हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में सीपीएस की नियुक्तियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शुक्रवार को बहस पूरी न होने के कारण सुनवाई 20 मई के लिए टल गई. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 20 और 21 मई को सरकार का पक्ष सुना जायेगा. साथ ही कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो 22 मई को भी सरकार की बहस को सुना जायेगा. सरकार की ओर से बहस पूरी होने के बाद 27 मई से रोजाना आधार पर याचिकार्ताओं को अंतिम रूप से सुना जायेगा. हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति बीसी नेगी की खंडपीठ के समक्ष 8 मई को दोपहर बाद से इन मामलों पर पुनः सुनवाई शुरू हुई थी.
सरकार की ओर से कानूनी पहलुओं पर बहस करने के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि यह मामला केवल "अंगूर खट्टे हैं" वाला है. याचिकाकर्ताओं की पार्टी की सरकार के समय भी सीपीएस नियुक्त हुए थे और अब जब जनता ने इनको सरकार बनाने से वंचित किया तो इस सरकार की नियुक्तियों को चुनौती देने लगे. बहस पूरी न होने के कारण सुनवाई टल गई. इससे पहले भी लगातार तीन दिन बहस के दौरान प्रार्थियो की ओर से अपना पक्ष न्यायायल के समक्ष रखा गया था और सीपीएस की नियुक्तियों को रद्द करने की गुहार लगाई गई.
प्रार्थियों की ओर से कहा गया था कि प्रदेश में सीपीएस की नियुक्तियां सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के विपरीत है इसलिए इनके द्वारा किया गया कार्य भी अवैध है. इतना ही नहीं इनके द्वारा गैरकानूनी तरीके से लिया गया वेतन भी वापिस लिया जाना चाहिए. प्रार्थियों की ओर से सीपीएस की नियुक्तियों पर रोक लगाने की गुहार लगाते हुए कहा गया था कि इन्हें एक पल के लिए भी पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है. इस मामले पर अब राज्य सरकार की ओर बहस जारी है। सरकार का कहना है कि कानून के तहत सीपीएस की नियुक्तियां की गई है और सरकार इस बाबत कानून बनाने की संवैधानिक शक्तियां रखती है.