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यूनिवर्सिटी कैंपस में गांव वाली फीलिंग, मिट्टी का घर, चूल्हे की रोटी और कुएं के पानी का मिलेगा आनंद - GWALIOR UNIVERSITY DEVELOP VILLAGE

ग्वालियर स्थित राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वाविद्यालय कैंपस में एक गांव का स्वरूप विकसित किया जा रहा है, जो वास्तिवक गांव का अनुभव देगा.

GWALIOR UNIVERSITY DEVELOP VILLAGE
यूनिवर्सिटी कैंपस में गांव वाली फीलिंग (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 19, 2025, 9:28 PM IST

Updated : Feb 20, 2025, 2:45 PM IST

ग्वालियर: मिट्टी की सौंधी खुशबू, तालाब का किनारा, हरे-भरे पेड़ों का बाग और माटी के घर और उसमें एक आंगन. ये सब आपको गांव की याद दिलाते हैं. लेकिन आधुनिकता की इस दौड़ में वर्तमान पीढ़ी इन सब से दूर होती जा रहा है. शहरों में रहने वाली नई पीढ़ी के एक वर्ग ने, तो गांव देखा तक नहीं है, लेकिन भारत की संस्कृति, भाव और प्रकृति के खजाने से भरपूर गांव की एक झलक जल्द ही मध्य प्रदेश के ग्वालियर में देखने को मिलेगी. दरअसल, ग्वालियर स्थित राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय अपने परिसर में एक छोटा गांव विकसित कर रहा है. जहां गांव से जुड़ी हर चीज देखने और अनुभव करने को मिलेगी.

गांव के माहौल से रू-ब-रू कराने के लिए पहल

शहर के लोगों को गांव का माहौल और वहां की प्राकृतिक सुंदरता से रू-ब-रू कराने के साथ-साथ शोध और इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिहाज से ग्वालियर के राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ने यह पहल की है. यूनिवर्सिटी की लगभग 8 हेक्टेयर जमीन पर इस गांव को विकसित किया जा रहा है. जहां खेत तैयार किए गए हैं, जिनमें मौसमी फसलें उगायी जायेंगी. 2 मिट्टी के कच्चे घर बनाये जा रहे हैं. 2 तालाब भी तैयार किए गए हैं. जिन्हें जल संचयन और फसल लगाने के लिए उपयोग किया जाएगा.

गांव के माहौल से रूबरू कराने के लिए पहल (ETV Bharat)

आधुनिकता के दौर में प्रकृति और गांव की झलक

कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर अरविंद कुमार शुक्ला कहते हैं, "खेती-बाड़ी गांव में होती है. ग्रामीण क्षेत्र के लोग तो इससे भली भांति परिचित हैं, लेकिन जो लोग शहरों से आते हैं उन्हें गांव को उतना करीब से जानने समझने का मौका नहीं मिलता. ऐसे लोग या ऐसे छात्र विश्वविद्यालय के इस मॉडल से जान सकेंगे कि गांव में खेती कैसे होती है. गांव कैसे होते हैं. पुराने समय में कच्चे घर कैसे हुआ करते थे. मुख्य रूप से हमारे पूर्वज गांव के माहौल में कैसे रहा करते थे. विश्वविद्यालय यह सब दिखाना चाहता है. क्योंकि यह हमारे इकोसिस्टम से संबंधित है."

GWALIOR AGRICULTURE UNIVERSITY
गांव से गायब हुए मचान भी दिखेंगे (ETV Bharat)

गांव से गायब हुए मचान भी दिखेंगे

इस मॉडल में खास आकर्षण ट्री हाउस या मचान भी है. जिसके बारे में कुलगुरु ने बताया कि "मचान गांव में सुरक्षा तंत्र का अहम हिस्सा होता है, जिसपर दूर से ही किसी भी गतिविधि को देखा जा सकता है, लेकिन समय के साथ-साथ लोग इसके बारे में भूल चुके हैं. इसलिए यहां एक मचान भी बनाई जा रही है, जिस पर यूनिवर्सिटी का गार्ड भी बैठेगा और ईकोटूरिज्म के तहत आने वाले सैलानी भी देख सकेंगे. इस कैंपस को नए तरीके से डेवलप किया जा रहा है, जो एक ऑक्सीजन रिच जोन बनेगा. यह 40 बीघा जमीन पर तैयार किया जा रहा है जो करीब डेढ़ किलोमीटर के दायरे में होगा."

Gwalior University made village
आधुनिकता के दौर में प्रकृति और गांव की झलक (ETV Bharat)

मिट्टी के घर में रहेंगे, चूल्हे की रोटी का लेंगे स्वाद

विश्वविद्यालय द्वारा बनाया जा रहा यह गांव कई मायनों में फायदेमंद होगा. एक तो यहां ग्रामीण परिवेश की झलक दिखेगी तो वहीं, यहां आने वाले छात्रों को गांव पर शोध करने में भी आसानी होगी. इसके अलावा इस गांव में बनाए जा रहे मिट्टी के घरों में लोग रुक सकेंगे, चूल्हे पर बने भोजन का स्वाद ले सकेंगे, उन्हें कुएं का शुद्ध पानी मिलेगा. साथ ही तालाब के किनारे बैठकर शांति का अनुभव भी कर सकेंगे.

