नई दिल्ली: बच्चों की शिक्षा के लिए वैश्विक स्तर पर काम कर रहे नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. इस बातचीत में उन्होंने कई अहम मुद्दों पर अपने विचार रखे. बाल श्रम को मिटाने और बच्चों के उत्थान के लिए दिन रात मेहनत करने वाले कैलाश सत्यार्थी आज मोबाइल और सोशल मीडिया के बढ़ते इस्तेमाल से चिंतित है उन्होंने कहा है कि बच्चों में जिस तरह से मोबाइल सोशल मीडिया का क्रेज बढ़ रहा है वो किसी बड़े खतरे से कम नहीं है.
सोमवार को ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने कहा कि आज पूरे विश्व में फैली हुई कई समस्याओं का समाधान करुणा में है. करुणा का भाव ही समाज में व्याप्त समस्याओं का समाधान करने का सबसे अच्छा तरीका है. करुणा दया नहीं है. करुणा कृपा भी नहीं है. अपने भीतर का एक भाव है जो स्वतः जागृत होता है. उन्होंने कहा कि जब किसी बच्चे को चोट लगती है तो उसकी मां नियम कानून के बारे में नहीं सोचती. वो सोचती है कि बच्चों को तुरंत राहत कैसे दी जा सकती है. ऐसे में मां अपनी साड़ी अपने कपड़े को फाड़ कर बच्चों की पट्टी बांध देती है यह स्वत ही होता है इसे ही करुणा कहते हैं.
उन्होंने कहा कि करुणा पूरे विश्व को जोड़कर एक कर सकती है. इसलिए करुणा की भावना को लेकर काम करने वाले लोग विश्व में कई समस्याओं का समाधान कर सकते हैं. करुणा बाल श्रम, बाल अपराध और बाल शिक्षा में उच्च स्तरीय कार्य करने के लिए लोगों को जोड़ने हेतु सेतु का काम कर सकती है. इसके लिए समाज में ऐसे लोगों को जोड़कर एक प्लेटफार्म पर लाने की जरूरत है, जो पहले से इस दिशा में काम कर रहे हैं. ईटीवी भारत संवादाता राहुल चौहान से बातचीत करते हुए उन्होंने कई सवालों के जवाब दिए. पेश हैं बातचीत के कुछ अंश.
सवाल : पिछले कुछ समय से नाबालिगों की संलिप्तता अपराध में बढ़ी है, इसे किस तरह देखते हैं?
जवाब: हमारे पास बहुत अच्छे कानून हैं. बहुत सारी योजनाएं हैं. बहुत सारी सरकारी संस्थाएं और बहुत सारी गैर सरकारी संस्थाएं हैं जो इस क्षेत्र में काम कर रही हैं. फिर भी यह क्यों बढ़ रहा है इस पर सभी को मिलकर सोचने की जरूरत है. जो बच्चे किसी अत्याचार का शिकार होते हैं. उनके दुख को अपनी तरह समझकर उनकी मदद करनी चाहिए. जिस तरह से मां अनपढ़ होकर भी जब बच्चे को चोट लगती है तू है यह नहीं सोचती कि मेरा अधिकार क्या है कानून क्या कहता है इलाज के लिए पैसे नहीं हैं कहां से आएंगे वह तुरंत अपनी साड़ी या अपने कपड़े फाड़कर बच्चों के पट्टी बांध देती है. यह स्वयं ही होता है. इसी को करुणा कहते हैं. इसी में समस्याओं का समाधान छिपा है.
सवाल: इंटरनेट, मोबाइल, सोशल मीडिया बचपन को किस तरह प्रभावित कर रहा है?
जवाब: कोई भी सोशल मीडिया हो बच्चों के बचपन को भारी तरह से प्रभावित कर रहा है. बच्चे आजकल मोबाइल खूब चला रहे हैं. इस पर सोशल मीडिया भी देखते हैं. इसमें से अच्छी बुरी चीजों को बच्चे कई बार आत्मसात भी कर लेते हैं. इन सभी समस्याओं पर संयुक्त रूप से सोचने और विचार करने की जरूरत है. हमें समस्याओं के बजाय समाधान पर अधिक सोचने की जरूरत है.
सवाल: बीते एक दशक की बात करें तो आप क्या मानते हैं शिक्षा पद्धति में बदलाव हुआ है?
जवाब: हां, शिक्षा पद्धति में बदलाव हुआ है. लेकिन, आज सरकारें शिक्षा पर उतना पैसा खर्च नहीं करती हैं, जितना करना चाहिए. वैश्विक स्तर पर भी शिक्षा का बजट बढ़ाए जाने की बहुत जरूरत है. गरीब बच्चों की पढ़ाई पर बहुत ज्यादा पैसा खर्च करने की जरूरत है. शिक्षा के क्षेत्र में बराबरी लाने की जरूरत है.
सवाल: अपराधों में बच्चों की संलिप्तता कम करने के लिए क्या किए जाने की जरूरत है?
जवाब : समाज में व्याप्त इस तरह की कई समस्याओं का समाधान करुणा में छुपा है. जब समाज के जिम्मेदार लोगों के अंदर करुणा का भाव पैदा होगा तो वह स्वतः ही प्रेरित होकर पीड़ित लोगों के काम आएंगे. साथ ही जिस बच्चे के साथ अत्याचार हो रहा है करुणा का भाव आने के बाद यह सब बंद हो जाएगा और इस तरह की समस्याओं का समाधान होगा. इसके लिए बदलाव लाने की जरूरत है. यह बदलाव स्वतः ही आएगा.
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सवाल: समाज में व्याप्त समस्याओं के समाधान में सरकारों की कितनी भूमिका मानते हैं?
जवाब: हर जगह सरकार में अच्छा काम करने वाले लोग भी हैं और गलत काम करने वाले लोग भी हैं. लेकिन सिर्फ सरकारों के करने से नहीं होगा हम सब लोगों को भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभाते हुए समाज के लिए सोचना होगा. यह सोच का भाव करुणा का भाव जागृत होने से ही आएगा.
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