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पहली नजर में अपराध दिख रहा तो कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं - High Court - HIGH COURT

दिवंगत पिता के फर्जी हस्ताक्षर कर खाते से 30 लाख ट्रांसफर करने के मामले में हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप से इनकार कर दिया है. इसके साथ ही आरोपी की याचिका भी खारिज कर दी है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (फाइल फोटो)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 17, 2024, 9:44 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिता की मौत होते ही उनके फर्जी हस्ताक्षर कर बैंक खाते से 30 लाख रुपये निकालने के आरोपी के खिलाफ आपराधिक मामले की कार्यवाही पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने दिनेश मानवानी की याचिका पर दिया है. कोर्ट ने कहा कि याची के खिलाफ प्रथमदृष्टया अपराध नहीं बनता. अपराध बनता है या नहीं, यह ट्रायल के समय प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर तय होगा. याची ने कहा कि उसने पूरी रकम वापस कर दी है, इसलिए कोई अपराध नहीं बनता. ऐसे में केस कार्यवाही रद्द की जाए.

दिनेश मानवानी के खिलाफ उसकी मां ने केस दर्ज कराया था. आरोप लगाया था कि उसके पति के मृत्यु होते ही बेटे दिनेश ने फर्जी हस्ताक्षर कर उनके खाते से बड़ी धनराशि स्थानांतरित कर लिया था. पुलिस ने 23 जुलाई 2019 को चार्जशीट दाखिल की, जिस पर अदालत ने संज्ञान लेकर सम्मन जारी किया. याची के हाजिर न होने पर गैर जमानती वारंट जारी किया गया है. याचिका में चार्जशीट, सम्मन व वारंट सहित पूरी केस कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी. शिकायतकर्ता मां के अधिवक्ता प्रारब्ध पांडेय का कहना था कि फोरेंसिक रिपोर्ट में याची द्वारा मृत पिता के फर्जी हस्ताक्षर से खाते से रकम निकालने की पुष्टि की गई है. याची ने अपराध किया है.

कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 की याचिका में तथ्य पर विचार नहीं किया जा सकता, यह ट्रायल का विषय है. याचिका में कानूनी पहलू पर विचार हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने भजनलाल केस में हस्तक्षेप की गाइडलाइंस दी है, जिसके अनुसार जहां प्रथमदृष्टया आपराधिक केस नहीं बनता हो, वहीं धारा 482 में हस्तक्षेप किया जा सकता है. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में ऐसा कुछ नहीं है.

इसे भी पढ़ें-भ्रष्टाचार एवं रिश्वत के आरोपी दरोगा की बर्खास्तगी हाईकोर्ट ने की निरस्त

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिता की मौत होते ही उनके फर्जी हस्ताक्षर कर बैंक खाते से 30 लाख रुपये निकालने के आरोपी के खिलाफ आपराधिक मामले की कार्यवाही पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने दिनेश मानवानी की याचिका पर दिया है. कोर्ट ने कहा कि याची के खिलाफ प्रथमदृष्टया अपराध नहीं बनता. अपराध बनता है या नहीं, यह ट्रायल के समय प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर तय होगा. याची ने कहा कि उसने पूरी रकम वापस कर दी है, इसलिए कोई अपराध नहीं बनता. ऐसे में केस कार्यवाही रद्द की जाए.

दिनेश मानवानी के खिलाफ उसकी मां ने केस दर्ज कराया था. आरोप लगाया था कि उसके पति के मृत्यु होते ही बेटे दिनेश ने फर्जी हस्ताक्षर कर उनके खाते से बड़ी धनराशि स्थानांतरित कर लिया था. पुलिस ने 23 जुलाई 2019 को चार्जशीट दाखिल की, जिस पर अदालत ने संज्ञान लेकर सम्मन जारी किया. याची के हाजिर न होने पर गैर जमानती वारंट जारी किया गया है. याचिका में चार्जशीट, सम्मन व वारंट सहित पूरी केस कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी. शिकायतकर्ता मां के अधिवक्ता प्रारब्ध पांडेय का कहना था कि फोरेंसिक रिपोर्ट में याची द्वारा मृत पिता के फर्जी हस्ताक्षर से खाते से रकम निकालने की पुष्टि की गई है. याची ने अपराध किया है.

कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 की याचिका में तथ्य पर विचार नहीं किया जा सकता, यह ट्रायल का विषय है. याचिका में कानूनी पहलू पर विचार हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने भजनलाल केस में हस्तक्षेप की गाइडलाइंस दी है, जिसके अनुसार जहां प्रथमदृष्टया आपराधिक केस नहीं बनता हो, वहीं धारा 482 में हस्तक्षेप किया जा सकता है. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में ऐसा कुछ नहीं है.

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