University village Experience
गांव में बनाया जा रहा है (ETV Bharat)

गांव में मिलने वाला दूध भी यहां उपलब्ध होगा, क्योंकि फसलों के साथ-साथ यहां गांव की तरह पशुपालन की भी व्यवस्था की जाएगी. यह गांव अभी डेवलपमेंट स्टेज में है, जो लगभग 6 महीने में बनकर पूरी तरह तैयार हो जाएगा. इसके बाद इसे शोधार्थी विद्यार्थियों और इको टूरिज्म के लिए खोल दिया जाएगा.

ग्वालियर: मिट्टी की सौंधी खुशबू, तालाब का किनारा, हरे-भरे पेड़ों का बाग और माटी के घर और उसमें एक आंगन. ये सब आपको गांव की याद दिलाते हैं. लेकिन आधुनिकता की इस दौड़ में वर्तमान पीढ़ी इन सब से दूर होती जा रहा है. शहरों में रहने वाली नई पीढ़ी के एक वर्ग ने, तो गांव देखा तक नहीं है, लेकिन भारत की संस्कृति, भाव और प्रकृति के खजाने से भरपूर गांव की एक झलक जल्द ही मध्य प्रदेश के ग्वालियर में देखने को मिलेगी. दरअसल, ग्वालियर स्थित राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय अपने परिसर में एक छोटा गांव विकसित कर रहा है. जहां गांव से जुड़ी हर चीज देखने और अनुभव करने को मिलेगी.

गांव के माहौल से रू-ब-रू कराने के लिए पहल

शहर के लोगों को गांव का माहौल और वहां की प्राकृतिक सुंदरता से रू-ब-रू कराने के साथ-साथ शोध और इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिहाज से ग्वालियर के राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ने यह पहल की है. यूनिवर्सिटी की लगभग 8 हेक्टेयर जमीन पर इस गांव को विकसित किया जा रहा है. जहां खेत तैयार किए गए हैं, जिनमें मौसमी फसलें उगायी जायेंगी. 2 मिट्टी के कच्चे घर बनाये जा रहे हैं. 2 तालाब भी तैयार किए गए हैं. जिन्हें जल संचयन और फसल लगाने के लिए उपयोग किया जाएगा.

गांव के माहौल से रूबरू कराने के लिए पहल (ETV Bharat)

आधुनिकता के दौर में प्रकृति और गांव की झलक

कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर अरविंद कुमार शुक्ला कहते हैं, "खेती-बाड़ी गांव में होती है. ग्रामीण क्षेत्र के लोग तो इससे भली भांति परिचित हैं, लेकिन जो लोग शहरों से आते हैं उन्हें गांव को उतना करीब से जानने समझने का मौका नहीं मिलता. ऐसे लोग या ऐसे छात्र विश्वविद्यालय के इस मॉडल से जान सकेंगे कि गांव में खेती कैसे होती है. गांव कैसे होते हैं. पुराने समय में कच्चे घर कैसे हुआ करते थे. मुख्य रूप से हमारे पूर्वज गांव के माहौल में कैसे रहा करते थे. विश्वविद्यालय यह सब दिखाना चाहता है. क्योंकि यह हमारे इकोसिस्टम से संबंधित है."

GWALIOR AGRICULTURE UNIVERSITY
गांव से गायब हुए मचान भी दिखेंगे (ETV Bharat)

गांव से गायब हुए मचान भी दिखेंगे

इस मॉडल में खास आकर्षण ट्री हाउस या मचान भी है. जिसके बारे में कुलगुरु ने बताया कि "मचान गांव में सुरक्षा तंत्र का अहम हिस्सा होता है, जिसपर दूर से ही किसी भी गतिविधि को देखा जा सकता है, लेकिन समय के साथ-साथ लोग इसके बारे में भूल चुके हैं. इसलिए यहां एक मचान भी बनाई जा रही है, जिस पर यूनिवर्सिटी का गार्ड भी बैठेगा और ईकोटूरिज्म के तहत आने वाले सैलानी भी देख सकेंगे. इस कैंपस को नए तरीके से डेवलप किया जा रहा है, जो एक ऑक्सीजन रिच जोन बनेगा. यह 40 बीघा जमीन पर तैयार किया जा रहा है जो करीब डेढ़ किलोमीटर के दायरे में होगा."

Gwalior University made village
आधुनिकता के दौर में प्रकृति और गांव की झलक (ETV Bharat)

मिट्टी के घर में रहेंगे, चूल्हे की रोटी का लेंगे स्वाद

विश्वविद्यालय द्वारा बनाया जा रहा यह गांव कई मायनों में फायदेमंद होगा. एक तो यहां ग्रामीण परिवेश की झलक दिखेगी तो वहीं, यहां आने वाले छात्रों को गांव पर शोध करने में भी आसानी होगी. इसके अलावा इस गांव में बनाए जा रहे मिट्टी के घरों में लोग रुक सकेंगे, चूल्हे पर बने भोजन का स्वाद ले सकेंगे, उन्हें कुएं का शुद्ध पानी मिलेगा. साथ ही तालाब के किनारे बैठकर शांति का अनुभव भी कर सकेंगे.

University village Experience
गांव में बनाया जा रहा है (ETV Bharat)

गांव में मिलने वाला दूध भी यहां उपलब्ध होगा, क्योंकि फसलों के साथ-साथ यहां गांव की तरह पशुपालन की भी व्यवस्था की जाएगी. यह गांव अभी डेवलपमेंट स्टेज में है, जो लगभग 6 महीने में बनकर पूरी तरह तैयार हो जाएगा. इसके बाद इसे शोधार्थी विद्यार्थियों और इको टूरिज्म के लिए खोल दिया जाएगा.

Last Updated : Feb 20, 2025, 2:45 PM IST
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