जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने मुख्य सतर्कता अधिकारी की सलाह पर एसबीआई बैंक के अधिकारी की सेवा समाप्त करने के आदेश को रद्द कर दिया है. इसके साथ ही अदालत ने मामले में अपीलीय अधिकारी के आदेश को भी निरस्त कर दिया है. अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को अनुशासनात्मक अधिकारी की ओर से तय की गई सजा के तौर पर एक साल के लिए उसका वेतनमान कम किया जाए. जस्टिस अनूप ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश यह आदेश वैभव सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.
याचिका में अधिवक्ता सुनील समदडिया ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता एसबीआई बैंक में अधिकारी है. वर्ष 2016 में जांच अधिकारी नियुक्त कर उसके खिलाफ लगाए आरोपों की जांच की गई. जांच अधिकारी ने मामले में कुछ आरोप प्रमाणित माने और अनुशासनात्मक अधिकारी को अपनी रिपोर्ट भेज दी.
अनुशासनात्मक अधिकारी ने 7 जुलाई, 2017 को याचिकाकर्ता को एक साल के लिए निचले वेतनमान की सजा देना तय करते हुए प्रकरण मुख्य सतर्कता अधिकारी के पास भेजा. याचिका में कहा गया कि मुख्य सतर्कता अधिकारी ने अनुशासनात्मक अधिकारी के विस्तृत आदेश पर एक लाइन में सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता को पद से हटाया जाना चाहिए. इस पर अनुशासनात्मक अधिकारी ने 5 दिसंबर, 2017 को उसकी सेवा समाप्त कर दी.
इस आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने विभागीय अपील की, लेकिन अपीलीय अधिकारी ने 30 मई, 2018 को अपील को खारिज कर दिया. इन दोनों आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा गया कि अनुशासनात्मक अधिकारी ने अपने विवेक से याचिकाकर्ता का वेतन कम करने की सजा दी थी, लेकिन बाद में मुख्य सतर्कता अधिकारी की सिफारिश पर सेवा समाप्त की गई. सेवा समाप्ति का यह आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत की अवहेलना करता है. याचिकाकर्ता को मुख्य सतर्कता अधिकारी की सिफारिश की जानकारी भी नहीं दी गई और ना ही याचिकाकर्ता को उनके समक्ष पक्ष रखने का मौका दिया गया. वहीं बैंक की ओर से अधिवक्ता अनिता अग्रवाल ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप प्रमाणित होने के आधार पर ही उसकी सेवा समाप्त की गई है. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद एकलपीठ ने याचिकाकर्ता की सेवा समाप्ति के आदेश को रद्द करते हुए उसकी पूर्व की सजा को बहाल किया है.