शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को आईजीएमसी में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों की सैलरी से जुड़े विवाद का हल निकालने के आदेश जारी किए हैं. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने वित्त सचिव को आदेश दिए हैं कि दो दिनों के भीतर याचिकाकर्ता मेसर्स कॉरपोरेट केयर और मेसर्स शिमला क्लीनवेज को देय राशि जारी करे.
कोर्ट ने वित्त सचिव को इन आदेशों की अनुपालना रिपोर्ट 24 दिसंबर 2024 को पेश करने के आदेश भी दिए हैं. मामले की सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि मेसर्स कॉरपोरेट केयर और मेसर्स शिमला क्लीनवेज के प्रति सरकार पर 30 नवंबर, 2024 तक क्रमशः 1,97,55,819 रुपये और 1,63,34,391 रुपये बकाया राशि है. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट को सूचित किया गया था कि आउटसोर्स कर्मचारियों को दो माह की सैलरी नहीं मिली है. इस पर कोर्ट ने कहा कि यह संभवतः अंतर-विभागीय मुद्दे के कारण है कि वेतन का भुगतान नहीं किया गया है.
कोर्ट ने इसे अंतर-विभागीय मुद्दे से संबंधित मानते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को उक्त मुद्दे को हल करने का निर्देश दिया. उल्लेखनीय है कि आईजीएमसी में पिछले दो माह से 132 ऑउटसोर्स कर्मचारी सैलरी से वंचित हैं. इन्हें 2 महीने से सैलरी नहीं मिली है. याचिकाकर्ता मेसर्स कॉरपोरेट केयर और मेसर्स शिमला क्लीनवेज का आरोप है कि सरकार उनके साथ हुए करार को बीच में ही छोड़ कर एचपीएसईडीसी के माध्यम से आउटसोर्स कर्मचारियों की तैनाती करना चाहती है. एकल पीठ ने मेसर्स कॉरपोरेट केयर और मेसर्स शिमला क्लीनवेज कंपनियों की याचिका 50,000 रूपये कॉस्ट के साथ खारिज कर दी थी. एकल पीठ ने कंपनियों पर तथ्यों को छुपाने और छेड़छाड़ वाले दस्तावेज के आधार पर कोर्ट को गुमराह कर अंतरिम आदेश की गुहार लगाने का दोषी पाया था. कंपनियों ने एकल पीठ के इस फैसले को खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी है.
ये भी पढ़ें: निजी अस्पताल में महिला की मौत का मामला, सरकारी हॉस्पिटल ऊना की डॉक्टर निलंबित