शिमला: हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों व पेंशनर्स को बेसब्री से पहली तारीख को इंतजार है. इस बार पहली तारीख मंगलवार को आ रही है. वित्त विभाग में कर्मचारियों को वेतन, पेंशनर्स को पेंशन के साथ 75 साल व इससे अधिक आयु के पेंशन धारकों को 50 फीसदी एरियर आदि के भुगतान पर चर्चा की गई. क्या खजाने में इतने पैसे का जुगाड़ हो सकता है कि पहली ही तारीख को 2000 करोड़ प्लस पचास फीसदी एरियर दिया जा सके?
कैसे हुआ वेतन-पेंशन का जुगाड़
ताजा परिस्थितियों की बात करें तो वित्त विभाग के प्रधान सचिव देवेश कुमार ने फ्रांस दौरे से वापस लौटने के बाद खजाने की हालात को लेकर गुरुवार विभाग के अफसरों से बैठकें की. बैठक में कोषागार में 2000 करोड़ रुपए जुटाने की संभावनाएं तलाशी गई. राज्य सरकार के पास आर्थिक मोर्चे पर संभावित तौर पर देखें तो सितंबर में 700 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया था. उसके अलावा राज्य के खुद के टैक्स व नॉन टैक्स रेवेन्यू के 1200 करोड़ रुपए जुटे थे. केंद्रीय करों की हिस्सेदारी के 740 करोड़ रुपए भी आए थे. रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के 520 करोड़ रुपए मिले थे. ये कुल मिलाकर 3160 करोड़ रुपए बनते हैं.
एरियर मिलने की बंधी आस
इसके अलावा ट्रेजरी में 700 करोड़ रुपए से अधिक के ओवरड्राफ्ट की गुंजाइश है. इस पैसे में से 2000 करोड़ रुपए पांच व दस सितंबर को वेतन-पेंशन पर खर्च हो चुके हैं. उसके अलावा छिटपुट व सरकारी कामकाज के सामान्य खर्च को देखें तो भी खजाने में अच्छी-खासी गुंजाइश निकल रही है. फिर सरकार के पास अन्य विकल्पों से भी 500 से 700 करोड़ रुपए के जुगाड़ की संभावना है. ऐसे में पहली तारीख को वेतन व पेंशन के साथ एरियर मिलने की भी आस बंध गई है. हालांकि इन सारी वित्तीय परिस्थितियों का अंतिम व स्पष्ट आंकलन 30 सितंबर को ही होगा, लेकिन वित्त विभाग से जो संकेत मिल रहे हैं, उसके अनुसार पहली तारीख को मोबाइल पर वेतन व पेंशन के आने का मैसेज फ्लैश हो जाएगा.
कर्ज के मर्ज से जूझ रहा छोटा पहाड़ी राज्य
हिमाचल प्रदेश में सरकार पर कर्ज का मुद्दा अब किसी को चौंकाता नहीं है. पिछले एक दशक से कर्ज लेकर ही काम चलाया जा रहा है. छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के पास खुद के आर्थिक संसाधन सीमित हैं. यहां सरकारी सेक्टर में विभिन्न वर्गों के सवा दो लाख से अधिक कर्मचारी हैं. इसके अलावा पौने दो लाख पेंशनर्स हैं. इनके वेतन व पेंशन का मासिक खर्च 2000 करोड़ रुपए है. राज्य सरकार विकास के लिए एक्सर्टनल फंडिड प्रोजेक्ट्स व केंद्रीय परियोजनाओं सहित केंद्र की मदद पर निर्भर है. राज्य पर कर्ज का बोझ जल्द ही नब्बे हजार करोड़ रुपए हो जाएगा. हालात इस कदर गंभीर हैं कि लिए गए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी कर्ज उठाना पड़ जाता है. ऐसे में आने वाले समय में संकट और गंभीर होने की आशंका है.
बीबीएमबी व शानन पावर हाउस से आस
हिमाचल को बीबीएमबी यानी भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड की विद्युत परियोजनाओं के एरियर की रकम सहित शानन पावर हाउस वापस मिलने पर कुछ राहत होगी. बीबीएमबी परियोजनाओं के कुल एरियर की रकम 4500 करोड़ रुपए से अधिक है. शानन पावर हाउस मिल जाए तो ये 200 करोड़ रुपए की कमाई हर साल देगा. इसके अलावा राज्य सरकार ने बिजली पर सब्सिडी खत्म कर आने वाले समय में धन का जुगाड़ किया है. ग्रामीण इलाकों में पानी के बिल की न्यूनतम राशि सौ रुपए तय की गई है. उससे भी कुछ पैसा आएगा. अलबत्ता ये पर्याप्त नहीं है, लेकिन इससे कुछ न कुछ राहत जरूर मिलेगी. वित्तीय मामलों के जानकार अर्थशास्त्री राजीव सूद का कहना है कि निजी सेक्टर में रोजगार व पर्यटन के क्षेत्र में नए प्रयोग करने चाहिए. सरकार को अपने खर्चों पर भी अंकुश लगाने की तरफ ध्यान देना होगा. कर्ज पर निर्भरता कम करनी पड़ेगी. आय के नए साधन तलाशने पर जोर देना होगा, तभी आर्थिक गाड़ी पटरी पर आएगी.