ग्वालियर (पीयूष श्रीवास्तव) : शहर के फूलबाग के पास मार्कंडेश्वर मंदिर स्थित है. इस मंदिर में भोलेनाथ के साथ मृत्यु के देवता यमराज विराजमान हैं. जिनकी पूजा अर्चना करने अंचल के कोने कोने से लोग पहुंचते हैं. कहा जाता है कि मृत्यु से मुक्ति के बीच सफर में होने वाले कष्टों को कम करना है, तो यहां यम की पूजा करनी चाहिए. शहर के बीच स्थित 350 वर्षों से अधिक पुराना मार्कंडेश्वर मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. यहां नरक चौदस और मकर संक्रांति के दिन लोग विशेष रूप से यमराज के दर्शन के लिए पहुंचते हैं.
शिव भक्त मार्कंडेय के आगे हार गए थे यमराज
मंदिर के पुजारी पंडित मनोज भार्गव का परिवार 6 पीढ़ियों से यहां सेवा कर रहा है. इस मंदिर का इतिहास बताते हुए पंडित मनोज भार्गव कहते हैं कि "मार्कंडेय ऋषि भोलेनाथ के भक्त थे. जब मार्कंडेय ऋषि को लेने यमराज आए और उनसे साथ में चलने को कहा तो मार्कंडेय ऋषि ने शिवलिंग को जकड़ लिया और उस पर अपना सिर पटकने लगे. उनकी भक्ति से खुश होकर भोलेनथा ने उन्हें दर्शन दिए और सप्तयुग के जीवन का वरदान दिया.
जिसकी वजह से यमराज को वहां से खाली हाथ लौटना पड़ा. इसके बाद वहां स्थित शिवलिंग का नाम उनके नाम पर पड़ गया और लोग इस शिवलिंग को मार्कण्डेश्वर महादेव के नाम से जानने लगे. बता दें कि जब सिंधिया राजवंश यहां आया उस समय एक संताजी राव तेमक थे, उनको कोई संतान नहीं थी. किसी ने उन्हें बताया कि शिवलिंग के पास अगर यमराज की प्रतिमा की स्थापना करायेंगे तो उन्हें संतान प्राप्ति होगी."
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संतान की मन्नत पूरी हुई तो बनवाया मंदिर
संताजी राव ने संकल्प किया कि जब उन्हें संतान प्राप्ति होगी, तो वे यहां मंदिर बनवाकर यमराज की स्थापना कराएंगे. कुछ समय बाद उनके घर में संतान ने जन्म लिया, तो मंदिर के लिए संताजी राव ने सिंधिया राजवंश से जमीन मांगी तो सिंधिया राजपरिवार ने जगह के साथ मंदिर स्थापना में भी मदद की. इसके बाद संताजी राव ने यहां यमराज की प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराई.
पूजा से आसान होती है मृत्यु से यमलोक की यात्रा
पंडित मनोज भार्गव ने बताया कि "इस मंदिर में मकर संक्रांति पर यमराज का पूजन अतिमहत्वपूर्ण माना जाता है. क्योंकि इस दिन सूर्य उत्तरायण (देवताओं का सवेरा) होते हैं और सभी मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं. मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन पूजन करने से यमराज प्रसन्न होते हैं. यमराज यमलोक के राजा हैं, उनका पूजन इसलिए किया जाता है, क्योंकि मरने के बाद जब यम दूत व्यक्ति को यमलोक लेकर जाते हैं, तो उन्हें रास्ते में कष्ट ना हो.
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कहा जाता है कि हर व्यक्ति से जाने अनजाने पाप होते हैं, जब मृत्यु के बाद व्यक्ति की आत्मा को यमदूत यमलोक ले जाते हैं, तो उनके पापों के मुताबित आत्मा को यातनाएं झेलनी पड़ती है. मृत्य के बाद यमलोक तक पहुंचने में 11 महीनों का समय लगता है. इस यात्रा में जो यातनाएं मिलती हैं वह कम मिले और वहां पहुंच कर हमारे लेखा जोखा में जो गलतियां हों उन्हें माफ कर स्वर्ग की प्राप्ति हो, इसलिए यमराज की पूजा की जाती है."
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मकर संक्रांति पर होता है काला चढ़ावा
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यमराज की पूजा मकर संक्रांति और नरक चौदस के दिन विशेष रूप से की जाती है. मकर संक्रांति के दिन दान का विशेष प्रभाव माना जाता है. खास तौर से काला दान किया जाता है, जिसमें गुड, उड़द की दाल, काले तिल, काला कपड़ा या कंबल, छाता, खड़ाऊं, डंडा आदि. इसके अलावा चांदी, सरसों का तेल, शक्ति भोग, गजग या तिल से बनी मिठाई अर्पण की जाती है."