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श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद; हिंदू पक्ष का दावा- एक हजार साल से कटरा केशव देव की संपत्ति है जन्म स्थान - High Court News - HIGH COURT NEWS

श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद को लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई जारी है. सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष ने दावा किया कि 16वीं शताब्दी में जन्मस्थान को तोड़कर चबूतरा बनाया गया था.

श्रीकृष्ण जन्मभूमि
श्रीकृष्ण जन्मभूमि (Photo Credit: Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 15, 2024, 10:03 PM IST

प्रयागराज: मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई. मामले में सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी. कोर्ट में हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि मुकदमे की संपत्ति एक हजार साल से अधिक समय से कटरा केशव देव की है. 16वीं शताब्दी में भगवान कृष्ण के जन्मस्थान को तोड़कर ईदगाह के रूप में एक चबूतरा बनाया गया था. 1968 में किया गया कथित समझौता और अदालत का आदेश सुन्नी सेंट्रल बोर्ड और इंतज़ामिया समिति द्वारा की गई धोखाधड़ी के अलावा और कुछ नहीं है. इस प्रकार परिसीमन का प्रश्न लागू नहीं होगा. आगे कहा गया कि 12 अक्टूबर 1968 को किए गए समझौते में देवता एक पक्ष नहीं थे और न ही 1974 में पारित अदालती डिक्री में एक पक्ष थे.

हिंदू पक्ष ने कहा, कथित समझौता श्री जन्म सेवा संस्थान द्वारा किया गया था, जिसे इसमें प्रवेश करने का अधिकार नहीं था. किसी भी समझौते में संस्थान का उद्देश्य केवल रोजमर्रा की गतिविधियों का प्रबंधन करना था और उसे इस तरह का समझौता करने का कोई अधिकार नहीं था. यह तर्क दिया गया कि मुकदमा चलने योग्य है. पोषणीय न होने के संबंध में दलील का निर्णय प्रमुख साक्ष्यों के बाद ही किया जा सकता है. सीपीसी के आदेश सात नियम 11 के तहत मुस्लिम पक्ष द्वारा मुकदमे की रखरखाव पर सवाल उठाने वाला प्रार्थना पत्र खारिज किया जा सकता है.

इससे पूर्व वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वकील तसलीमा अजीज अहमदी ने कहा कि मुकदमा मियाद अधिनियम से वर्जित है. उनके अनुसार पक्षकारों ने 12 अक्टूबर 1968 को समझौता किया था और कहा था कि 1974 में तय किए गए एक सिविल मुकदमे में समझौते की पुष्टि की गई है. समझौते को चुनौती देने की सीमा तीन साल है लेकिन मुकदमा 2020 में दायर किया गया है. इस प्रकार वर्तमान मुकदमा मियाद अधिनियम से वर्जित है. उन्होंने आगे कहा कि शाही ईदगाह की संरचना को हटाने के बाद कब्जे के साथ मंदिर की बहाली और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर किया गया है. मुकदमे की प्रार्थना से पता चलता है कि ईदगाह की संरचना वहां मौजूद है और प्रबंधन समिति का उस पर कब्जा है.

इसे भी पढ़ें-SC ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले की सुनवाई अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी

प्रयागराज: मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई. मामले में सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी. कोर्ट में हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि मुकदमे की संपत्ति एक हजार साल से अधिक समय से कटरा केशव देव की है. 16वीं शताब्दी में भगवान कृष्ण के जन्मस्थान को तोड़कर ईदगाह के रूप में एक चबूतरा बनाया गया था. 1968 में किया गया कथित समझौता और अदालत का आदेश सुन्नी सेंट्रल बोर्ड और इंतज़ामिया समिति द्वारा की गई धोखाधड़ी के अलावा और कुछ नहीं है. इस प्रकार परिसीमन का प्रश्न लागू नहीं होगा. आगे कहा गया कि 12 अक्टूबर 1968 को किए गए समझौते में देवता एक पक्ष नहीं थे और न ही 1974 में पारित अदालती डिक्री में एक पक्ष थे.

हिंदू पक्ष ने कहा, कथित समझौता श्री जन्म सेवा संस्थान द्वारा किया गया था, जिसे इसमें प्रवेश करने का अधिकार नहीं था. किसी भी समझौते में संस्थान का उद्देश्य केवल रोजमर्रा की गतिविधियों का प्रबंधन करना था और उसे इस तरह का समझौता करने का कोई अधिकार नहीं था. यह तर्क दिया गया कि मुकदमा चलने योग्य है. पोषणीय न होने के संबंध में दलील का निर्णय प्रमुख साक्ष्यों के बाद ही किया जा सकता है. सीपीसी के आदेश सात नियम 11 के तहत मुस्लिम पक्ष द्वारा मुकदमे की रखरखाव पर सवाल उठाने वाला प्रार्थना पत्र खारिज किया जा सकता है.

इससे पूर्व वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वकील तसलीमा अजीज अहमदी ने कहा कि मुकदमा मियाद अधिनियम से वर्जित है. उनके अनुसार पक्षकारों ने 12 अक्टूबर 1968 को समझौता किया था और कहा था कि 1974 में तय किए गए एक सिविल मुकदमे में समझौते की पुष्टि की गई है. समझौते को चुनौती देने की सीमा तीन साल है लेकिन मुकदमा 2020 में दायर किया गया है. इस प्रकार वर्तमान मुकदमा मियाद अधिनियम से वर्जित है. उन्होंने आगे कहा कि शाही ईदगाह की संरचना को हटाने के बाद कब्जे के साथ मंदिर की बहाली और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर किया गया है. मुकदमे की प्रार्थना से पता चलता है कि ईदगाह की संरचना वहां मौजूद है और प्रबंधन समिति का उस पर कब्जा है.

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