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बाल सुधार गृह के अधीक्षक ने की थी बच्चों की पिटाई, HC ने खारिज की बर्खास्तगी के खिलाफ दाखिल याचिका - Beaten case in juvenile home - BEATEN CASE IN JUVENILE HOME

Beaten case in juvenile home: शिमला के हीरानगर स्थित बाल सुधार गृह के अधीक्षक कौशल गुलेरिया की तरफ से अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ दायर याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है.

Shimla High court
शिमला हाईकोर्ट (ETV Bharat File photo)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jun 11, 2024, 10:32 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शिमला के हीरानगर स्थित बाल सुधार गृह के अधीक्षक कौशल गुलेरिया की तरफ से अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने याचिका को खारिज करते हुए प्रार्थी को अपनी शिकायत के निवारण के लिए उपयुक्त अदालत के समक्ष जाने की स्वतंत्रता प्रदान की.

प्रार्थी कौशल गुलेरिया को आवासीय बच्चों की पिटाई एवं अन्य दुर्व्यवहार के आरोपों के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि प्रार्थी को एजेंसी सिक्योर गार्ड सिक्योरिटी एंड मैनपावर द्वारा बर्खास्त किया गया है और उसे नियुक्ति भी निजी संस्थानों द्वारा प्रदान की गई थी. इन तथ्यों के दृष्टिगत कोर्ट ने याचिका को रिट आदेश जारी करने योग्य न पाते हुए खारिज कर दिया.

उल्लेखनीय है कि एक निजी संस्था ने बाल सुधार गृह में बच्चों के मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन पर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखा था. उस पत्र को अदालत ने आपराधिक जनहित याचिका मानकर 17 मई को सरकार को नोटिस जारी किए थे.

हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव सहित महिला एवं बाल विकास विभाग के निदेशक विभाग की जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ), सुधार गृह के पूर्व अधीक्षक कौशल गुलेरिया, कुक और किचन हेल्पर को नोटिस जारी कर 24 जून तक जवाब मांगा है. महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित बाल सुधार गृह में आपराधिक मामलों में विचाराधीन एवं सजा प्राप्त बच्चों को रखा जाता है. इसका उद्देश्य अपराधों में लिप्त बच्चों को सुधरने का अवसर देकर एक अच्छा नागरिक बनाना है, लेकिन इसके विपरीत यहां बच्चों के साथ बुरी तरह मारपीट के अलावा मानसिक प्रताड़ना दी जाती है.

इससे बचने के लिए बच्चे कई बार सुधार गृह से भाग चुके हैं. विभाग इसकी निष्पक्ष जांच नहीं करता है और पकड़े जाने के बाद बच्चों की यातनाएं और बढ़ा दी जाती हैं. आरोप है कि पीड़ित बच्चे महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों को समय-समय पर मौखिक और लिखित शिकायतें करते रहे हैं, लेकिन दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की बजाय अधिकारी व विभाग को कथित बदनामी से बचाने के नाम पर इन मामलों को दबा देते हैं.

ये भी पढ़ें: टांडा मेडिकल कॉलेज में फिर प्रशिक्षु डॉक्टरों की रैगिंग, चार सीनियर छात्रों को किया गया निष्कासित

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शिमला के हीरानगर स्थित बाल सुधार गृह के अधीक्षक कौशल गुलेरिया की तरफ से अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने याचिका को खारिज करते हुए प्रार्थी को अपनी शिकायत के निवारण के लिए उपयुक्त अदालत के समक्ष जाने की स्वतंत्रता प्रदान की.

प्रार्थी कौशल गुलेरिया को आवासीय बच्चों की पिटाई एवं अन्य दुर्व्यवहार के आरोपों के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि प्रार्थी को एजेंसी सिक्योर गार्ड सिक्योरिटी एंड मैनपावर द्वारा बर्खास्त किया गया है और उसे नियुक्ति भी निजी संस्थानों द्वारा प्रदान की गई थी. इन तथ्यों के दृष्टिगत कोर्ट ने याचिका को रिट आदेश जारी करने योग्य न पाते हुए खारिज कर दिया.

उल्लेखनीय है कि एक निजी संस्था ने बाल सुधार गृह में बच्चों के मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन पर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखा था. उस पत्र को अदालत ने आपराधिक जनहित याचिका मानकर 17 मई को सरकार को नोटिस जारी किए थे.

हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव सहित महिला एवं बाल विकास विभाग के निदेशक विभाग की जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ), सुधार गृह के पूर्व अधीक्षक कौशल गुलेरिया, कुक और किचन हेल्पर को नोटिस जारी कर 24 जून तक जवाब मांगा है. महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित बाल सुधार गृह में आपराधिक मामलों में विचाराधीन एवं सजा प्राप्त बच्चों को रखा जाता है. इसका उद्देश्य अपराधों में लिप्त बच्चों को सुधरने का अवसर देकर एक अच्छा नागरिक बनाना है, लेकिन इसके विपरीत यहां बच्चों के साथ बुरी तरह मारपीट के अलावा मानसिक प्रताड़ना दी जाती है.

इससे बचने के लिए बच्चे कई बार सुधार गृह से भाग चुके हैं. विभाग इसकी निष्पक्ष जांच नहीं करता है और पकड़े जाने के बाद बच्चों की यातनाएं और बढ़ा दी जाती हैं. आरोप है कि पीड़ित बच्चे महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों को समय-समय पर मौखिक और लिखित शिकायतें करते रहे हैं, लेकिन दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की बजाय अधिकारी व विभाग को कथित बदनामी से बचाने के नाम पर इन मामलों को दबा देते हैं.

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