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हाईकोर्ट का आदेश, सिविल प्रकृति के विवाद में आपराधिक मुकदमा दर्ज करने से पूर्व सरकारी वकील की राय जरूरी - High Court order

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि सिविल प्रकृति व्यवसायिक, जमीन संबंधी या समझौते जैसे विवादों में आपराधिक मुकदमा दर्ज करने से पहले सरकारी वकील की विधिक राय और रिपोर्ट अनिवार्य रूप से ली जाए.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 10, 2024, 10:07 PM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि सिविल प्रकृति व्यवसायिक, जमीन संबंधी या समझौते जैसे विवादों में आपराधिक मुकदमा दर्ज करने से पहले सरकारी वकील की विधिक राय और रिपोर्ट अनिवार्य रूप से ली जाए. कोर्ट ने कहा कि जहां आईपीसी की धारा 406, 408, 420/467 व 471 में मुकदमा दर्ज करने की मांग की गई है, प्रकरण व्यवसायिक या समझौते से सिविल प्रकृति का विवाद है तो केस दर्ज करने से पहले संबंधित जिलों के सरकारी वकील से सलाह लेने व एक रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद ही मुकदमा दर्ज किया जाए. कानपुर के सोने लाल व अन्य की याचिका पर सुनवाई के रही न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान व न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की कोर्ट ने यह आदेश दिया.

कोर्ट ने डीजीपी को इस संबंध में प्रदेश के सभी ज़िला पुलिस कमिश्नर, एसएसपी को सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया है, ताकि संबंधित पुलिस स्टेशनों के अधिकारियों को आदेश का पालन करना सुनिश्चित किया जा सके. कोर्ट ने निदेशक अभियोजन यूपी को भी निर्देश दिया है कि वह संबंधित सभी सरकारी वकीलों डीजीसी क्रिमिनल और सिविल को इस संबंध में आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करें.

कोर्ट ने कहा कि इस आदेश का पालन किए बिना यदि पुलिस अधिकारी एफआईआर दर्ज करते हैं तो यह अदालत की अवमानना माना जाएगा. कोर्ट ने प्रदेश के सभी न्यायिक मजिस्ट्रेटों को भी धारा 156 (3) के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश देते समय शिकायत का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने का निर्देश दिया है. निदेशक न्यायिक प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान, लखनऊ को निर्देश दिया कि वे यूपी के सभी मजिस्ट्रेटों को पालन की जाने वाली सही प्रक्रिया के बारे में जागरूक करें. इसके लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की सेवाएं . रजिस्ट्रार जनरल को इस आदेश का तत्काल अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक और निदेशक अभियोजन को निर्देश दिया कि वह अगली सुनवाई की तारीख से पहले इस आदेश के पालन में की गई कार्रवाई के संंबंध में हलफनामा दायर करें.

कोर्ट ने 9 मई 24 को हुई सुनवाई के दौरान कहा कि उक्त आदेश का पालन 27 मई 2024 को या उससे पहले नहीं किया जाता है तो पुलिस महानिदेशक और निदेशक अभियोजन 27 मई को दोपहर दो बजे न्यायालय में उपस्थित रहेंगे. याची छोटे लाल के खिलाफ़ एक ज़मीन का नामांतरण फर्जी वारिस बनकर करा लेने के आरोप में धोखाधड़ी का मुक़दमा दर्ज़ कराया गया था, जिसे उसने हाईकोर्ट में चुनौती दी. सुनवाई के दौरान सामने आया कि विवाद सिविल प्रकृति का है और इससे संबंधित वाद राजस्व न्यायालय में लंबित है. इसे गंभीरता से लेते हुए अदालत ने यह आदेश दिया.

यह भी पढ़ें : बैंक मैनेजर पर एसिड अटैक के आरोपियों की जमानत नामंजूर, पीड़िता को प्रोटेक्शन देने के आदेश - Bail Rejected By High Court

यह भी पढ़ें : अधिकारियों के बढ़ते मीडिया प्रेम पर इलाहाबाद हाईकोर्ट सख्त, कहा- प्रदेश सरकार इस पर रोक लगाए - Allahabad High Court Order

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि सिविल प्रकृति व्यवसायिक, जमीन संबंधी या समझौते जैसे विवादों में आपराधिक मुकदमा दर्ज करने से पहले सरकारी वकील की विधिक राय और रिपोर्ट अनिवार्य रूप से ली जाए. कोर्ट ने कहा कि जहां आईपीसी की धारा 406, 408, 420/467 व 471 में मुकदमा दर्ज करने की मांग की गई है, प्रकरण व्यवसायिक या समझौते से सिविल प्रकृति का विवाद है तो केस दर्ज करने से पहले संबंधित जिलों के सरकारी वकील से सलाह लेने व एक रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद ही मुकदमा दर्ज किया जाए. कानपुर के सोने लाल व अन्य की याचिका पर सुनवाई के रही न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान व न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की कोर्ट ने यह आदेश दिया.

कोर्ट ने डीजीपी को इस संबंध में प्रदेश के सभी ज़िला पुलिस कमिश्नर, एसएसपी को सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया है, ताकि संबंधित पुलिस स्टेशनों के अधिकारियों को आदेश का पालन करना सुनिश्चित किया जा सके. कोर्ट ने निदेशक अभियोजन यूपी को भी निर्देश दिया है कि वह संबंधित सभी सरकारी वकीलों डीजीसी क्रिमिनल और सिविल को इस संबंध में आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करें.

कोर्ट ने कहा कि इस आदेश का पालन किए बिना यदि पुलिस अधिकारी एफआईआर दर्ज करते हैं तो यह अदालत की अवमानना माना जाएगा. कोर्ट ने प्रदेश के सभी न्यायिक मजिस्ट्रेटों को भी धारा 156 (3) के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश देते समय शिकायत का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने का निर्देश दिया है. निदेशक न्यायिक प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान, लखनऊ को निर्देश दिया कि वे यूपी के सभी मजिस्ट्रेटों को पालन की जाने वाली सही प्रक्रिया के बारे में जागरूक करें. इसके लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की सेवाएं . रजिस्ट्रार जनरल को इस आदेश का तत्काल अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक और निदेशक अभियोजन को निर्देश दिया कि वह अगली सुनवाई की तारीख से पहले इस आदेश के पालन में की गई कार्रवाई के संंबंध में हलफनामा दायर करें.

कोर्ट ने 9 मई 24 को हुई सुनवाई के दौरान कहा कि उक्त आदेश का पालन 27 मई 2024 को या उससे पहले नहीं किया जाता है तो पुलिस महानिदेशक और निदेशक अभियोजन 27 मई को दोपहर दो बजे न्यायालय में उपस्थित रहेंगे. याची छोटे लाल के खिलाफ़ एक ज़मीन का नामांतरण फर्जी वारिस बनकर करा लेने के आरोप में धोखाधड़ी का मुक़दमा दर्ज़ कराया गया था, जिसे उसने हाईकोर्ट में चुनौती दी. सुनवाई के दौरान सामने आया कि विवाद सिविल प्रकृति का है और इससे संबंधित वाद राजस्व न्यायालय में लंबित है. इसे गंभीरता से लेते हुए अदालत ने यह आदेश दिया.

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