प्रयागराज: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में कार्यकारिणी परिषद का गठन नहीं होने के कारण सभी फैसले कुलपति की ओर से ही लिए जा रहे हैं. इसी मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में लगी याचिका पर सोमवार को सुनवाई हुई. जिसके बाद कोर्ट ने बीएचयू और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट ने इस मामले को लेकर दाखिल याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है. विश्वविद्यालय को पांच दिसंबर तक जवाब दाखिल करना है. मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और विकास बुधवार की खंडपीठ ने अधिवक्ता हरिकेश बहादुर सिंह की जनहित याचिका पर ये आदेश दिया है.
बता दें कि याचिकाकर्ता के वकील एचएन सिंह का कहना था कि, बीएचयू रजिस्ट्रार ने शिक्षा मंत्रालय को पत्र लिखा था कि बनारस हिदू विश्वविद्यालय में कार्यकारिणी परिषद 2021 से नहीं है. इसके बावजूद शिक्षा मंत्रालय ने अभी तक परिषद का गठन नहीं किया है. कार्यकारिणी को ही विश्वविद्यालय के लिए नियम बनाने, वित्तीय और नियुक्ति सहित अन्य मामलों में फैसला लेने का अधिकार है. कोई कर्मचारी निलंबित होता है तो वह कार्यकारिणी में अपील करेगा. नियुक्तियों की स्वीकृति भी कार्यकारिणी ही करेगी. कार्यकारिणी के न होने से कुलपति ही सारे फैसले ले रहे हैं. ये नियमानुसार ठीक नहीं है.
याचिका की सुनवाई के दौरान बीएचयू के वकील ने मामले में जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा है. खंडपीठ ने बीएचयू के वकील से कहा कि वह इस मामले में विश्वविद्यालय के पक्ष से अदालत को अवगत कराए.
यााचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि कुलपति जानबूझकर कार्यकारिणी का गठन नहीं होने देना चाह रहे हैं. इसकी वजह से विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार कर गलत नियुक्तियां की जा रही हैं. जो कर्मचारी इसके खिलाफ आवाज उठाता है उस पर फर्जी कार्रवाई की जाती है. कुलपति विशेषाधिकार का गलत प्रयोग कर रहे हैं.
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