शिमला: हिमाचल के युवाओं के लिए एक चेतावनी है. यदि हिमाचल का युवा पुलिस की नौकरी अपने शरीर पर सजे हुए देखना चाहता है तो उसे नशे से दूर रहना होगा. नशे का शिकार युवा पुलिस की नौकरी के काबिल नहीं होगा. आने वाली पुलिस कांस्टेबल की भर्ती में पहली बार डोप टेस्ट भी जोड़ा जा रहा है. डोप टेस्ट में फेल होने वाले को पुलिस की नौकरी नहीं मिलेगी. ऐसे युवाओं का सपना टूटने वाला है.
उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश में सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार 1250 पुलिस कांस्टेबल की भर्ती करने वाली है. इसके लिए जल्द ही हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग पद विज्ञापित करेगा. इस बार की पुलिस भर्ती कई मायनों में अलग होगी. कई नए नियम पहली बार लागू होंगे. महिलाओं का कोटा भी 30 फीसदी किया गया है. पहली बार सौ मीटर की दौड़ भी फिजिकल टेस्ट में शामिल की गई है, लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण पहल है, वो नशे के खिलाफ जंग के रूप में है.
इस बार भर्ती में शामिल होने वाले युवा बेहतर तरीके से पुलिस महकमे के जरिए प्रदेश की सेवा कर सकें, उसके लिए उनका नशे से दूर होना जरूरी है. कांस्टेबल भर्ती की परीक्षा लोक सेवा आयोग लेगा. फिजिकल टेस्ट पुलिस विभाग के जिम्मे है. डोप टेस्ट इसलिए किया जाएगा, ताकि पता लगाया जा सके कि युवा ड्रग्स का आदी तो नहीं. इसके अलावा चरित्र प्रमाण पत्र की वेरिफिकेशन भी पुलिस करेगी.
क्यों लिया फैसला: दरअसल, हिमाचल प्रदेश में युवा पीढ़ी तेजी से नशे का शिकार हो रही है. पाठकों को याद दिलाना जरूरी है कि 18 अगस्त 2016 को हिमाचल हाईकोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा था कि हिमाचल प्रदेश उड़ता पंजाब बन रहा है. तब हिमाचल हाईकोर्ट के जस्टिस राजीव शर्मा ने केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि तीन महीने में नशे के तस्करों के खिलाफ मौत की सजा का प्रावधान करने का कानून बनाया जाए. हाईकोर्ट ने उस साल एक के बाद एक करके कई आदेश जारी किए थे.
नशे के खिलाफ जंग में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इतने सख्त आदेश दिए कि उसके बाद पुलिस प्रशासन पर तस्करों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने के लिए मजबूर कर दिया. ये आठ साल पहले की बात है. केंद्र सरकार ने नशे के तस्करों के खिलाफ मौत की सजा का कानून तो नहीं बनाया, लेकिन उत्तर-पूर्वी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में नशा तस्करी रोकने को लेकर कई कदम उठाने पर सहमति बनी थी. एक दशक में दूरस्थ ग्रामीण इलाकों तक चिट्टा व सिंथेटिक नशा पहुंच गया है.
आलम ये है कि नशा तस्करों का संपर्क विदेशी तस्करों से हो गया. हाल ही में जेएंडके का एक तस्कर पकड़ा गया. उससे पूछताछ के बाद ऊपरी शिमला में नशे का किंगपिन शशि नेगी पकड़ा गया है. एक दशक पहले आईजीएमसी अस्पताल के कम्युनिटी मेडिसिन डिपार्टमेंट के एक सर्वे में ये सामने आया था कि राज्य के चालीस फीसदी युवा किसी न किसी रूप में नशे का शिकार हो चुके हैं.
चिट्टे के कारण मौत के घाट उतर रहे युवा
हिमाचल प्रदेश के लिए ये चिंता का विषय है कि चिट्टे के सेवन से युवा मौत का शिकार हो रहे हैं. हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम डॉ. रमेश चंद नशे के खिलाफ युद्ध छेड़ने की वकालत करते आए हैं. डॉ. रमेश चंद का कहना है कि सिंथेटिक नशा युवाओं का नाश कर रहा है. पुलिस विभाग के एएसपी रैंक के एक अफसर बताते हैं कि युवा अपना नशा पूरा करने के लिए घर से गहने चुरा रहे हैं. घर का छोटा-मोटा सामान बेचकर चिट्टे का जुगाड़ कर रहे हैं.
तीन साल में 58 युवाओं की मौत
हिमाचल में जब से चिट्टे का प्रचलन बढ़ा है, इसके शिकार युवाओं की मौत की खबरें सुर्खियां बन रही हैं. तीन साल में 58 युवाओं की चिट्टे की ओवरडोज से मौत हो चुकी है. कुछ मामले पुलिस में दर्ज हुए हैं तो कुछ में परिवारजनों ने चुप्पी साध ली. लोकलाज के कारण पुलिस में मामला दर्ज नहीं हुआ. इसी साल की बात करें तो मई महीने की 15 तारीख को जिला कांगड़ा के ठाकुरद्वारा ने 27 साल के युवा की मौत नशे की ओवरडोज से हुई थी.
हमीरपुर एनआईटी में तो हॉस्टल में नशा पहुंच गया और एक मेधावी युवा की मौत हुई. दुख की बात है कि नशे का शिकार गरीब घर के युवा अधिक हो रहे हैं. कांगड़ा में जिस 27 साल के युवक की मौत हुई, उसके पिता दर्जी का काम करते हैं और वो परिवार का इकलौता बेटा था. सामाजिक कार्यकर्ता जीयानंद शर्मा कहते हैं कि स्थिति भयावह है. युवा चिट्टे के शिकार हो रहे हैं. घर से दूर रहकर पढ़ाई कर रहे युवा नशे के सौदागरों के निशाने पर हैं. जीयानंद कहते हैं कि नशे की ओवरडोज से मौत का आंकड़ा कहीं अधिक हो सकता है.
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