शिमला: हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा सीट पर हार के बाद उपजी परिस्थितियों में अब कांग्रेस का फोकस 6 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव पर है. हालांकि फिलहाल विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के साथ लोकसभा की चार सीटों पर भी चुनाव होने हैं, लेकिन कांग्रेस का अधिक ध्यान 6 उपचुनाव में सीटें जीतकर सरकार बचाने पर है. चूंकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति एक दशक से कोई खास बेहतर नहीं है. 2014 से लेकर 2019 तक कांग्रेस ने चारों लोकसभा सीटें हारी हैं. इसके बाद साल 2021 में मंडी सीट पर हुए लोकसभा उपचुनाव बेशक प्रतिभा सिंह की जीत हुई थी, लेकिन वोटों का अंतर ज्यादा नहीं था.
संकटमोचक की भूमिका निभाएंगे मुकेश अग्निहोत्री!
वहीं, इस साल फरवरी में मुकेश अग्निहोत्री की धर्म पत्नी का दुखद निधन से हो गया था. जिस वजह से वह सदमे में रहे, लेकिन अब वे दुख की स्थिति से धीरे धीरे उभर रहे हैं. उनके कांग्रेस में दोनों ही गुटों के नेताओं के साथ मधुर संबंध हैं. जिसका पार्टी को आने वाले समय में फायदा मिल सकता है. ऐसे में डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री विधानसभा उपचुनाव में सरकार को बचाने में संकटमोचक की भूमिका निभा सकते हैं.
CM के बयान बता रहे लोकसभा की सीरियसनेस
हिमाचल प्रदेश में लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने की जगह कांग्रेस की प्राथमिकता विधानसभा के लिए 6 सीटों पर होने वाले उपचुनाव पर हैं, ताकि उपचुनाव जीतकर सरकार बचाई जा सके. सीएम के बयान खुद लोकसभा चुनाव की सीरियसनेस बता रहे हैं. सीएम ने होली के दिन मीडिया से बात करते हुए कहा था कि हफ्ते पहले या 24 घंटे पहले उम्मीदवारों के नाम बताएंगे. ऐसे में जाहिर है कि कांग्रेस का ध्यान फिलहाल उत्तर भारत की एकमात्र कांग्रेस सरकार को बचाने पर है.
उपचुनाव में कांग्रेस के लिए कितनी सीट जरूरी?
राज्यसभा में हुई क्रॉस वोटिंग और 6 कांग्रेस के विधायक बजट पास करने के समय सदन में उपस्थित नहीं थे, ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष ने सभी 6 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था. जिसके बाद विधानसभा में अब विधायकों की संख्या 62 रह गई है. ऐसे में सुक्खू सरकार को अभी बहुमत के लिए 32 विधायकों की जरूरत है. वहीं, सरकार के पास अभी भी 34 विधायक है. इस तरह से कांग्रेस को 35 के बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए उपचुनाव में 6 में से कम से कम 1 सीट पर जीत दर्ज करनी होगी. जिसके लिए कांग्रेस विधानसभा उपचुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत लगाएगी. हालांकि विधानसभा की सदस्यता से 3 निर्दलीय विधायकों ने भी इस्तीफा दिया है, लेकिन अभी विधानसभा अध्यक्ष ने इसे स्वीकार नहीं किया है.
कांग्रेस के बागी अब भाजपा के उम्मीदवार
हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा के लिए क्रॉस वोटिंग के बाद घटे घटनाक्रम से कांग्रेस के 6 विधायकों की विधानसभा सदस्यता चली गई है. ऐसे में कांगड़ा जिले की धर्मशाला सीट से सुधीर शर्मा, हमीरपुर जिले की सुजानपुर सीट से राजेंद्र राणा, हमीरपुर जिले की बड़सर विधानसभा से इंद्रदत्त लखनपाल, ऊना जिले की कुटलैहड़ विधानसभा सीट से देवेंद्र कुमार भुट्टो, लाहौल स्पीति से रवि ठाकुर व ऊना जिले की गगरेट सीट से चैतन्य शर्मा अब पूर्व विधायक हैं. खाली हुई इन विधानसभा सीटों पर अब चुनाव आयोग ने 1 जून को मतदान करने का ऐलान कर दिया है. ऐसे में भाजपा ने इन सभी सीटों पर कांग्रेस के 6 बागियों को विधानसभा उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया है. यानी कांग्रेस के बागी विधायक अब बीजेपी के प्रत्याशी बन गए हैं.
भाजपा में बगावत
कांग्रेस के बागियों को विधानसभा उपचुनाव के लिए भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया है. ऐसे में बीजेपी से उपचुनाव की तैयारी कर रहे संभावित प्रत्याशियों की उम्मीदों पर बागियों की एंट्री से पानी फिर गया है. जिससे अब भाजपा के अंदर भी बगावत की चिंगारी भड़क गई है. इसमें पूर्व मंत्री रामलाल मारकंडा ने बागी होकर पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. इसी तरह से उपचुनाव में भाजपा से टिकट की इच्छा पाले एक अन्य नेता राकेश कालिया ने भी पार्टी को गुड बाय कह दिया है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के अनुसार अभी भाजपा के कई पूर्व मंत्री उनके संपर्क में है. ऐसे में आने वाले देखना दिलचस्प रहेगा कि भाजपा बगावत की चिंगारी को लपटों में बदलने से कैसे रोकेगी.
उपचुनावों में भाजपा की मुश्किलें
वहीं, राज्यसभा चुनाव के लिए क्रॉस वोटिंग के बाद उपजी स्थिति को देखते हुए उपचुनाव में भाजपा की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है. सुक्खू सरकार पर दबाव बनाने के लिए भाजपा को उपचुनाव में सभी सीटें जीतनी होगी. वहीं, मुकेश अग्निहोत्री के अनुसार कांग्रेस अब पहले से अधिक सजग और सतर्क है. राजनीति अंक गणित का खेल है, जो अभी भी सरकार के पक्ष में है. उनका कहना है कि बागियों के भविष्य का फैसला 1 जून को जनता के दरबार में होगा.