शिमला: आर्थिक मोर्चे पर मुश्किलों से घिरी हिमाचल सरकार को अब 16वें वित्तायोग का सहारा है. हिमाचल सरकार को रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में बढ़ोतरी की शिद्दत से जरूरत है. यदि 16वें वित्तायोग ने उदार आर्थिक सहायता की सिफारिश नहीं की तो हिमाचल की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार का आर्थिक संकट गहरा हो जाएगा. इस समय नए वेतन आयोग के एरियर का ही 9000 करोड़ रुपए बकाया है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने वित्तायोग के समक्ष अपने भाषण की जो लिखित कॉपी रखी थी, उसमें पेज नंबर 8 पर ये आग्रह किया था कि राज्य को मदद के लिए एकमुश्त प्रावधान किया जाए.
कारण गिनाते हुए सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने पॉइंट नंबर 14 पर कहा था -(एक और बात मैं आपके ध्यान में लाना चाहता हूं. प्रदेश सरकार छठे वेतन आयोग के एरियर अभी तक नहीं दे पाई है. यह बकाया राशि लगभग नौ हजार करोड़ रुपए है. इस बारे में अलग-अलग विभागों से संबंधित अदालतों के आदेश भी आ रहे हैं कि सारा एरियर ब्याज सहित दिया जाए. कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसे आदेश दिए हैं. हमने खर्चों के अनुमान में इस एरियर को आगामी पांच साल में किश्तों में देने का प्रस्ताव किया है, लेकिन अदालतों के आदेशों और कर्मचारियों व पेंशनर्स की अपेक्षाओं को देखते हुए लगता है कि यह देनदारी 2026-27 में ही चुकानी होगी. इसके लिए एकमुश्त प्रावधान किया जाना जरूरी है.)
अगले वित्त वर्ष में 3257 करोड़ रह जाएगी ग्रांट
वित्तायोग की सिफारिश पर राज्य सरकारों को रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट मिलती है. चौदहवें व पंद्रहवें वित्तायोग से मिली ग्रांट माकूल थी और उससे राज्य सरकार के वेतन व पेंशन का खर्च काफी हद तक निकल जाता था, लेकिन ये ग्रांट अब निरंतर घटती जा रही है. इसका कारण वित्तायोग के राजस्व घाटा अनुदान को टेपर करना है. टेपर यानी हर साल तय फार्मूले के तहत ग्रांट में कटौती होती चली जाती है. इसी कटौती के कारण इस वित्त वर्ष यानी 2024-25 में जो ग्रांट 6258 करोड़ रुपए सालाना है, वो घटकर 3257 करोड़ रह जाएगी. यानी हर महीने हिमाचल को राजस्व घाटा अनुदान के तौर पर केंद्र से 270 करोड़ रुपए से कुछ अधिक महीने में जारी होंगे. इधर, वेतन व पेंशन का खर्च 1500 करोड़ रुपए महीना के करीब है. ऐसे में सरकार को वेतन व पेंशन का जुगाड़ करने में ही पसीने छूटेंगे. एरियर चुकाना तो दूर की बात है. सोलहवें वित्तायोग की सिफारिशों के बाद केंद्र से जो राशि मिलनी है, उसके लिए भी वर्ष 2026 का इंतजार करना होगा. इस वित्तायोग का कार्यकाल 2026 से 2031 तक का है. पंद्रहवें वित्तायोग का कार्यकाल 2021 से 2026 तक का है.
अब तक रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट से चलता आया था काम
हिमाचल की पूर्व जयराम सरकार के समय तक वेतन व पेंशन के लिए रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट से काफी राहत मिलती रही थी. कारण ये था कि उस समय रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट की रकम पर्याप्त थी. पंद्रहवें वित्तायोग की बात करें तो उसकी सिफारिश पर हिमाचल को 2021-22 में 10249 करोड़ रुपए सालाना ग्रांट के तौर पर मिले थे. उस समय वेतन व पेंशन का खर्च भी एक हजार करोड़ रुपए महीना से कम था. ऐसे में करीब 850 करोड़ रुपए हर महीने ग्रांट के तौर पर मिल जाते थे और वेतन आदि का खर्च पूरा करने में आसानी होती थी.
वर्ष 2022-23 में ये ग्रांट 9377 करोड़ रुपए सालाना थी. फिर 2023-24 में ये 8058 करोड़ रुपए हुई. अगले वित्त वर्ष 2024-25 में ये 6258 करोड़ रह गई. यानी मौजूदा वित्त वर्ष में ये ग्रांट 6258 करोड़ रुपए है. अगले वित्त वर्ष में ये टेपर होकर 3257 करोड़ रुपए रह जाएगी.
वेतन के लिए चाहिए 15862 करोड़ रुपए
नए वेतन आयोग के बाद सरकारी कर्मचारियों का वेतन बढ़ा है. हालांकि उन्हें एरियर नहीं मिला है, लेकिन वेतन की बढ़ोतरी ही इतनी है कि सरकार का खजाना उसे संभाल नहीं पा रहा है. वित्तायोग के समक्ष रखे गए आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2025-26 में सरकार को सिर्फ और सिर्फ वेतन के लिए ही 15862 करोड़ रुपए चाहिए. पेंशन के लिए अलग से 10800 करोड़ रुपए की जरूरत होगी. यानी वेतन व पेंशन का खर्च मिलाकर 26722 करोड़ रुपए होगा. वहीं, राजस्व घाटा अनुदान सिर्फ 3257 करोड़ रुपए रह जाएगा. इस तरह राज्य सरकार को वेतन व पेंशन का खर्च पूरा करने के लिए बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च करना होगा. आलम ये है कि अब राज्य सरकार की सारी उम्मीदें सोलहवें वित्तायोग की सिफारिशों पर टिकी हुई हैं. वरिष्ठ मीडिया कर्मी राजेश कुमार का कहना है कि पिछले वित्तायोग ने ग्रांट में 45 फीसदी बढ़ोतरी की थी. यदि इस बार अच्छी बढ़ोतरी हो गई तो सरकार राहत की सांस लेगी और ग्रांट में उल्लेखनीय बढ़ोतरी नहीं मिली तो हिमाचल कर्ज के जाल में इस तरह फंस जाएगा कि निकलने का कोई रास्ता नहीं होगा.