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हिमाचल सरकार को हाईकोर्ट से बड़ी राहत, नहीं देने होंगे अडानी समूह को अपफ्रंट प्रीमियम के 280 करोड़ रुपये - Adani group Upfront premium case

Adani group Upfront premium case: हाईकोर्ट की सिंगल बैंच ने हिमाचल सरकार को अडानी समूह की अडानी पावर लिमिटेड को अपफ्रंट प्रीमियम की 280 करोड़ रुपये की रकम ब्याज सहित चुकाने के आदेश दिए थे. इस आदेश को हाईकोर्ट की खंडपीठ ने पलट दिया है.

Adani group Upfront premium case
हिमाचल सरकार को हाईकोर्ट से बड़ी राहत (फाइल फोटो)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 18, 2024, 10:36 PM IST

शिमला: पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रही हिमाचल सरकार को कम से कम एक देनदारी से राहत मिल गई है. हाईकोर्ट से गुरुवार को हिमाचल सरकार के लिए एक राहत भरा फैसला आया है. करीब 960 मेगावाट की जंगी-थोपन व जंगी-पोवारी जलविद्युत परियोजना से जुड़े मामले में पूर्व में हाईकोर्ट की सिंगल बैंच ने अडानी समूह की अडानी पावर लिमिटेड को अपफ्रंट प्रीमियम की 280 करोड़ रुपये की रकम ब्याज सहित चुकाने के आदेश दिए थे.

सिंगल बैंच के इस आदेश को अब हाईकोर्ट की खंडपीठ ने पलट दिया है. अब राज्य सरकार अडानी समूह को अपफ्रंट प्रीमियम के 280 करोड़ रुपये लौटाने के लिए बाध्य नहीं होगी. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने कहा राज्य सरकार ये रकम लौटाने के लिए बाध्य नहीं है. हिमाचल के एडवोकेट जनरल अनूप रत्न ने बताया कि हाईकोर्ट से एक अहम फैसला आया है. उन्होंने बताया कि पूर्व में सिंगल बैंच ने अडानी समूह को अपफ्रंट प्रीमियम की रकम देने के लिए आदेश जारी किए थे. रत्न ने कहा कि जंगी-थोपन प्रोजेक्ट का करार ब्रेकल कंपनी के साथ हुआ था.

ब्रेकल कंपनी ने ये प्रोजेक्ट नहीं चलाया. बाद में ये पाया गया कि अडानी पावर समूह ने कहा कि उसने ब्रेकल के लिए 280 करोड़ रुपये अपफ्रंट प्रीमियम दिया है. अदालत में ये स्थापित हुआ कि प्रदेश सरकार का करार ब्रेकल के साथ था न कि अडानी समूह के साथ. डिविजन बैंच के फैसले में कहा गया है कि अडानी पावर समूह को पता था कि ये एक बैक डोर एंट्री थी, लिहाजा अडानी समूह 280 करोड़ रुपये प्रीमियम देने के लिए सरकार बाध्य नहीं है.

अदालत ने कहा कि ब्रेकल को पता था कि वो एक ऐसी कंपनी के माध्यम से इन्वेस्ट कर रहे हैं, जिसका अपना अस्तित्व नहीं है. अदालत ने कहा कि प्रदेश सरकार ने अडानी समूह को कभी कंसोर्टियम का मेंबर बनने के लिए नहीं कहा था. अदालत ने ये भी कहा कि अपफ्रंट प्रीमियम की 280 करोड़ रुपये की रकम की मांग ब्रेकल कंपनी कर सकती थी, लेकिन उसने भी गलत तथ्य व सूचनाएं देकर प्रोजेक्ट हासिल करने का प्रयास किया था. प्रोजेक्ट की टर्म व कंडीशन के अनुसार ब्रेकल कंपनी भी प्रीमियम की रकम की हकदार नहीं है.

क्या है पूरा मामला

हिमाचल प्रदेश में जनजातीय जिला किन्नौर में अक्टूबर 2005 में जंगी-थोपन-पोवारी प्रोजेक्ट पर पहला पड़ाव पूरा हुआ था. तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने इस परियोजना का टेंडर जारी किया था फिर 2005 में ही विदेशी कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन ने इस प्रोजेक्ट में सबसे अधिक बोली लगाई और प्रीमियम के तौर पर 280.06 करोड़ रुपये जमा किए. ऊर्जा सेक्टर के कुछ तकनीकी कारणों से राज्य सरकार ने फिर से बोली लगाने का फैसला किया तब ब्रेकल कंपनी ने हिमाचल सरकार से पत्राचार किया और अगस्त 2013 को अडानी समूह के कंसोर्टियम पार्टनर के तौर पर 280 करोड़ रुपये की रकम को अप-टू-डेट ब्याज के साथ वापस करने के लिए आग्रह किया.

