ग्वालियर : ग्वालियर पुलिस ने अजय आदिवासी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के मामले में मनोज आदिवासी को गिरफ्तार किया था. उसके खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा दर्ज किया गया था. बाद में आरोपी मनोज आदिवासी को बरी कर दिया. कोर्ट ने माना कि ये मामला संदिग्ध है और हत्या का दिखाई देता है. एफएसएल रिपोर्ट और मौके के फोटोग्राफ देखने के बाद शासकीय अधिवक्ता मृत्युंजय गोस्वामी ने इस मामले में दोबारा जांच की मांग कोर्ट से की थी, जिसे न्यायालय ने मान लिया था.
मामला हत्या का लग रहा था, पुलिस ने सुसाइड माना
विशेष न्यायालय ने 3 बिंदुओं पर भंवरपुरा थाने की तत्कालीन इंचार्ज बलवीर मावई को जांच के आदेश दिए थे. इसमें कहा गया था कि क्या ये मामला हत्या का है. यदि हत्या का है तो इसके पीछे मकसद क्या था. मृतक अजय आदिवासी के साले रामनिवास और मृतक की पत्नी ने अपने बयानों में क्या बताया था. क्योंकि मृतक के साले ने ही पुलिस को घटना की सूचना दी थी. बता दें कि यह घटना 28 जून 2023 की है. घटना के बाद सरकारी वकील की आपत्ति के बाद फरवरी 2024 में कोर्ट ने दोबारा जांच के आदेश दिए. तब भंवरपुरा थाने के इंचार्ज सुरेंद्र सिकरवार ने भी इस मामले को आत्महत्या माना, जबकि मौके पर ऐसे कई बिंदू थे, जिससे यह मामला सीधे तौर पर हत्या का लग रहा था.
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मृतक की पत्नी से अवैध संबंध का जिक्र
अभियोजन में इस मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने का चालान पेश किया गया था लेकिन सुनवाई के दौरान बंटी नामक युवक ने कोर्ट को बताया कि जिस मनोज को आरोपी बनाया गया है, उसके मृतक की पत्नी से संबंध थे. मृतक की पत्नी की एक लड़की अजय से तो लड़का आरोपी से था, इस मामले में लड़के का डीएनए भी नहीं कराया गया. यह भी पुलिस विवेचना में कमी देखी गई. कोर्ट की आपत्ति के बावजूद थाना प्रभारी ने विवेचना में गंभीरता नहीं बरती. शासकीय अधिवक्ता जिला न्यायालय मृत्युंजय गोस्वामी ने ये जानकारी दी.