नई दिल्ली/हल्द्वानी: उत्तराखंड वासियों के लिए खुशखबरी है. पहाड़ की 7 साल की बेटी हर्षिका रिखाड़ी ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लाजपत भवन ऑडिटोरियम में ऋषिकुल योगपीठ द्वारा आयोजित राष्ट्रीय योग महाशिखर सम्मेलन में प्रतिभाग किया. इसमें भारत के विभिन्न राज्यों से आए योग गुरुओं, प्राकृतिक चिकित्सक, एवं सभी प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया.
हर्षिका रिखाड़ी को मिला योग रत्न विशेष सम्मान: अभी तक योग में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए हल्द्वानी के देवलचौड़ बंदोबस्ती की रहने वाली 7 साल की नन्हीं हर्षिका रिखाड़ी को योग रत्न के विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया. खास बात ये रही कि हर्षिका रिखाड़ी के साथ-साथ वहां उनसे पिता भुवन रिखाड़ी भी योग रत्न से सम्मानित हुए. हर्षिका रिखाड़ी ने वहां आर्टिस्टिक योग प्रस्तुति में शानदार प्रदर्शन कर सबका दिल जीत लिया. हर्षिका की मां मोनिका रिखाड़ी और पिता भुवन रिखाड़ी हर्षिका की इस उपलब्धि से बहुत खुश हैं. उन्होंने बेटी को उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं भी दीं.
7 साल की उम्र में 20 से ज्यादा मेडल जीत चुकी हर्षिका: इससे पूर्व हर्षिका जिला स्तरीय, राज्य स्तरीय, राष्ट्रीय स्तरीय योग प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग कर चुकी हैं. उन्होंने मात्र 7 साल की उम्र में 20 से अधिक मेडल जीते हैं. इनमें 8 तो गोल्ड मेडल हैं. हर्षिका रिखाड़ी के पिता भुवन रिखाड़ी बेटी की इस उपलब्धि का पूरा श्रेय उनके कोच नीरज धपोला को देते हैं, जो इतनी मेहनत और लगन से हर्षिका को योग और जिम्नास्टिक कराते हैं.
15 अगस्त को सम्मानित हुई थी हर्षिका: इसी साल 15 अगस्त को मुख्यमंत्री कैम्प कार्यालय चंपावत के नोडल अधिकारी/उत्तराखंड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड निर्माण खंड हल्द्वानी के उप महाप्रबंधक (तकनीकी) केदार सिंह बृजवाल ने हर्षिका रिखाड़ी को उत्कृष्ट योग प्रस्तुति के लिए विशेष सम्मान से नवाजा था.
नैनीताल जिले के हल्द्वानी के देवलचौड़ बंदोबस्ती में रहने वाली 7 साल की हर्षिका रिखाड़ी योग के कठिन से कठिन आसन आसानी से कर लेती हैं. उनको योग करते देख लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं. हर्षिका योग के साथ ही जिम्नास्टिक में भी अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं.
फयाटनोला के दुर्गेटिलि की रहने वाली हैं हर्षिका रिखाड़ी: हर्षिका का पैतृक गांव अल्मोड़ा जिले के फयाटनोला के पास स्थित दुर्गेटिलि है. कनाड़ी गदेरे के ऊपर बना हर्षिका का बड़ा सा आलीशान घर जंगल के बीच में स्थित है. वहां खेती में बंदरों और जंगली जानवरों से परेशान होकर परिजन शहर की ओर आ गए. लेकिन हर्षिका और उसके माता-पिता अपने गांव के घर को नहीं भूल पाते हैं. जब भी उन्हें मौका मिलता है, वो बेटी को लेकर अपने पैतृक घर अवश्य जाते हैं.
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