मामला हाईकोर्ट में पहुंचा और पूर्व की कांग्रेस सरकार ने पहले तो अक्टूबर 2017 में अडानी ग्रुप को 280 करोड़ रुपये की रकम लौटाने का फैसला किया लेकिन बाद में इससे पीछे हट गई. हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन से पहले 5 दिसंबर 2017 को वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अडानी समूह को 280 करोड़ रुपये वापस करने से जुड़ा फैसला विदड्रा कर लिया.

अपफ्रंट मनी वो पैसा होता है जो कंपनी प्रति मेगावाट की तय दर से सरकार को देती है. वैसे तो ये पैसा नॉन रिफंडेबल होता है, लेकिन सरकार किन्हीं कारणों से इस पैसे को वापस भी कर सकती है. ऊर्जा प्रोजेक्ट लगाने पर सरकार को कंपनियों द्वारा मिलने वाली प्रीमियम मनी ही कमाई का साधन है. इस प्रोजेक्ट को लेकर कई खेल हुए.

कांग्रेस सरकार ने साल 2005 में इसे ब्रेकल को दिया. साल 2008 में भाजपा सत्ता में आई और पहले तो उसने इस प्रोजेक्ट के आवंटन को रोक दिया, लेकिन बाद में इसे बहाल कर दिया था. वहीं, रिलायंस समूह भी इस प्रोजेक्ट को लेकर इंट्रस्टेड था. यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था.

उल्लेखनीय है कि पूर्व में ब्रेकल कंपनी ने अपफ्रंट प्रीमियम के तौर पर 280 करोड़ रुपये जमा करवाए थे. परियोजना से संबंधित शर्तों को पूरा न करने पर राज्य सरकार ने ये अपफ्रंट मनी जब्त कर ली थी. तब ब्रेकल कॉरपोरेशन ने पत्र के माध्यम से राज्य सरकार को सूचित किया था कि यह पैसा अडानी उद्योग समूह ने लगाया थाय वहीं, हिमाचल सरकार के साथ परियोजना से संबंधित दस्तावेजों में कहीं भी अडानी समूह का नाम नहीं था. हिमाचल में वीरभद्र सिंह सरकार के दौरान इस प्रोजेक्ट को लेकर कैबिनेट में यह फैसला हो गया था कि अडानी समूह के पैसे लौटा दिए जाएंगे.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में 5 हजार करोड़ की आर्थिकी पर संकट, इस बीमारी की चपेट में आए सेब के बगीचे

शिमला: पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रही हिमाचल सरकार को कम से कम एक देनदारी से राहत मिल गई है. हाईकोर्ट से गुरुवार को हिमाचल सरकार के लिए एक राहत भरा फैसला आया है. करीब 960 मेगावाट की जंगी-थोपन व जंगी-पोवारी जलविद्युत परियोजना से जुड़े मामले में पूर्व में हाईकोर्ट की सिंगल बैंच ने अडानी समूह की अडानी पावर लिमिटेड को अपफ्रंट प्रीमियम की 280 करोड़ रुपये की रकम ब्याज सहित चुकाने के आदेश दिए थे.

सिंगल बैंच के इस आदेश को अब हाईकोर्ट की खंडपीठ ने पलट दिया है. अब राज्य सरकार अडानी समूह को अपफ्रंट प्रीमियम के 280 करोड़ रुपये लौटाने के लिए बाध्य नहीं होगी. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने कहा राज्य सरकार ये रकम लौटाने के लिए बाध्य नहीं है. हिमाचल के एडवोकेट जनरल अनूप रत्न ने बताया कि हाईकोर्ट से एक अहम फैसला आया है. उन्होंने बताया कि पूर्व में सिंगल बैंच ने अडानी समूह को अपफ्रंट प्रीमियम की रकम देने के लिए आदेश जारी किए थे. रत्न ने कहा कि जंगी-थोपन प्रोजेक्ट का करार ब्रेकल कंपनी के साथ हुआ था.

