शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शिमला के हीरानगर स्थित बाल सुधार गृह में बच्चों के मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन की शिकायत पर सोमवार को राज्य सरकार एवं अन्य को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है. अब 24 जून को सुनवाई होगी. मानवाधिकार संरक्षण के लिए कार्यरत संस्था उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव द्वारा चीफ जस्टिस को लिखे पत्र को आपराधिक जनहित याचिका मानकर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के अलावा महिला एवं बाल विकास विभाग के निदेशक और इसी विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी से जवाब मांगा है.
न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति राकेश कैंथला की बेंच ने इनके अलावा बाल सुधार गृह के अधीक्षक कौशल गुलेरिया एवं तीन कर्मचारियों- राहुल (कुक), योगेश (किचन हेल्पर), एवं रोहित ( सुरक्षा गार्ड) को भी पार्टी बनाया है. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव को भेजे पत्र में अजय श्रीवास्तव ने बताया कि महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित इस बाल सुधार गृह में बच्चों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है. सोलन जिले के जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड द्वारा बाल सुधार गृह में भेजे गए बच्चों में से 2 ने बोर्ड के समक्ष लिखित शिकायत भी की है.
अजय श्रीवास्तव ने पत्र में लिखा कि एक बच्चे ने बाल सुधार गृह से छूटने के बाद उन्हें फोन पर वहां के रोंगटे खड़े करने वाले हालात बताए. यातनाओं से छुटकारा पाने के लिए दो बच्चों ने आत्महत्या की कोशिश भी कर चुके हैं. बच्चे ने आरोप लगाया कि सुधार गृह के अधीक्षक कौशल गुलरिया अक्सर दफ्तर में शराब के नशे में होते हैं. वह और उनके साथ रसोईया राहुल और रसोई सहायक योगेश भी बात-बात पर बच्चों को बुरी तरह मारते और बहुत गंदी गालियां देते हैं. बच्चे के अनुसार स्टाफ के कुछ लोग ड्रग्स का सेवन भी करते हैं.
बाल सुधार गृह से छूट कर उस बच्चे ने अजय श्रीवास्तव को बताया कि 13 अक्टूबर 2023 को अधीक्षक कौशल गुलरिया और उसके साथियों ने छह बच्चों को बहुत बुरी तरह मारा पीटा. उसे भी इतना मारा की मुंह से खून निकलने लगा, जिससे उसकी कमीज लाल हो गई. एक अन्य बच्चे को भी काफी खून निकला. इन दोनों बच्चों की कमीज सबूत मिटाने के लिए जला दी गई. एक अन्य बच्चे को पिटाई से हड्डियों में गंभीर चोट आई और उसका बाजू उतर गया.
चीफ जस्टिस को लिखे पत्र में अजय श्रीवास्तव ने उस बच्चे का संदर्भ देते हुए बताया गया कि बच्चों की पिटाई ऐसे स्थान पर की जाती है, जहां सीसीटीवी कैमरा नहीं होता है या फिर उसे समय कैमरा बंद कर दिया जाता है. अधीक्षक और स्टाफ बच्चों को धमकाता है कि शिकायत करने पर न सिर्फ पीटा जाएगा. बल्कि पुलिस में रिपोर्ट भी कर दी जाएगी. अधीक्षक पुलिस, प्रशासन और न्यायपालिका में अपनी ऊंची पहुंच का भी हवाला देता हैं.
याचिका के अनुसार बाल सुधार गृह की यातनाओं से छूट कर बच्चे ने सोलन के जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में इस बारे में लिखित शिकायत दी और बयान दर्ज कराया. सोलन के ही बोर्ड में पेशी होने पर एक अन्य बच्चे ने भी यातनाओं के बारे में बताया और अपना बाकी समय काटने के लिए शिमला के बाल सुधार गृह में जाने से इनकार कर दिया. इसलिए बोर्ड ने ऊना के बाल सुधार गृह में भेजा है। यह शिकायत सोलन के जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के रिकॉर्ड में भी हैं.
यही नहीं, यह खुलासा करने वाले बच्चे और एक अन्य बच्चे को दूरवर्ती शिक्षा से पढ़ाई जारी रखने का मौका नहीं दिया गया. पत्र में कहा गया है कि बाल सुधार गृह में बच्चों को दिए जाने वाले भोजन और मात्रा भी सही नहीं होती है. पेट न भरने पर जब बच्चे और खाना मांगते हैं तो उन्हें गालियां दी जाती हैं और पिटाई तक कर दी जाती है.
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