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डिप्टी सीएम केशव मौर्य के 'सरकार से संगठन बड़ा' बयान पर दाखिल PIL खारिज, हाईकोर्ट ने की ये टिप्पणी - Deputy CM Keshav Maurya

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बयान को लेकर दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा कि डिप्टी सीएम का बयान पार्टी फोरम पर है संवैधानिक पद पर नहीं.

डिप्टी सीएम को लेकर दाखिल जनहित याचिका खारिज.
डिप्टी सीएम को लेकर दाखिल जनहित याचिका खारिज. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 9, 2024, 8:17 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के 'सरकार से संगठन बड़ा है' बयान को लेकर दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी है. मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली एवं न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने कहा कि याचिका में कोई तत्व ही नहीं है. कोर्ट ने कहा कि प्राइवेट कैपिसिटी में पार्टी फोरम में दिए गए बयान का कोई मायने नहीं है. यह बयान पार्टी फोरम पर है, संवैधानिक पद पर रहते हुए सरकार के फोरम पर नहीं है. कोर्ट ने कहा कि केशव मौर्य डिप्टी सीएम होने के साथ साथ पार्टी के सदस्य भी हैं. डिप्टी सीएम होने से पार्टी से सम्बन्ध खत्म नहीं हो जाता. इस कारण पार्टी स्तर पर दिए गए बयान को लेकर अखबार में छपी खबरों के आधार पर याचिका दाखिल की गई है. याचिका में कोई बल नहीं है, इस कारण खारिज की जाती है.

याचिका के अनुसार गत 14 जुलाई को डिप्टी सीएम ने सरकार और संगठन पर बयान दिया था. उन्होंने संगठन को बड़ा बताया था. बाद में एक्स पर यही बात पोस्ट भी की.याचिका में कहा गया था कि केशव मौर्य का यह कहना कि सरकार से बड़ा संगठन होता है, उनके पद की गरिमा को कम करता है. साथ ही सरकार की पारदर्शिता पर संदेह उत्पन्न करता है. यह भी कहा गया था कि भाजपा, राज्यपाल और चुनाव आयोग की ओर से कोई प्रतिक्रिया या खंडन न करना इस मुद्दे को और जटिल बनाता है. याचिका में केशव मौर्य के आपराधिक इतिहास का भी जिक्र करते हुए कहा गया था कि उपमुख्यमंत्री बनाए जाने से पहले उन पर सात आपराधिक मामले दर्ज हुए थे. इसलिए ऐसे आपराधिक रिकॉर्ड वाले किसी व्यक्ति को संवैधानिक पद पर नियुक्त करना गलत है.

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के 'सरकार से संगठन बड़ा है' बयान को लेकर दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी है. मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली एवं न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने कहा कि याचिका में कोई तत्व ही नहीं है. कोर्ट ने कहा कि प्राइवेट कैपिसिटी में पार्टी फोरम में दिए गए बयान का कोई मायने नहीं है. यह बयान पार्टी फोरम पर है, संवैधानिक पद पर रहते हुए सरकार के फोरम पर नहीं है. कोर्ट ने कहा कि केशव मौर्य डिप्टी सीएम होने के साथ साथ पार्टी के सदस्य भी हैं. डिप्टी सीएम होने से पार्टी से सम्बन्ध खत्म नहीं हो जाता. इस कारण पार्टी स्तर पर दिए गए बयान को लेकर अखबार में छपी खबरों के आधार पर याचिका दाखिल की गई है. याचिका में कोई बल नहीं है, इस कारण खारिज की जाती है.

याचिका के अनुसार गत 14 जुलाई को डिप्टी सीएम ने सरकार और संगठन पर बयान दिया था. उन्होंने संगठन को बड़ा बताया था. बाद में एक्स पर यही बात पोस्ट भी की.याचिका में कहा गया था कि केशव मौर्य का यह कहना कि सरकार से बड़ा संगठन होता है, उनके पद की गरिमा को कम करता है. साथ ही सरकार की पारदर्शिता पर संदेह उत्पन्न करता है. यह भी कहा गया था कि भाजपा, राज्यपाल और चुनाव आयोग की ओर से कोई प्रतिक्रिया या खंडन न करना इस मुद्दे को और जटिल बनाता है. याचिका में केशव मौर्य के आपराधिक इतिहास का भी जिक्र करते हुए कहा गया था कि उपमुख्यमंत्री बनाए जाने से पहले उन पर सात आपराधिक मामले दर्ज हुए थे. इसलिए ऐसे आपराधिक रिकॉर्ड वाले किसी व्यक्ति को संवैधानिक पद पर नियुक्त करना गलत है.

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