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कांकेर के अबूझमाड़ में पीडीएस सिस्टम की ग्राउंड रियलिटी, राशन के लिए आदिवासियों को करना पड़ता है मीलों का सफर

Ground Reality Of PDS System छत्तीसगढ़ सरकार के पीडीएस सिस्टम को पूरे देश में सराहा गया है.लेकिन कई जगहों पर ये सिस्टम खुद की बदहाली की कहानी बयां कर रहा है.आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां ना तो सड़क है और ना ही भविष्य में इसके बनने के आसार.लिहाजा इन गांवों में रहने वाले लोगों के लिए राशन लाना किसी जंग के जीतने के सामान है.आज हम आपको दिखाएंगे ऐसे ही गांवों की तस्वीर.Abujhmad Tribals

Ground Reality Of PDS System
राशन के लिए आदिवासी नापते हैं 35 किलोमीटर जंगल
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 23, 2024, 6:28 PM IST

Updated : Feb 24, 2024, 9:49 AM IST

राशन के लिए 35 किलोमीटर का सफर

कांकेर : आदिवासियों को निशुल्क राशन देने के लिए सरकार ने राशन दुकान की व्यवस्था की है.इसके तहत दूर दराज के गांवों में राशन दुकानें संचालित की जा रही है.लेकिन कांकेर और नारायणपुर के कुछ गांवों में राशन दुकानें नहीं हैं. इसलिए यहां के बाशिंदों को पास के गांव से राशन लाना पड़ता है.ये पास का गांव भी एक दो नहीं बल्कि 35 किलोमीटर दूर है. इसलिए अपने परिवार का राशन लाना ग्रामीणों के लिए आसान नहीं होता.फिर भी मीलों पैदल चलकर आदिवासी अपने लिए दो वक्त के खाने का इंतजाम करते हैं.

प्रशासन का दावा ग्रामीणों ने किया खारिज : बस्तर के अबूझमाड़ में कई ऐसे गांव हैं जहां आज तक सड़कें नहीं बनीं.यही वो वजह थी जिसके कारण राशन दुकानें नहीं खुलीं.लेकिन प्रशासन के सड़क ना होने के दावे को ग्रामीण खारिज करते हैं. ग्राम पंचायत पांगुर के निवासी सुकलु मंडावी के मुताबिक गांव में राशन गोदाम 2019 में बन चुका है.जंगल में बांस काटने ट्रक आ जाता है.लेकिन ना जाने क्यों राशन की गाड़ी नहीं आ पाती.जिसके कारण 35 किलो चावल के लिए 35 किलोमीटर दूर छोटे बेठिया गांव का सफर ग्रामीण तय करते हैं.

ट्रैक्टर से राशन लाने के लिए चंदा : ग्रामीण लछु वडदा के मुताबिक गांववालों को 200 रुपए प्रति परिवार के हिसाब से चंदा देना पड़ता है. इसके बाद ही राशन के लिए ट्रैक्टर की व्यवस्था होती है. जिनके पास पैसे नहीं हैं उन्हें दो दिन पहले राशन लेने निकलना पड़ता है.रास्ते में आदिवासी रुकते हैं फिर अगले दिन छोटेबेठिया गांव पहुंचकर राशन लाते हैं.

नारायणपुर जिले का भी यही हाल : कांकेर के ग्राम पंचायतों के अलावा नारायणपुर जिले में भी राशन दुकानों का यही हाल है. नारायणपुर में सबसे ज्यादा मुसीबत बारिश के दौरान आती है. क्योंकि कई बरसाती नदियां उफान पर होती है. जिसके कारण राशन दुकानों में राशन नहीं आ पता.ऐसे में दुकानें नहीं खुलने से लोगों को राशन लेने में परेशानी आती है.ऐसे में आप अंदाजा लगाईए बिना राशन के आदिवासी तीन महीने कैसे गुजारा करते होंगे.

किन गांवों में सबसे ज्यादा तकलीफ : कांकेर और नारायणपुर की यदि बात करें तो कोंगे,पांगुर के अलावा कोडोनार, बोरानिरपी, बियोनार, कोरसकोडो, सितरम, आलदंड, मुसपर्सी, गारपा, बिनागुंडा, हचेकोटी, आमाटोला जैसे दर्जनों गांवों में राशन की दिक्कत है. अबूझमाड़ के आदिवासियों को कोयलीबेड़ा, ओरछा जैसी जगहों पर चावल लेने के लिए पैदल चलकर आना पड़ता है. कांकेर जिले के खाद्य अधिकारी जन्मेजय नायक के मुताबिक 33 पीडीएस दुकान दुर्गम क्षेत्र में है. जिन्हें हम पहुंचविहीन क्षेत्र बोलते हैं. इन 33 दुकानों में हम बरसात के 4 महीने का खाद्यान भंडार कर देते हैं. पंचायत को इकाई मानकर एक राशन दुकान एक पंचायत में बनाया गया है.

''विषय परिस्थिति या लोगों की मांग के अनुसार शासन को कोई वित्तीय क्षति ना हो तब दूसरी दुकान खोली जा सकती है. सड़कों के कारण राशन नहीं पहुंचता ऐसा नहीं है. हम भंडारण कर देते हैं. 35 किलोमीटर चलकर राशन लेने की कोई जानकारी नही है.'' जन्मेजय नायक, खाद्य अधिकारी

कब लेगा प्रशासन सुध ? : सरकार भले ही लोगों को पीडीएस चावल की सुविधा मुहैया करा रहा हो. लेकिन पीडीएस योजना का लाभ लेने कई लोग वंचित हैं. आज भी कई गांवों में सरकारी राशन दुकान नहीं है.आज भी राशन के लिए आदिवासियों को जंगली रास्तों का दुर्गम सफर तय करना पड़ रहा है.प्रशासन जानकारी ना होने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ सकता है.लेकिन ये कोई एक गांव का मामला नहीं है. अब तस्वीरें सामने आने के बाद शासन प्रशासन को चाहिए कि इन गांवों की सुध ले और राशन की उचित व्यवस्था मुहैया कराए.ताकि अपने हक के लिए आदिवासी परिवारों को संघर्ष ना करना पड़े.