ब्रेकल कंपनी ने ये प्रोजेक्ट नहीं चलाया. बाद में ये पाया गया कि अडानी पावर समूह ने कहा कि उसने ब्रेकल के लिए 280 करोड़ रुपये अपफ्रंट प्रीमियम दिया है. अदालत में ये स्थापित हुआ कि प्रदेश सरकार का करार ब्रेकल के साथ था न कि अडानी समूह के साथ. डिविजन बैंच के फैसले में कहा गया है कि अडानी पावर समूह को पता था कि ये एक बैक डोर एंट्री थी, लिहाजा अडानी समूह 280 करोड़ रुपये प्रीमियम देने के लिए सरकार बाध्य नहीं है.

अदालत ने कहा कि ब्रेकल को पता था कि वो एक ऐसी कंपनी के माध्यम से इन्वेस्ट कर रहे हैं, जिसका अपना अस्तित्व नहीं है. अदालत ने कहा कि प्रदेश सरकार ने अडानी समूह को कभी कंसोर्टियम का मेंबर बनने के लिए नहीं कहा था. अदालत ने ये भी कहा कि अपफ्रंट प्रीमियम की 280 करोड़ रुपये की रकम की मांग ब्रेकल कंपनी कर सकती थी, लेकिन उसने भी गलत तथ्य व सूचनाएं देकर प्रोजेक्ट हासिल करने का प्रयास किया था. प्रोजेक्ट की टर्म व कंडीशन के अनुसार ब्रेकल कंपनी भी प्रीमियम की रकम की हकदार नहीं है.

क्या है पूरा मामला

हिमाचल प्रदेश में जनजातीय जिला किन्नौर में अक्टूबर 2005 में जंगी-थोपन-पोवारी प्रोजेक्ट पर पहला पड़ाव पूरा हुआ था. तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने इस परियोजना का टेंडर जारी किया था फिर 2005 में ही विदेशी कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन ने इस प्रोजेक्ट में सबसे अधिक बोली लगाई और प्रीमियम के तौर पर 280.06 करोड़ रुपये जमा किए. ऊर्जा सेक्टर के कुछ तकनीकी कारणों से राज्य सरकार ने फिर से बोली लगाने का फैसला किया तब ब्रेकल कंपनी ने हिमाचल सरकार से पत्राचार किया और अगस्त 2013 को अडानी समूह के कंसोर्टियम पार्टनर के तौर पर 280 करोड़ रुपये की रकम को अप-टू-डेट ब्याज के साथ वापस करने के लिए आग्रह किया.

मामला हाईकोर्ट में पहुंचा और पूर्व की कांग्रेस सरकार ने पहले तो अक्टूबर 2017 में अडानी ग्रुप को 280 करोड़ रुपये की रकम लौटाने का फैसला किया लेकिन बाद में इससे पीछे हट गई. हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन से पहले 5 दिसंबर 2017 को वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अडानी समूह को 280 करोड़ रुपये वापस करने से जुड़ा फैसला विदड्रा कर लिया.

अपफ्रंट मनी वो पैसा होता है जो कंपनी प्रति मेगावाट की तय दर से सरकार को देती है. वैसे तो ये पैसा नॉन रिफंडेबल होता है, लेकिन सरकार किन्हीं कारणों से इस पैसे को वापस भी कर सकती है. ऊर्जा प्रोजेक्ट लगाने पर सरकार को कंपनियों द्वारा मिलने वाली प्रीमियम मनी ही कमाई का साधन है. इस प्रोजेक्ट को लेकर कई खेल हुए.

कांग्रेस सरकार ने साल 2005 में इसे ब्रेकल को दिया. साल 2008 में भाजपा सत्ता में आई और पहले तो उसने इस प्रोजेक्ट के आवंटन को रोक दिया, लेकिन बाद में इसे बहाल कर दिया था. वहीं, रिलायंस समूह भी इस प्रोजेक्ट को लेकर इंट्रस्टेड था. यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था.

उल्लेखनीय है कि पूर्व में ब्रेकल कंपनी ने अपफ्रंट प्रीमियम के तौर पर 280 करोड़ रुपये जमा करवाए थे. परियोजना से संबंधित शर्तों को पूरा न करने पर राज्य सरकार ने ये अपफ्रंट मनी जब्त कर ली थी. तब ब्रेकल कॉरपोरेशन ने पत्र के माध्यम से राज्य सरकार को सूचित किया था कि यह पैसा अडानी उद्योग समूह ने लगाया थाय वहीं, हिमाचल सरकार के साथ परियोजना से संबंधित दस्तावेजों में कहीं भी अडानी समूह का नाम नहीं था. हिमाचल में वीरभद्र सिंह सरकार के दौरान इस प्रोजेक्ट को लेकर कैबिनेट में यह फैसला हो गया था कि अडानी समूह के पैसे लौटा दिए जाएंगे.

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