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हाईकोर्ट ने संजीवनी मामले में दायर याचिका पर की सुनवाई, अगली सुनवाई पर होगी याचिका पर बहस

बहुचर्चित संजीवनी क्रेडिट कॉ-ऑपरेटिव सोसायटी के मामले में दायर याचिका की अगली सुनवाई पर बहस होगी. अगली सुनवाई 26 फरवरी है.

Rajasthan High Court
राजस्थान हाईकोर्ट
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 16, 2024, 10:42 PM IST

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट में बहुचर्चित संजीवनी क्रेडिट कॉ-ऑपरेटिव सोसायटी के मुख्य आरोपी विक्रमसिंह की ओर से आपराधिक याचिका पेश की गई है. जस्टिस कुलदीप माथुर की एकलपीठ में याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल जोशी ने याचिकाकर्ता के विरूद्ध करीब 153 मुकदमों की सूची पेश की है. जिसमें कुछ मुकदमों में चालान पेश हो गया है. कुछ में ट्रायल चल रहा है. सुनवाई के दौरान जोधपुर पुलिस कमिश्नर राजेन्द्रसिंह व एडिशनल एसपी, डिप्टी एसपी व सीआई स्तर के प्रदेश के अलग-अलग जिले से 17 अधिकारी मौजूद रहे.

कोर्ट ने 26 फरवरी को मामले पर बहस करने के निर्देश दिए हैं. याचिकाकर्ता विक्रमसिंह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता धीरेन्द्रसिंह दासपा व उनकी सहयोगी अधिवक्ता प्रियंका बोराणा ने कोर्ट में याचिका पेश कर बताया कि याचिकाकर्ता के विरूद्ध बड्रर्स एक्ट एवं आईपीसी की धाराओं में कई मामले दर्ज हैं. सभी मामलों को एक साथ क्लब किया जाए एवं पूर्व में बड्रर्स एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर में कुछ अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी पर स्थगन आदेश पारित कर रखा है. कुछ की गिरफ्तारी पर रोक है. ऐसे में याचिकाकर्ता को करीब साढ़े चार साल से जेल में बंद कर रखा है.

पढ़ें: संजीवनी क्रेडिट कॉ-ऑपरेटिव सोसायटी घोटाला, हाईकोर्ट में नहीं हुई सुनवाई, 11 मार्च मिली अगली तारीख

याचिका में प्रार्थना की गई है कि याचिकाकर्ता के विरूद्ध सम्पूर्ण प्रक्रिया को निरस्त कर गिरफ्तारी व कस्टडी को विधि विरूद्ध घोषित कर रिहा किया जाए. याचिका में कहा गया कि एफआईआर संख्या 32 2019 में करीब साढ़े चार साल से जेल में बंद कर रखा है. बड्रर्स एक्ट मुख्य तौर से स्पेशल एक्ट है जिसकी प्रक्रिया व अनुसंधान करने का प्रावधान विधि में विशेष अनुसंधान अधिकारी व विशेष न्यायालय को दिया गया है.

पढ़ें: मानहानि केस में दिल्ली हाईकोर्ट से अशोक गहलोत को राहत, शेखावत को नोटिस जारी कर मांगा जवाब

एक्ट में प्रावधान है कि यदि कोई मुकदमा दर्ज है तो एक्ट के तहत ही अनुसंधान किया जाए. कोई भी मुकदमा बड्रर्स एक्ट व आईपीसी में दर्ज है तो उसका ट्रायल का अधिकारी भी विशेष न्यायालय को होगा. याचिकाकर्ता के विरूद्ध दोनों ही एक्ट के तहत मुकदमा होने से उसका विचारण विशेष न्यायालय में हो. याचिकाकर्ता व सह अभियुक्तगणों के खिलाफ मुकदमा है जिसमें हाईकोर्ट ने कुछ सह अभियुक्तगणों के पक्ष में गिरफ्तारी पर रोक का आदेश दे रखा है और कुछ अभियुक्त के पक्ष में चार्जशीट पर भी रोक है.

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट में बहुचर्चित संजीवनी क्रेडिट कॉ-ऑपरेटिव सोसायटी के मुख्य आरोपी विक्रमसिंह की ओर से आपराधिक याचिका पेश की गई है. जस्टिस कुलदीप माथुर की एकलपीठ में याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल जोशी ने याचिकाकर्ता के विरूद्ध करीब 153 मुकदमों की सूची पेश की है. जिसमें कुछ मुकदमों में चालान पेश हो गया है. कुछ में ट्रायल चल रहा है. सुनवाई के दौरान जोधपुर पुलिस कमिश्नर राजेन्द्रसिंह व एडिशनल एसपी, डिप्टी एसपी व सीआई स्तर के प्रदेश के अलग-अलग जिले से 17 अधिकारी मौजूद रहे.

कोर्ट ने 26 फरवरी को मामले पर बहस करने के निर्देश दिए हैं. याचिकाकर्ता विक्रमसिंह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता धीरेन्द्रसिंह दासपा व उनकी सहयोगी अधिवक्ता प्रियंका बोराणा ने कोर्ट में याचिका पेश कर बताया कि याचिकाकर्ता के विरूद्ध बड्रर्स एक्ट एवं आईपीसी की धाराओं में कई मामले दर्ज हैं. सभी मामलों को एक साथ क्लब किया जाए एवं पूर्व में बड्रर्स एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर में कुछ अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी पर स्थगन आदेश पारित कर रखा है. कुछ की गिरफ्तारी पर रोक है. ऐसे में याचिकाकर्ता को करीब साढ़े चार साल से जेल में बंद कर रखा है.

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याचिका में प्रार्थना की गई है कि याचिकाकर्ता के विरूद्ध सम्पूर्ण प्रक्रिया को निरस्त कर गिरफ्तारी व कस्टडी को विधि विरूद्ध घोषित कर रिहा किया जाए. याचिका में कहा गया कि एफआईआर संख्या 32 2019 में करीब साढ़े चार साल से जेल में बंद कर रखा है. बड्रर्स एक्ट मुख्य तौर से स्पेशल एक्ट है जिसकी प्रक्रिया व अनुसंधान करने का प्रावधान विधि में विशेष अनुसंधान अधिकारी व विशेष न्यायालय को दिया गया है.

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एक्ट में प्रावधान है कि यदि कोई मुकदमा दर्ज है तो एक्ट के तहत ही अनुसंधान किया जाए. कोई भी मुकदमा बड्रर्स एक्ट व आईपीसी में दर्ज है तो उसका ट्रायल का अधिकारी भी विशेष न्यायालय को होगा. याचिकाकर्ता के विरूद्ध दोनों ही एक्ट के तहत मुकदमा होने से उसका विचारण विशेष न्यायालय में हो. याचिकाकर्ता व सह अभियुक्तगणों के खिलाफ मुकदमा है जिसमें हाईकोर्ट ने कुछ सह अभियुक्तगणों के पक्ष में गिरफ्तारी पर रोक का आदेश दे रखा है और कुछ अभियुक्त के पक्ष में चार्जशीट पर भी रोक है.

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