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कांकेर : आदिवासियों को निशुल्क राशन देने के लिए सरकार ने राशन दुकान की व्यवस्था की है.इसके तहत दूर दराज के गांवों में राशन दुकानें संचालित की जा रही है.लेकिन कांकेर और नारायणपुर के कुछ गांवों में राशन दुकानें नहीं हैं. इसलिए यहां के बाशिंदों को पास के गांव से राशन लाना पड़ता है.ये पास का गांव भी एक दो नहीं बल्कि 35 किलोमीटर दूर है. इसलिए अपने परिवार का राशन लाना ग्रामीणों के लिए आसान नहीं होता.फिर भी मीलों पैदल चलकर आदिवासी अपने लिए दो वक्त के खाने का इंतजाम करते हैं.

प्रशासन का दावा ग्रामीणों ने किया खारिज : बस्तर के अबूझमाड़ में कई ऐसे गांव हैं जहां आज तक सड़कें नहीं बनीं.यही वो वजह थी जिसके कारण राशन दुकानें नहीं खुलीं.लेकिन प्रशासन के सड़क ना होने के दावे को ग्रामीण खारिज करते हैं. ग्राम पंचायत पांगुर के निवासी सुकलु मंडावी के मुताबिक गांव में राशन गोदाम 2019 में बन चुका है.जंगल में बांस काटने ट्रक आ जाता है.लेकिन ना जाने क्यों राशन की गाड़ी नहीं आ पाती.जिसके कारण 35 किलो चावल के लिए 35 किलोमीटर दूर छोटे बेठिया गांव का सफर ग्रामीण तय करते हैं.

ट्रैक्टर से राशन लाने के लिए चंदा : ग्रामीण लछु वडदा के मुताबिक गांववालों को 200 रुपए प्रति परिवार के हिसाब से चंदा देना पड़ता है. इसके बाद ही राशन के लिए ट्रैक्टर की व्यवस्था होती है. जिनके पास पैसे नहीं हैं उन्हें दो दिन पहले राशन लेने निकलना पड़ता है.रास्ते में आदिवासी रुकते हैं फिर अगले दिन छोटेबेठिया गांव पहुंचकर राशन लाते हैं.

नारायणपुर जिले का भी यही हाल : कांकेर के ग्राम पंचायतों के अलावा नारायणपुर जिले में भी राशन दुकानों का यही हाल है. नारायणपुर में सबसे ज्यादा मुसीबत बारिश के दौरान आती है. क्योंकि कई बरसाती नदियां उफान पर होती है. जिसके कारण राशन दुकानों में राशन नहीं आ पता.ऐसे में दुकानें नहीं खुलने से लोगों को राशन लेने में परेशानी आती है.ऐसे में आप अंदाजा लगाईए बिना राशन के आदिवासी तीन महीने कैसे गुजारा करते होंगे.

किन गांवों में सबसे ज्यादा तकलीफ : कांकेर और नारायणपुर की यदि बात करें तो कोंगे,पांगुर के अलावा कोडोनार, बोरानिरपी, बियोनार, कोरसकोडो, सितरम, आलदंड, मुसपर्सी, गारपा, बिनागुंडा, हचेकोटी, आमाटोला जैसे दर्जनों गांवों में राशन की दिक्कत है. अबूझमाड़ के आदिवासियों को कोयलीबेड़ा, ओरछा जैसी जगहों पर चावल लेने के लिए पैदल चलकर आना पड़ता है. कांकेर जिले के खाद्य अधिकारी जन्मेजय नायक के मुताबिक 33 पीडीएस दुकान दुर्गम क्षेत्र में है. जिन्हें हम पहुंचविहीन क्षेत्र बोलते हैं. इन 33 दुकानों में हम बरसात के 4 महीने का खाद्यान भंडार कर देते हैं. पंचायत को इकाई मानकर एक राशन दुकान एक पंचायत में बनाया गया है.

''विषय परिस्थिति या लोगों की मांग के अनुसार शासन को कोई वित्तीय क्षति ना हो तब दूसरी दुकान खोली जा सकती है. सड़कों के कारण राशन नहीं पहुंचता ऐसा नहीं है. हम भंडारण कर देते हैं. 35 किलोमीटर चलकर राशन लेने की कोई जानकारी नही है.'' जन्मेजय नायक, खाद्य अधिकारी

कब लेगा प्रशासन सुध ? : सरकार भले ही लोगों को पीडीएस चावल की सुविधा मुहैया करा रहा हो. लेकिन पीडीएस योजना का लाभ लेने कई लोग वंचित हैं. आज भी कई गांवों में सरकारी राशन दुकान नहीं है.आज भी राशन के लिए आदिवासियों को जंगली रास्तों का दुर्गम सफर तय करना पड़ रहा है.प्रशासन जानकारी ना होने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ सकता है.लेकिन ये कोई एक गांव का मामला नहीं है. अब तस्वीरें सामने आने के बाद शासन प्रशासन को चाहिए कि इन गांवों की सुध ले और राशन की उचित व्यवस्था मुहैया कराए.ताकि अपने हक के लिए आदिवासी परिवारों को संघर्ष ना करना पड़े.

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Last Updated : Feb 24, 2024, 9:49 AM IST
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