ग्वालियर। इस मामले का खुलासा भी रोचक तरीके से हुआ था. पुलिस को एक अज्ञात व्यक्ति ने इस बारे में पत्र भेजा था. इसमें बताया गया था कि 2009 में आयोजित प्री पीजी परीक्षा में डॉ.आशुतोष गुप्ता के स्थान पर सॉल्वर ने परीक्षा दी है. सॉल्वर का इंतजाम डॉ. पंकज गुप्ता के जरिए किया गया. इसके बाद मामले को सीबीआई ने संज्ञान में लेकर जांच शुरू की. सीबीआई के अधिवक्ता बीबी शर्मा ने बताया कि 12 अप्रैल 2009 को जबलपुर में यह प्री पीजी की परीक्षा आयोजित हुई थी.
अपने स्थान पर सॉल्वर से दिलाया एग्जाम
अधिवक्ता ने बताया कि प्री पीजी एग्जाम में डॉ.आशुतोष गुप्ता के स्थान पर किसी सॉल्वर ने परीक्षा दी. सॉल्वर का इंतजाम डॉ.पंकज गुप्ता ने बिचौलिए सुरेंद्र वर्मा के जरिए किया था. इस काम के बदले डॉ.आशुतोष ने 15 लाख रुपए डॉ.पंकज गुप्ता को दिए थे. इसमें कुछ राशि डॉ.पंकज गुप्ता ने बतौर कमीशन अपने पास रख ली थी. बाकी राशि सुरेंद्र वर्मा को दे दी गई थी. वहीं, सीबीआई सुरेंद्र वर्मा के खिलाफ सबूत पेश नहीं कर पाई और न ही उसके खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया गया.
ओएमआर शीट से मिलान पर हुआ खुलासा
दरअसल, परीक्षा पास करने के बाद डॉ.आशुतोष ने ग्वालियर के गजरा राजा मेडिकल कॉलेज में एडमिशन ले लिया था. इस दौरान उसने कॉलेज एडमिनिस्ट्रेशन को एक एप्लीकेशन लिखी थी और कुछ दस्तावेजों पर अपने हस्ताक्षर भी किए थे, लेकिन जब ओएमआर शीट से इसका मिलान किया गया तो राइटिंग में अंतर निकला. इसके आधार पर सीबीआई ने डॉ. आशुतोष गुप्ता और डॉ. पंकज गुप्ता के खिलाफ विशेष न्यायालय में चालान पेश किया था.
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न सॉल्वर का पता चला और न ही शिकायतकर्ता का
इस मामले में सॉल्वर कौन था, उसके बारे में आज तक पता नहीं चल पाया है. न ही अज्ञात व्यक्ति जिसने अपने आप को मुरैना का मंगू सिंह बताया था, उसको भी पुलिस नहीं खोज सकी. न्यायालय में सजा सुनाने के दौरान डॉ.आशुतोष मौजूद नहीं थे, जबकि डॉ.पंकज गुप्ता न्यायालय में मौजूद थे. डॉ.आशुतोष गुप्ता के खिलाफ वारंट जारी कर दिया गया है.