस अभयारण्य के पारिस्थितिक समृद्धि का आधार है, जिसकी वजह से यहां पानी की कभी कमी नहीं होती. भैरमगढ़ अभ्यारण्य विशेष रूप से जंगली भैंसें, चिंकारा, भारतीय गजेल, चीतल पहाड़ी लकड़बग्घों के लिए जाना जाता है. यहां कुछ संख्या में बाघ और तेंदुए भी रहते हैं, जो प्रमुख आकर्षण का केंद्र हैं. इसलिए भैरमगढ़ अभयारण्य वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक फायदेमंद गंतव्य है.
- गोमर्डा वन्यजीव अभयारण्य : रायगढ़ जिले के सारंगढ़ शहर के पास गोमर्डा अभयारण्य स्थित है. यह राज्य के साथ ही देश के कई दुर्लभ जीवों और विदेशी प्रजातियों को प्राकृतिक आवास देता है. गोमर्डा अभयारण्य में गौर, नीलगिरि, बार्किंग हिरण, सांभर, मंटजैक, चौसिंघा, स्लॉथ भालू, ढोले (जंगली कुत्ता), जंगली सूअर और सियार सहित कई वन्य जीव निवास करते हैं. आप गोमर्डा वन्यजीव अभ्यारण्य में इन वन्यजीवों को देख अपनी छुट्टियों का आनंद उठा सकते हैं.
- बादलखोल अभयारण्य : रायगढ़ शहर से 160 किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित बादलखोल अभयारण्य छत्तीसगढ़ के प्रमुख वन्यजीव अभयारण्य में से एक है. बादलखोल अभयारण्य का लगभग 44 फीसदी क्षेत्र घने जंगलों से ढंका हुआ है. इसलिए बादलखोल अभ्यारण्य कई तरह की पक्षियों और वन्यजीव प्रजातियों का घर है. बादलखोल अभयारण्य विशेष रूप से पक्षी प्रेमियों के स्वर्ग माना जाता है.
अचानकमार अभ्यारण्य अब टाइगर रिजर्व : छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र से लगे मुंगेली जिले में अचानकमार वन्यजीव अभयारण्य स्थित है. अचानकमार अभयारण्य सतपुड़ा के 553.286 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है. इस अभयारण्य में मैकाल रेंज की विशाल पहाड़ियां मौजूद हैं, जहां साल, बांस और सागौन के वृक्ष पाए जाते हैं. अचानकमार अभयारण्य में बाघ, तेंदुआ, गौर, उड़न गिलहरी, बायसन, हिरण, भालू, लकड़बग्घा, सियार, चिंकारा सहित कई स्तनधारी जीव और विभिन्न प्रजीतियों के पक्षी मौजूद हैं. बाघों की संख्या बढ़ने पर साल 2007 में इसे बायोस्फीयर घोषित किया गया. फिर साल 2009 में अचानकमार अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व क्षेत्र घोषित कर दिया गया. यह अब अचानकमार टाइगर रिजर्व के नाम से प्रसिद्ध है.